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Naxalism: बंगाल के इस छोटे से गांव से उठी थी नक्सलवाद की चिंगारी, करीब 50 साल से चल रहा लाल सलाम का विद्रोह- ये है पूरी कहानी

Naxalism History: नक्सली आंदोलन के नेता चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग, जिसे माओ जेडॉन्ग भी कहा जाता है उससे सबसे ज्यादा प्रभावित थे. ये उसी के सिद्धांत को लेकर आगे बढ़े.

Naxalism History: भारत तेजी से तरक्की कर रहा है और दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर उभर रहा है, लेकिन इसके बावजूद पिछले करीब पांच दशकों में अब तक हम नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए हैं. हर बार नक्सली सरकारों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला करते हैं, जिसमें अब तक सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं. हर बार जवानों की खून से सनी लाशें, उनके रोते-बिलखते परिवार और निर्मम हत्याओं से देश सन्न रह जाता है. ऐसी घटनाओं के बाद सरकारें नक्सलवाद को खत्म करने का दंभ भरती हैं, लेकिन नतीजा फिर वही होता है. 

ताजा मामला छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके दंतेवाड़ा का है, जहां डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की एक गाड़ी को नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया. इस घातक हमले में ड्राइवर समेत 10 जवानों की मौत हो गई. आज हम आपको नक्सलवाद का पूरा इतिहास और इसके खूनी संघर्ष के बारे में बताएंगे. 

कहां से शुरू हुआ नक्सलवाद?
नक्सलवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से हुई थी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कानू सान्याल और चारू माजूमदार ने सरकार के खिलाफ 1967 में एक मुहिम छेड़ी थी. देखते ही देखते ये एक आंदोलन बन गया और चिंगारी फैलने लगी. इस आंदोलन से जुड़े लोगों ने खुद सरकार के खिलाफ हथियार उठा लिए. सरकार के खिलाफ ये विद्रोह उन किसानों का था, जो जमींदारों के अत्याचार से परेशान हो चुके थे. 

माओ के सिद्धांत को किया फॉलो
नक्सली आंदोलन के नेता माजूमदार और सान्याल चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग, जिसे माओ जेडॉन्ग भी कहा जाता है उससे सबसे ज्यादा प्रभावित थे. ये उसी के सिद्धांत को लेकर आगे बढ़े. इसीलिए हम नक्सलवाद को माओवाद भी कहते हैं. इसका सिद्धांत था कि सरकार के खिलाफ सीधी लड़ाई संभव नहीं है, इसीलिए मनोवैज्ञानिक तौर पर इसे लड़ा जाना चाहिए. इसमें सरकार नहीं बल्कि उसकी इच्छाशक्ति पर आक्रमण की बात कही गई.   

देशभर में बारूद की तरह फैला नक्सलवाद
नक्सलबाड़ी से उठी चिंगारी देखते ही देखते बारूद की तरह भारत के कई हिस्सों में फैलती गई. ये चिंगारी अब आग बन चुकी थी. कम्युनिस्टों ने लोगों जुटाना शुरू कर दिया था. इनका टारगेट वो लोग होते थे जो गरीबों और किसानों को प्रताड़ित करते थे. इनमें उनके सबसे बड़े दुश्मन जमींदार होते थे. पश्चिम बंगाल के अलावा देश के अन्य राज्यों में इस आंदोलन का असर देखने को मिला और हथियार उठाए लोग सरकार के सामने खुलकर बगावत करने लगे. सरकार के समानांतर इनकी अपनी सरकार चलने लगी. 

छोटे संगठनों से बनाई पार्टी
नक्सवाद का ये आंदोलन 70 के दशक में काफी ज्यादा फैल गया. इससे जुड़े संगठनों ने साल 1969 में सीपीआई (एमएल) का गठन किया. जिसके महासचिव चारू माजूमदार थे. इसके बाद माजूमदार के बनाए गए सिद्धांतों के हिसाब से नक्सलवाद जहर की तरह देशभर में फैला. कुछ सालों बाद मांग उठने लगी कि कम्युनिस्टों की एक पार्टी होनी चाहिए, जो गरीबों और सताए गए लोगों की बात रखे. इसके बाद साल 2004 में पीपुल्सवार और एमसीसीआई ने एक साथ मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन कर दिया. इस खबर ने सरकारों की चिंता और बढ़ा दी. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जिन दो संगठनों ने मिलकर ये राजनीतिक पार्टी बनाई थी, उन्हें अमेरिका ने अपनी आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में शामिल किया था. 

किस उद्देश्य से करते हैं काम
जैसे कोई भी नेता जनता को अपने तीखे और जोरदार भाषण से इंफ्लुएंस करता है, ठीक उसी तरह से नक्सलवाद भी चलता रहा है. नक्सवाद को लेकर बनाए गए नियम कायदे लोगों के कानों काफी अच्छे लगते हैं, खासतौर पर उन लोगों को जिन्हें सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिला है. इस खूनी संघर्ष से ज्यादातर वही लोग जुड़े हैं, जो अपने हक की लड़ाई को हथियार के बल पर लड़ने की सोच रखते हैं. 

