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Mikhail Gorbachev Death: जब हुआ मिखाइल गोर्बाचोफ़ युग का अंत और शुरू हुई सोवियत संघ के पतन की कहानी...

Mikhail Gorbachev Death: मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ एक शख्स ही नहीं बल्कि एक विचारधारा का नाम था. उनके युग का अंत होते ही सोवियत संघ (Soviet Union) का किला भरभरा कर ढह गया था.

Mikhail Gorbachev Death: जिन्हें हमेशा दुनिया आखिरी सोवियत नेता (Soviet) के तौर पर याद रखेगी. जो हर पल शीत युद्ध (Cold War) को खत्म करने के लिए लोगों के जेहन में जिंदा रहेंगे, लेकिन चिरकाल तक  दुनिया की नजर में वो सोवियत संघ के पतन को न रोक पाने वाले एक नाकामयाब लीडर की तस्वीर बनकर भी रहेंगे. मंगलवार को दुनिया के इस मशहूर और प्रभावी नेता की मौत हो गई और इसके साथ ही उठ खड़े हुए हैं कई सवाल कि आखिर मिखाइल गोर्बाचोफ़ (Mikhail Gorbachev) किस शख्सियत का नाम था. यहां हम वक्त की जमीं पर दुनिया की राजनीति में उनके दखल-असर और उनकी जिंदगी पर पड़े कदमों के निशां देखते चलेंगे.

गरीब किसान का बेटा जो बन गया सोवियत संघ का नेता

मिखाइल गोर्बाचोफ़ का जन्म 2 मार्च 1931 को प्रिवोलनोय, स्टावरोपोल क्राय गांव में हुआ था, जो उस वक्त सोवियत संघ के घटक गणराज्यों में से एक रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य में था. उनके पिता का परिवार रूसी तो मां का परिवार यूक्रेनी था. जन्म के वक्त उनका नाम विक्टर रखा था, लेकिन उनकी मां के कहने पर एक कट्टर रूढ़िवादी ईसाई ने उनका एक गुप्त बपतिस्मा किया, जहां उनके दादा ने उनका नाम मिखाइल रखा था. उनके एक भाई अलेक्सांद्र भी थे. अपने पिता सर्गेई आंद्रेयेविच गोर्बाचोफ़ के वे करीबी थे तो मां  मारिया पेंटेलेयेवना अनुशासनवाली थीं.

उनके माता-पिता गरीब किसान थे. तीन साल की उम्र में वो अपने नैनिहाल चले गए थे. गोर्बाचेव के नाना कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे. देश उस समय 1930-1933 के अकाल का सामना कर रहा था, जिसमें मार्क्सवाद की प्रतिद्वंद्वी व्याख्याओं के प्रति सहानुभूति रखने वालों को गिरफ्तार किया गया था. गोर्बाचेव के नाना 1934 में तो दादा 1937 में  गिरफ्तार कर लिया गया. रिहा होने से पहले उनके दादा-नाना  गुलाग श्रम शिविरों में रखे गए थे. जब दिसंबर 1938 में  रिहाई के बाद उनके नाना ने गोर्बाचोफ़ को गुप्त पुलिस के प्रताड़ित किए जाने के बारे में बताया. इसे सुनकर युवा गोर्बाचोफ़ प्रभावित हुए और शायद यही वजह रही कि वो सोवियत संघ के नेता बनकर उभरे.

टाइम लाइन

सोवियत संघ (Soviet Union) में ताकत का पर्याय माने गए 91 साल के मिखाइल गोर्बाचोफ़  दुनिया को अलविदा कह गए. यहां हम करीबन सात साल में उनकी जिंंदगी के खाके पर वक्त ने किस तरह की अहम घटनाओं की लकीर (Timeline) खींची उस पर सिलसिलेवार बात करेंगे.

मार्च 1985 - 54 साल के मिखाइल सर्गेयेविच गोर्बाचोफ़ पोलित ब्यूरो (Politburo) के सबसे कम उम्र के सदस्य रहे. वह कॉन्स्टेंटिन चेर्नेंको (Konstantin Chernenko) की मौत के बाद कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के सबसे युवा महासचिव बने. उन्होंने देश को राजनीतिक और आर्थिक गतिरोध से बाहर निकालने के लिए पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) और ग्लास्नोस्त (खुलेपन) का एक कार्यक्रम शुरू किया.

नवंबर 1985- गोर्बाचोफ़ और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन (Ronald Reagan) ने जिनेवा (Geneva) में अपना पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया. तब गोर्बाचोफ़ ने कहा था  कि वह देशों के बीच रिश्तों को सुधारने और भविष्य के हथियारों में कटौती के बारे में "बहुत आशावादी" हैं.  मिखाइल गोर्बाचोफ़ के अमरीकी राष्ट्रपति  रीगन के साथ गर्मजोशी भरे रिश्तों की वजह से ही शीत युद्ध का अंत हुआ था.

