Nobel Prize 2022: नोबेल प्राइज वीक (Nobel Prize Week) का आगाज हो चुका है. ये एक हफ्ते यानी 10 अक्टूबर तक चलेगा. इसमें 6 श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाते हैं. सोमवार (3 अक्टूबर ) को साल 2022 के चिकित्सा क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार पाने का गौरव स्वीडन में जन्मे स्वांते पाबो (Svante Pääbo) को मिला. मंगलवार 4 अक्टूबर को भौतिकी का नोबेल संयुक्त तौर पर 3 वैज्ञानिकों एलेन एस्पेक्ट ( Alain Aspect), जॉन एफ क्लॉजर (John F Clauser) और एंटोन ज़िलिंगर (Anton Zeilinger) की झोली में गया.


जहां पाबो को ये पुरस्कार विलुप्त होमिनिन यानी वनमानुष और मानव विकास के जीनोम से संबंधित उनकी खोजों के लिए दिया गया तो वहीं एस्पेक्ट, क्लॉजर और ज़िलिंगर को ये उलझे हुए फोटॉन के प्रयोगों के लिए दिया गया. क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि इन विजेताओं ने ऐसा क्या काम किया जो इंसान के लिए अहम है. कैसे इन वैज्ञानिकों काम इंसान को फायदा पहुंचाएगा. यहां हम यही जानने की कोशिश करेंगे.  


न्यूटनियन नियमों को चुनौती


एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ क्लॉजर और एंटोन ज़िलिंगर ने क्वांटम एनटेंगल्ड स्टेट (Entangled Quantum States) पर शानदार काम किया है. भौतिकी में नोबेल पुरस्कार पाने वाले इन 3 वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया कि 'उलझन' की घटना वास्तविक है, उनके प्रयोगों ने निर्णायक तौर पर ये साबित कर दिया कि है कि क्वांटम कणों में देखी गई 'उलझन की घटना वास्तविक थी, न कि किसी 'छिपी' या अज्ञात ताकतों का नतीजा और इसका इस्तेमाल कंप्यूटिंग और हैक-फ्री संचार में परिवर्तनकारी तकनीकी प्रगति के लिए किया जा सकता है. इसके साथ ही  'टेलीपोर्टेशन' जैसी विज्ञान कथाओं की अवधारणा के सच होने को भी इससे बल मिला है. 


20वीं शताब्दी की शुरुआत तक, जब कुछ लोगों ने यह मानना शुरू कर दिया था कि प्रकृति के काम करने के तरीके के बारे में जो कुछ भी खोजा जाना था, वह पहले ही खोजा जा चुका था, कुछ वैज्ञानिकों ने देखा कि प्रोटॉन या इलेक्ट्रॉनों जैसे छोटे उप-परमाणु कणों का व्यवहार था भौतिकी के शास्त्रीय न्यूटनियन नियमों (Classical Newtonion laws Of Physic) के अनुरूप नहीं है. जितना अधिक उन्होंने जांच की, उतने ही चौंकाने वाले नतीजे उन्हें मिले.


इन वैज्ञानिकों ने जो देखा उसे समझाने की कोशिश में अधिकतर युवा भौतिकविदों के एक समूह ने अगले 30 वर्षों में आश्चर्यजनक खोजों की एक सीरीज बनाई. इसमें उन्होंने उप-परमाणु अंतरिक्ष ( Sub-Atomic Space) में प्रकृति के काम करने के तरीके के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया. साथ में उन्होंने क्वांटम थ्योरी को एक साथ जोड़ दिया, जिसने उल्लेखनीय सटीकता के साथ उप-परमाणु कणों के विचित्र व्यवहार का वर्णन किया.


क्या है एनटेंगल्ड क्वांटम स्टेट


इन भौतिकविज्ञानियों के काम को समझने के लिए आपको पहले क्वांटम (Quantum) को समझना होगा. विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा की  बेहद कम मात्रा को भौतिक विज्ञान में क्वांटम कहा जाता है. नोबेल पाने वाले इन 3 वैज्ञानिकों का प्रयोग भी इसी क्वांटम फिजिक्स पर आधारित है. क्वांटम फिजिक्स का इस्तेमाल ब्रह्मांड को जानने-समझने के साथ ही हमारे रोजमर्रा के जीवन में भी होता है. क्वांटम फिजिक्स, फिजिक्स का वो हिस्सा है जिसमें बहुत छोटे कणों यानी मॉलिक्यूल (Molecule) के बारे में जाना जाता है.


