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क्या है नीतीश कुमार का विपक्षी एकता का फॉर्मूला, जानें क्यों खुलकर मैदान में नहीं उतर रही है कांग्रेस

Election 2024 Opposition Unity: नीतीश कुमार ने विपक्षी नेताओं से मुलाकात के बाद एक ही बात कही कि विपक्ष को बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ एकजुट होना होगा, वहीं कांग्रेस का रुख अब तक साफ नहीं है.

Election 2024 Opposition Unity: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है. इस बार बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इसका मोर्चा संभाला है. नीतीश कुमार पिछले कई महीनों से विपक्षी एकता को लेकर तमाम नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और एक मजबूत गठबंधन बनाने की जुगत में हैं. हालांकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का अब तक रुख साफ नहीं हो पाया है. राहुल गांधी बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने की बात कर चुके हैं, लेकिन पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने साफ कर दिया है कि विपक्षी एकता कांग्रेस के नेतृत्व में होगी. ऐसे में ये समझने की जरूरत है कि 2024 से पहले नीतीश वाकई पूरे विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे या फिर पिछले चुनाव की ही तरह इस बार भी महागठबंधन बनने से पहले ही टूट जाएगा. साथ ही कांग्रेस की भूमिका को लेकर भी बात करेंगे. 

नीतीश ने संभाला मोर्चा
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी संभाली है. नीतीश कुमार की राजनीति करीब चार दशक पुरानी है, इसके बावजूद उन पर अब तक कोई भी ऐसा बड़ा दाग नहीं लगा है जिससे उन्हें घेरा जा सके. तमाम दलों के साथ उनके रिश्ते भी अच्छे माने जाते हैं, ऐसे में विपक्षी एकता के लिए वो काफी खास हैं. पिछले कुछ दिनों से नीतीश ने अपने कवायद तेज कर दी है. उन्होंने ओडिशा जाकर सीएम नवीन पटनायक से मुलाकात की, इसके बाद वो झारखंड पहुंचे जहां हेमंत सोरेन से उनकी मुलाकात हुई. झारखंड के बाद नीतीश और तेजस्वी महाराष्ट्र पहुंचे, जहां उन्होंने उद्धव ठाकरे और एनसीपी चीफ शरद पवार से मुलाकात की. 

नीतीश कुमार ने इन बड़े विपक्षी नेताओं से मुलाकात के बाद मीडिया से भी बातचीत की. जिसमें उन्होंने एक ही बात कही कि विपक्ष को बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ एकजुट होना होगा. नीतीश ने कहा, "जिस तरह से बीजेपी काम कर रही है वो देश के हित में नहीं है. ऐसी स्थिति में अगर ज्यादा से ज्यादा विपक्षी दल एकजुट होंगे तो वो देश के हित में होगा. इसी सिलसिले में हम मिल रहे हैं और कई दलों से इसे लेकर बातचीत हो चुकी है. सभी दल एक साथ बैठकर आगे का फैसला लेंगे."

क्या है नीतीश का फॉर्मूला
नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी, जिसके बाद 2022 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़कर आरजेडी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद से ही नीतीश लगातार बीजेपी के खिलाफ बोलते आए हैं. उन्होंने बीजेपी की केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को लेकर मुहिम छेड़ दी और अब वो जल्द इसे लेकर एक बड़ी बैठक भी बुलाने जा रहे हैं. दरअसल नीतीश कुमार का फॉर्मूला 'वन अगेंस्ट वन' का है. यानी अगर बीजेपी का एक उम्मीदवार है तो उसके खिलाफ विपक्षी गठबंधन का एक ही उम्मीदवार उतारा जाएगा. हालांकि अलग-अलग विचारधाराओं और ताकत वाले दलों के बीच इस फॉर्मूले को हकीकत में बदलना काफी मुश्किल है.  

कांग्रेस का क्या है रुख
विपक्षी एकता की जब भी बात होती है तो कांग्रेस के रुख को समझना काफी जरूरी होता है. कांग्रेस भले ही पिछले कुछ सालों में देशभर में पिछड़ती जा रही हो और अपना जनाधार खो रही हो, लेकिन वो अब भी खुद को मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर ही देखती है. कांग्रेस की कोशिश है कि वही विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करे और उसके बनाए गए फॉर्मूले के तहत की तमाम दल काम करें. हालांकि कई छोटे और क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस का ये एटीट्यूड पसंद नहीं आता है. वहीं राहुल गांधी को कांग्रेस एक बार फिर प्रोजेक्ट कर सकती है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद से ही कांग्रेस राहुल के लिए पिच तैयार करने में जुटी है. जो विपक्षी दलों के विरोध का एक बड़ा कारण बन सकता है. 