अप्रैल 1986 - चेर्नोबिल  परमाणु रिएक्टर (Chernobyl Nuclear Reactor) में विस्फोट से पूरे यूरोप (Europe) में रेडियोधर्मी बादल (Radioactive Clouds) फैल गए. लेकिन सोवियत अधिकारियों ने तीन दिन बाद इसे विस्फोट को होना स्वीकार किया था. इससे उनके खुलेपन की नीति यानी ग्लास्नोस्त (Glasnost) पर शक पैदा हुआ.

दिसंबर 1986 - सरकार की नीतियों की आलोचना के लिए चले असंतुष्ट आंदोलन (Dissident Movement) के पिता कहे जाने वाले डॉ आंद्रेई सखारोव (Dr Andrei Sakharov) को गोर्बाचोफ़  के एक टेलीफोन कॉल के बाद निर्वासन से रिहाई दे दी गई थी. उनके शासन के दौरान सैकड़ों राजनीतिक और धार्मिक असंतुष्टों को रिहा किया गया. गौरतलब है कि एटम बम तैयार करने में सोवियत वैज्ञानिक आंद्रेई सखारोव का अहम रोल था. हालांकि बाद में वो एटमी हथियारों के ख़िलाफ़ चले अभियान के नेता बने और उन्हें 1975 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला.

मई 1987 - माथियास रुस्तो (Mathias Rust) नाम के एक युवा जर्मन ने सोवियत वायु रक्षा क्षेत्र का  उल्लंघन किया. एक तरह से माथियास ने हेलसिंकी (Helsinki) से सेसना लाइट एयरक्राफ्ट (Cessna Light Aircraft) उड़ाकर सेंट्रल मॉस्को (Central Moscow) के रेड स्क्वायर (Red Square) पर इसे उताकर  सोवियत शासन में  वायु रक्षा प्रणाली में सेंध लगाई. इसके बाद गोर्बाचोफ़ ने अनचाहे शीर्ष रक्षा अधिकारियों को सिलसिलेवार बाहर करना शुरू किया.

अक्टूबर 1987 - इस दौर में अहम और मशहूर रूसी सुधारक बोरिस येल्तसिन ( Boris Yeltsin) का पेरेस्त्रोइका (Perestroika) यानी देश के पुनर्गठन की धीमी रफ्तार को लेकर गोर्बाचोफ़ के साथ विवाद हुआ. इसके बाद येल्तसिन ने  सत्तारूढ़ पोलित ब्यूरो छोड़ दिया. येल्तसिन के इस्तीफे के बाद एक छोटे किंतु प्रभावशाली उग्र सुधारवादी संगठन ‘डेमोक्रेटिक प्लेटफॉर्म’ ने भी उनसे अलग होने का एलान कर डाला. इसके बाद मिखाइल गोर्बाचोफ़ एक बिखरी हुई पार्टी के नेता बने रह गए.

दिसंबर 1987 - वाशिंगटन (Washington) में गोर्बाचोफ़ और अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन ने परमाणु हथियारों में कटौती के लिए पहली संधि पर हस्ताक्षर किए. इस संधि का मतलब सोवियत और यूएस (US) की सभी इंटरमीडिएट रेंज की मिसाइलों को नष्ट किया जाना था.

अक्टूबर 1988 -  गोर्बाचोफ़ ने सर्वोच्च सोवियत राष्ट्रीय विधायिका के प्रेसिडियम (एक कम्युनिस्ट देश में एक स्थायी कार्यकारी समिति) का अध्यक्ष बनकर सत्ता में अपनी पकड़ को मजबूत किया.

फरवरी 1989 - अफगानिस्तान (Afghanistan) में 9 साल की सोवियत सैन्य भागीदारी खत्म हुई. बाल्टिक गणराज्यों (Baltic Republics), जॉर्जिया और यूक्रेन में स्वतंत्रता आंदोलनों में तेजी आई.

मार्च 1989 -  सोवियत संघ के पीपुल्स डेप्युटीज़ की कांग्रेस 1989 से 1991 तक सोवियत संघ के राज्य प्राधिकरण का सर्वोच्च निकाय था. सोवियत संघ ने पीपुल्स डेप्युटीज़ (People's Deputies) की कांग्रेस चुनने के लिए पहला प्रतिस्पर्धी बहु-उम्मीदवार चुनाव कराया. कई अहम पुराने मूल कम्युनिस्ट लोगों को निर्दलीय से हार का सामना करना पड़ा.अलगाववादीयों ने एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया के बाल्टिक गणराज्यों में अधिकांश सीटें जीतते हैं.