ये छोटे कण ऐटम, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं. इसकी नींव 14 सितंबर 1900 को मैक्स प्लांक ने डाली थी. नोबेल प्राइज पाने वाले प्लांक ने ब्लैक बॉडी रेडिएशन पर शोध कर ये बताया कि प्रकाश और अन्य विद्युत चुंबकीय विकिरण ऊर्जा (Magnetic Field) बहती नहीं बल्कि छोटे-छोटे हिस्से में चलती है. इसी का इस्तेमाल कर आइंस्टाइन ने प्रकाश के विद्युत प्रभाव को समझा था. अब साल 2022 के भौतिकी का नोबेल पाने वाले वैज्ञानिकों ने क्वांटम उलझाव (Quantum Entanglement) पर प्रयोग कर इसे आगे बढ़ाया है. एनटेंगल्ड क्वांटम स्टेट का मतलब है जब दो कण एक निश्चित तरीके से एक साथ जुड़ते हैं, चाहे वे अंतरिक्ष में कितनी भी दूर क्यों न हों. उनकी स्थिति जस की तस रहती है.


अपने प्रयोगों ने इन वैज्ञानिकों ने यही बताया है कि दो कण अलग होने पर भी एक इकाई की तरह व्यवहार करते हैं. उनके प्रयोगों के नतीजों ने क्वांटम सूचना पर आधारित नई तकनीक का रास्ता साफ कर दिया है. इससे क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) का व्यवहारिक तौर पर इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी. इन वैज्ञानिकों ने अपनी खोज में यह बताया है कि कैसे क्वांटम यांत्रिकी दो या दो से अधिक कणों को एक उलझी हुई अवस्था में मौजूद रहने देती है. इस उलझे हुए जोड़े में से एक कण का क्या होता है,यही बताता है कि दूसरे उलझे दूसरे कण का क्या होगा,भले ही वे एक-दूसरे से बहुत दूर हों. 


लंबे समय तक, यह सवाल था कि क्या दो कणों के बीच ये सहसंबंध इसलिए था क्योंकि एक उलझे हुए जोड़े में कणों में छिपे हुए चर (Variables) होते थे, वे प्रयोगों के नतीजों के लिए जवाबदेह होते थे. भौतिकी की भाषा में चर एक मात्रा है जिसका मूल्य बदल सकता है. 1960 के दशक में, जॉन स्टीवर्ट बेल ने गणितीय असमानता के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि यदि कणों में छिपे हुए चर हैं,तो बड़ी संख्या में माप के परिणामों के बीच का संबंध कभी भी एक निश्चित मूल्य से अधिक नहीं होगा. उन्हीं के नाम पर इसे (Bell Inequalities) नाम दिया गया. 


 2022 भौतिक विज्ञान के नोबेल वाला काम


जॉन क्लॉजर ने जॉन बेल के विचारों को लेकर एक व्यावहारिक प्रयोग किया. जब उन्होंने माप ली तो उन्होंने बेल के असमानता नियम को पूरी तरह से तोड़ते हुए क्वांटम यांत्रिकी का समर्थन किया. इसका मतलब है कि क्वांटम यांत्रिकी को एक ऐसे सिद्धांत के जरिए बदला नहीं जा सकता है. जो दो कणों के बीच सहसंबंधों के लिए छुपे हुए चरों को जवाबदेह ठहराता है. 


जॉन के प्रयोग के बाद भी कुछ खामियां रह गईं. इसके बाद इसमें एलेन एस्पेक्ट (Alain Aspect) की एंट्री हुई. उन्होंने इस सेटअप को इस तरह से विकसित किया कि इसमें एक अहम खामी पूरी तरह से खत्म हो गई. एक उलझी हुई जोड़ी यानी एनटेंगल्ड क्वांटम स्टेट में कणों के अपने स्रोत को छोड़ने के बाद एलेन माप सेटिंग्स (Measurement Settings) की अदला- बदली कर पाए थे, इसलिए जब कण उत्सर्जित हुए तो जो सेटिंग पहले से मौजूद थी, वो प्रयोग के नतीजों पर असर नहीं डाल पाई थी. दरअसल एनटेंगल्ड क्वांटम स्टेट से का मतलब दो कणों के एक निश्चित तरीके एक साथ जुड़ने को कहते हैं. फिर चाहे वे अंतरिक्ष में कितनी भी दूर हों उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आता.


इसके बाद बेहतरीन उम्दा उपकरणों और प्रयोगों की लंबी सीरीज का इस्तेमाल कर एंटोन ज़िलिंगर ( Anton Zeilinger) ने उलझी हुई क्वांटम अवस्थाओं पर काम करना शुरू कर दिया. अन्य बातों के अलावा, उनके शोध समूह ने क्वांटम टेलीपोर्टेशन (Quantum Teleportation) नामक एक घटना का प्रदर्शन किया है, जिससे क्वांटम अवस्था को एक कण से एक दूरी पर स्थानांतरित करना संभव हो जाता है.


भौतिकी के लिए नोबेल समिति के अध्यक्ष एंडर्स इरबैक (Anders Irbäck) कहते हैं कि इसके साथ ही यह साफ हो गया कि एक नई तरह की क्वांटम तकनीक उभर रही है. हम देख सकते हैं कि क्वांटम यांत्रिकी की व्याख्या के बारे में बुनियादी सवालों से परे भी एनटेंगल्ड स्टेट (Entangled States) पर पुरस्कार विजेताओं का काम बहुत महत्वपूर्ण है.