विपक्षी दलों को किस बात की चिंता?
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे कह चुके हैं कि कांग्रेस नेतृत्व में विपक्षी एकता आगे बढ़ेगी. हालांकि विपक्षी दलों को इसमें नुकसान नजर आ रहा है. पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा है. ऐसे में टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी और एनसीपी जैसे दलों को अपनी सीटों को दान करना पड़ सकता है. क्योंकि गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में होगा, ऐसे में उसे ज्यादा सीटें देनी पड़ सकती हैं. जिसमें इन क्षेत्रीय दलों को फायदे की जगह नुकसान हो सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर विपक्षी एकता में दरार आ सकती है. 

हालांकि विपक्ष के कई बड़े नेताओं का खुद ये मानना है कि कांग्रेस के बिना संपूर्ण विपक्षी एकता संभव नहीं है, कांग्रेस को छोड़कर अगर तीसरा मोर्चा बनाया भी जाता है तो उससे बीजेपी को ही फायदा मिलेगा. किसी भी विपक्षी दल के मुकाबले कांग्रेस की पहुंच या अस्तित्व देश के तमाम राज्यों में ज्यादा है, ऐसे में कांग्रेस के अलावा कोई भी दूसरा दल इस महागठबंधन का नेतृत्व करेगा ये फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है.

कांग्रेस का फायदा-नुकसान
वहीं कांग्रेस नेताओं का इस पर अलग रुख है. कांग्रेस के कई नेताओं को सोचना है कि गठबंधन में लड़ने से पार्टी को नुकसान हो सकता है. कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर अकेले चुनाव में उतरना चाहिए. पूरे देश में गठबंधन करने की जगह कांग्रेस उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर सकती है, जहां पार्टी काफी कमजोर है. जबकि गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पार्टी की स्थिति ठीक है. यानी यहां अकेले चुनाव लड़कर बीजेपी को टक्कर दी जा सकती है. 

क्या चाहती है बीजेपी 
बीजेपी अब उन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रही है, जिन पर विपक्ष की अलग-अलग राय रही है. उसकी कोशिश है कि विपक्ष को एक दूसरे के साथ की गई बगावत या खिलाफत की याद दिलाते रहें. जिससे विपक्षी दल कभी भी एकजुट न हो पाएं. नीतीश कुमार अगर वाकई विपक्षी गठबंधन तैयार करने में कामयाब होते हैं तो बीजेपी के लिए ये एक बड़ा झटका साबित हो सकता है. भले ही 2024 के लिए बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत नजर आ रही हो, लेकिन नीतीश का 'वन अगेंस्ट वन' वाला फॉर्मूला बीजेपी का पूरा गणित बिगाड़ सकता है. 

चेहरे को लेकर उहापोह की स्थिति
विपक्ष में मोदी बनाम कौन? की भी बड़ी चुनौती होगी. किस चेहरे के साथ विपक्षी मोर्चा लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरेगा ये एक बड़ी दुविधा वाली स्थिति होगी. चुनाव से पहले किसी एक नाम पर सहमति बनाना विपक्ष के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होगा. बीजेपी की नजरें भी इसी पर टिकी होंगी, क्योंकि जैसे ही विपक्षी मोर्चा अपने नेता का ऐलान करेगा, बीजेपी पीएम मोदी के साथ उसकी तुलना कर पूरा माहौल तैयार कर लेगी. साथ ही इसके लिए पूरी रणनीति भी तैयार होगी. 

अब कुछ लोग बिना चेहरे के चुनावी मैदान में उतरने की भी बात कर रहे हैं, लेकिन ये विपक्ष के लिए दो धारी तलवार की तरह होगा. क्योंकि पिछले चुनावों में बीजेपी के कट्टर वोटर्स के अलावा बाकी में एक आम जन भावना देखने को मिली कि मोदी के अलावा किसे वोट करें? जब तक विपक्षी दल इस सवाल का जवाब जनता को नहीं देते हैं, तब तक किसी भी गठबंधन का कोई फायदा होना मुमकिन नहीं है. 

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