नवंबर 1989 - मशहूर क्रांतियों ने पूर्वी जर्मनी और शेष पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट सरकारों को हटा दिया. इस दौरान सोवियत संघ ने अपने कम्युनिस्ट विचारधारा के ढहते जा रहे सैटेलाइट शासन (Satellite Regimes) को बचाने के लिए हस्तक्षेप  की कोई कोशिश नहीं की. एक सैटेलाइट राज्य एक ऐसा देश है जो दुनिया में औपचारिक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन किसी अन्य देश से भारी राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रभाव या नियंत्रण में है.

दिसंबर 1989 - गोर्बाचोफ़ और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. (George H.W. Bush) माल्टा (Malta) में एक शिखर सम्मेलन में मुलाकात के दौरान बुश ने शीत युद्ध खत्म होने पर उनकी  सराहना की. इस सम्मेलन में दोनों नेताओं ने आपसी रिश्ते मजबूत करने पर जोर दिया. इस दौरान साइन हुए एक समझौते में दोनों नेताओं ने परमाणु हथियारों में कटौती जैसी कई बातों पर सहमति हुई. उस वक्त गोर्बाचोफ़ के विरोधी उनके तख्तापलट की तैयारी में थे, लेकिन उनकी ये कोशिशें नाकाम हो गई. इसी के साथ सोवियत संघ के खत्म होने पर भी जैसे मुहर लग गई.नतीजा ये हुआ कि मिखाइल गोर्बाचोफ़ का असर खत्म हो गया और रूसियों के बीच बोरिस येल्तसिन अधिक पसंद किए जाने वाले नेता बनकर उभरे.

फरवरी 1990 - कम्युनिस्ट पार्टी ने सत्ता के अपने गारंटीकृत एकाधिकार का आत्मसमर्पण कर दिया. हालांकि संसद गोर्बाचोफ़ उनकी कार्यकारी शक्तियों में बेतहाशा बढ़ोतरी के साथ कार्यकारी अध्यक्षता देने के लिए राजी हो गई. इस दौरान पूरे सोवियत संघ में सुधार समर्थक प्रदर्शनकारियों ने में बड़ी रैलियां कीं.

अक्टूबर 1990 - पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी छह-शक्ति की गहन (Six-Power Negotiations) वार्ता के बाद एकजुट हुए. इसमें गोर्बाचोफ़ ने अहम रोल निभाया. सोवियत संसद ने बाजार अर्थव्यवस्था के पक्ष में अर्थव्यवस्था की कम्युनिस्ट केंद्रीय योजना को छोड़ने की योजना को मंजूरी दी. गोर्बाचोफ़ नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे गए.

नवंबर 1990 - संसद ने गोर्बाचोफ़ को सार्वजनिक गतिविधि के लगभग सभी क्षेत्रों में फरमान जारी करने का हक दिया. गोर्बाचोफ़ की प्रस्तावित की गई एक संघ संधि (Union Treaty) का पहला मसौदा 15 गणराज्यों को पर्याप्त अधिकार देता है, लेकिन इस पर साइन करने से चार देशों  लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया और जॉर्जिया ने इंकार कर दिया.

जनवरी 1991 - सैनिकों ने बाल्टिक में स्वतंत्रता समर्थक प्रदर्शनों को कुचल दिया. लिथुआनिया में 14 और लातविया में पांच लोग मारे गए.

मार्च 1991 - सोवियत संघ को "समान संप्रभु गणराज्यों के संघ" के तौर पर संरक्षित करने के लिए जनमत संग्रह (Referendum) में भारी बहुमत मिला था, लेकिन छह गणराज्यों ने इस जनमत संग्रह में वोट देने से इंकार कर इसका बहिष्कार किया.

अप्रैल 1991 - पूर्वी यूरोपीय देशों की वारसॉ संधि (Warsaw Pact) को भंग कर दिया गया. अन्त 25 फरवरी, 1991 में  हंगरी में हुए एक सम्मेलन में इस सन्धि को खत्म करने का एलान किया गया.इस सम्मेेलन में सदस्य देशों के रक्षा मन्त्री तथा विदेश मन्त्री शामिल थे.

जून 1991 - गोर्बाचोफ़ को छोड़ गए उनके पुराने साथी बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति चुने गए.

18 अगस्त, 1991-को, सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाचेव को कट्टर कम्युनिस्टों ने उनके तख्तापलट की कोशिस के दौरान उन्हें नजरबंद कर दिया गया था. हालांकि ये तख्तापलट कामयाब नहीं हो पाया., राष्ट्रपति अपना नियंत्रण फिर से स्थापित करने के लिए मास्को लौट आए.