इसी अहम काम के लिए मंगलवार 4 अक्टूबर को भौतिक विज्ञान के लिए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ क्लॉजर और एंटोन ज़िलिंगर को साल 2022 नोबेल पुरस्कार के लिए चुना. फ्रांस के एलेन पेरिस सैक्ले यूनिवर्सिटी और इकोल पॉलिटेक्निक पैलिजो  फ्रांस (Université Paris-Saclay and École Polytechnique, Palaiseau, France) में प्रोफेसर हैं, तो जॉन एफ क्लॉजर यूएस में अनुसंधान भौतिक विज्ञानी (Research Physicist) हैं. एंटन जेलिंगर ऑस्ट्रिया की विएना यूनिवर्सिटी (University Of Vienna, Austria) में प्रोफेसर हैं.


होमिनिन और मानव विकास पर मेडिसिन का नोबेल


साल 1955 में स्वीडन के स्टॉकहोम में जन्में स्वांते पाबो (Svante Pääbo) को साल 2022 का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है. वह अभी साल 1999 में खुद की स्थापित जर्मनी के लीपज़िग में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी में (Max Planck Institute For Evolutionary Anthropology In Leipzig, Germany) हैं. वह ओकिनावा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, जापान में सहायक प्रोफेसर के तौर पर भी काम कर रहे हैं. उन्हें नोबेल इसलिए दिया गया कि उन्होंने खत्म हो गए होमिनिन (Hominins) और मानव के विकास जीनोम से संबंधित खोजें की. अब आप को उत्सुकता होगी कि आखिर ये होमिनिन और जीनोम किस बला का नाम है तो परेशान न हो हम बताते हैं ये क्या है और प्रोफेसर पाबो ने इस पर क्या कमाल किया है.


मानवनुमा या होमिनिन जिन्हें हम वनमानुष भी कहते हैं.  एक ऐसे प्राणी परिवार का नाम है जिनमें बंदरों के कुनबे की वे सारी नस्लें शामिल हैं जो इंसान हो या इंसान जैसी हों. इनमें मनुष्य, चिम्पांज़ी, गोरिल्ला और ओरंगउटान के वंश आते हैं. कुछ ऐसी आस्ट्रेलोपिथिक्स (Australopithecus) जैसी मानव जैसी नस्लें  विलुप्त हो चुकी हैं. अब बात करते हैं जीनोम (Genome) की. किसी भी जीव के डीएनए में मौजूद सारे गुणसूत्रों यानी जीन्स का क्रम जीनोम कहलाता है. जीन वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि एक बार इंसानी नस्ल के सभी जीनों की संरचना का पता लग जाये, तो इंसान की जीन-कुंडली के आधार पर उसके जीवन की सभी जैविक घटनाओं और दैहिक लक्षणों की भविष्यवाणी करना संभव हो पाएगा. हालांकि ये कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि मानव शरीर में हजारों लाखों जीवित कोशिकाएं होती हैं. इसी पर स्वांते पाबो ने एक कदम आगे बढ़ाया है.


इंसान को हमेशा ये जानने की उत्सुकता रही है कि आखिर वो आया कहां से है. जो इंसान से पहले आए, उनसे उसका क्या रिश्ता है. क्यों इंसानी नस्ल के विकास की होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) और अन्य होमिनिन नस्ल (Hominins) से आज का इंसान अलग है? कुछ हद तक अपने शोध के जरिए पाबो ने असंभव दिखाई देने वाले इस काम को संभव कर दिखाया है. उन्होंने इंसानी नस्ल की विकास में अहम जगह रखने वाले  निएंडरथल (Neanderthal) के जीनोम का क्रम पता कर डाला है. निएंडरथल 40,000 साल पहले खत्म हो गए थे, लेकिन पृथ्वी पर उनके डीएनए कभी नहीं रहे. ये मौजूदा इंसान के  विलुप्त रिश्तेदार हैं.


पाबो इसके पहले अज्ञात होमिनिन डेनिसोवा (Denisova) की खोज भी की है. पाबो ने अपनी खोज में ये भी पाया कि लगभग 70,000 साल पहले अफ्रीका से बाहर प्रवास के बाद इन अब विलुप्त होमिनिन से होमो सेपियन्स में जीन स्थानांतरण हुआ था. आज के मनुष्यों के लिए जीन के इस प्राचीन प्रवाह की शारीरिक प्रासंगिकता खास है. उदाहरण के इससे ये पता चल सकता है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) संक्रमणों (Infections) के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करती है. इससे मानव शरीर पर संक्रमणों के असर को बेहतर तरीके से जानकर उनका इलाज बेहतरीन तरीके से हो सकता है. पैबो के मौलिक शोध ने जीवाश्म विज्ञान में  पूरी तरह से नई वैज्ञानिक थ्योरी को जन्म दिया. सभी जीवित मनुष्यों को विलुप्त होमिनिन से अलग करने वाले आनुवंशिक अंतरों को पता करके उन्होंने इसे बात को एक आधार दे दिया है कि हम कैसे खास मानव की पदवी तक पहुंचे हैं. 


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