नक्सलवाद को चलाने वाले कई नेता और कमांडर होते हैं. यानी ये किसी सैन्य टुकड़ी की तरह काम करते हैं, कमांडर अपने नक्सलियों में जोश भरने के लिए ऐसे भाषण देता है, जिससे उनका खून गरम हो जाए और सत्ता के खिलाफ नफरत इस कदर हावी हो जाए कि वो किसी भी काम को अंजाम दे सके. उनके दिमाग में ये चीज भर दी जाती है कि वो अपने हक और हकूक के लिए सरकार से लड़ रहे हैं, हाथ फैलाने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए हाथ उठाना होगा. एक दौर ऐसा था जब इन नक्सली नेताओं के आह्वाहन पर हजारों लोग इकट्ठा होते थे. 

देश के इन राज्यों में फैला है नक्सलवाद
करीब 50 साल पहले शुरू हुआ नक्सलवाद आज तक नासूर बनकर देश को चुभ रहा है. हालात ये हैं कि ये खूनी संघर्ष वाला आंदोलन कई राज्यों में फैल चुका है और इसका नेटवर्क खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. देश के करीब 11 राज्य नक्सलवाद से प्रभावित हैं. छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में नक्सली घटनाएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं. यहां के कई इलाकों में नक्सलियों का काफी ज्यादा खौफ है. 

सुरक्षाबल बनते हैं निशाना
देश के हर नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षाबलों की टुकड़ियां तैनात की जाती हैं, नक्सवाद के खिलाफ पुलिस और सीआरपीएफ का ऑपरेशन भी लगातार चलता है, जिसमें कई नक्सली मारे जाते हैं. ऐसे में बदले की भावना और सरकार के खिलाफ गुस्सा नक्सलियों को सुरक्षाबलों की जान का दुश्मन बना देता है. नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले सुरक्षाबलों पर नक्सली घात लगाकर हमला करते हैं, इसके लिए उनके मुखबिर हर गांव और कस्बे में रहते हैं. सुरक्षाबलों की मूवमेंट का पता लगने के बाद आईईडी ब्लास्ट या फिर बारूदी सुरंगे खोदी जाती हैं और अपने मंसूबे को अंजाम दिया जाता है. नक्सलियों को गुरिल्ला अटैक के लिए जाना जाता है. जिसका नतीजा हम हर साल तिरंगे में लिपटे जवानों के तौर पर देखते आए हैं. 

नक्सलवाद का पूरा नेटवर्क
देश के जिस भी हिस्से में नकस्लवाद फल-फूल रहा है, उसकी सबसे बड़ी वजह उनका बेजोड़ नेटवर्क है. माना जाता है कि सुरक्षाबलों से ज्यादा मजबूत नेटवर्क नक्सलियों का है. जिसका इस्तेमाल कर वो छुपते हैं, सुरक्षाबलों को अपने ट्रैप में फंसाते हैं और फिर हमला करते हैं. इसके बाद जब सुरक्षाबलों का ऑपरेशन चलता है तो ये आदिवासी का चोला पहन लेते हैं और भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. कुछ लोग घने जंगलों में गायब हो जाते हैं. नेटवर्क इतना बड़ा होता है कि इन्हें सुरक्षाबलों की मूवमेंट की हर खबर मिलती है, जिससे ये खुद को बचा लेते हैं. 

पिछले कुछ सालों में हुए बड़े हमले

  • करीब 12 साल पहले 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. 
  • 25 मई 2013 को झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला, कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित 30 से ज्यादा लोग मारे गए.
  • 11 मार्च 2014 को सुकमा जिले के टाहकवा़डा में नक्सली हमला हुआ, जिसमें 15 जवान शहीद हो गए. 
  • 12 अप्रैल 2014 को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दरभा में नक्सली हमला, 5 जवानों समेत 14 लोगों की मौत
  • 11 मार्च 2017 को सुकमा के दुर्गम भेज्जी इलाके में नक्सली हमले में 12 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए
  • 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा में नक्सलियों ने हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान शहीद हुए
  • 21 मार्च 2020 को सुकमा जिले के मिनपा में जवानों पर घातक नक्सली हमला किया गया, जिसमें 17 जवान शहीद हुए
  • 23 मार्च 2021 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले जवानों से भरी बस पर नक्सली हमला, 5 जवान शहीद हुए
  • 4 अप्रैल 2021 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर और सुकमा जिले के बॉर्डर पर हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हुए

बता दें कि नक्सलियों को लेकर सरकारों का रुख अलग-अलग रहा है. कई बार इन्हें लेकर मानवीय रुख अपनाने की भी बात हुई, जिसमें कहा गया कि ये आदिवासी लोग हैं जो अपने हकों के लिए गलत रास्ते पर चल पड़े हैं. इनसे बातचीत कर मामले का सामाधान होना चाहिए. वहीं ज्यादातर बार सैन्य ताकत से इसे कुचलने की कोशिश की गई. इसके बावजूद आज भी अलग-अलग राज्यों के कई जिलों में ये लाल सलाम की सरकार चल रही है. 

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