19 अगस्त, 1991 - गोर्बाचोफ़ की खराब सेहत का हवाला देते हुए उनके डिप्टी गेन्नेडी यानायेव (Gennady Yanayev) ने कट्टरपंथी कम्युनिस्ट जुंटा (Junta) के चीफ के तौर राष्ट्रपति का पद संभाला. जुंटा से मतलब देश पर बलपूर्वक शासन करने वालों से लिया जाता है. नतीजन कुछ इलाकों में आपातकाल का एलान कर दिया गया. इसी के साथ एस्टोनियाई (Estonian) संसद ने आजादी का एलान भी कर डाला.

21 अगस्त - तख्तापलट  की कोशिशें नाकाम हुईं. केंद्र में रूढ़िवादी कॉकस यानी चौकड़ी को खत्म कर दिया और गणराज्यों में अलगाववादियों को भारी प्रोत्साहन मिला. लातवियाई संसद ने स्वतंत्रता का एलान कर डाला.

24 अगस्त - गोर्बाचोफ़  ने कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे दिया. देश में पार्टी की संपत्ति की जब्ती का आदेश दिया. इसे सभी राज्य संगठनों से प्रतिबंधित करने के साथ ही सुझाव दिया कि यह खुद ही भंग कर दी जाए. यूक्रेन की संसद ने स्वतंत्रता की घोषणा की. हफ्तों के भीतर, कजाकिस्तान (Kazakhstan) और रूस (Russia) को छोड़कर सभी ने ऐसा ही किया है.

6 सितंबर - सोवियत सर्वोच्च विधायिका ने लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया की आजादी को मान्यता दी. कांग्रेस ने 1922 की संघ संधि को रद्द कर दिया और संप्रभु राज्यों के एक स्वैच्छिक संघ के लिए संधि के लंबित हस्ताक्षर को अंतरिम प्राधिकरण को सौंप दिया.

16 नवंबर - रूस ने लगभग सभी सोवियत सोने और हीरे के भंडार और तेल निर्यात पर काबू कर लिया. इसके बाद में रूस ने आर्थिक मंत्रालयों के अधिग्रहण का एलान किया.

8 दिसंबर - रूस, यूक्रेन और बेलोरूसिया ने स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल की घोषणा की. इसमें केंद्रीय प्राधिकरण या गोर्बाचोफ़ का कोई रोल नहीं था. पहले गोर्बाचोफ़ ने इस नए आदेश का विरोध कर इस्तीफा देने से इंकार किया. हालांकि बाद में वह इस न टाले जा सकने वाली घटना को स्वीकार करते हुए इस्तीफा देने के लिए तैयार हो गए.

21 दिसंबर, 1991- को रूसी टेलीविजन पर शाम के बुलेटिन की शुरुआत में एक नाटकीय एलान किया गया. इसमे कहा गया, "गुड इवनिंग. इस समय की खबर है कि सोवियत संघ अब नहीं रहा." गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही रूस, बेलारूस और यूक्रेन के नेताओं की मुलाकात हुई थी और इसमें सोवियत संघ से अलग होने और स्वतंत्र राज्यों के एक राष्ट्रमंडल के गठन के साथ ही राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने को लेकर फैसला हुआ था. इन सबने मिखाइल गोर्बाचोफ़ को दरकिनार किया था जो सोवियत संघ के राज्यों को एक जुट रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

25 दिसंबर, 1991 - गोर्बाचोफ़ ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया और तब क्रेमलिन में सोवियत झंडा आखिरी बार झुका था.इसके अगले ही  दिन औपचारिक तौर पर सोवियत संघ (Soviet Union) को भंग कर दिया गया. इसलिए बहुत से लोग आज भी रूस को सोवियत संघ कहते हैं और इसके ज़िक्र में मिखाइल गोर्बाचोफ़ का नाम लेते हैं. गोर्बाचोफ़ के देखते ही देखते सोवियत संघ टुकड़ों में बंट गया था.

इस दौर को याद करते हुए मिखाइल गोर्बाचोफ़ ने एक इंटरव्यू में कहा, " देश गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहा और मैं उसे बचाना चाहता था. लोग बंट गए थे और संघर्ष की स्थिति थी, हथियारों की बाढ़ आ गई थी. इनमें परमाणु हथियार भी थे. बहुत से लोग मर सकते थे. बड़ी बर्बादी होती. मैं  केवल सत्ता में बने   रहने के लिए ये सबकुछ होते हुए नहीं देख सकता था. मेरा इस्तीफा मेरी जीत थी.

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