दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और दूसरे बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन अब भी जारी है. ये प्रवासी मजदूर शहरों को छोड़कर अपने-अपने घर की ओर जा रहे हैं. और जैसे-जैसे मजदूर अपने घरों की ओर बढ़ते जा रहे हैं, राज्यों में कोरोना पॉजिटिव केस की संख्या बढ़ती जा रही है. इन प्रवासी मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या बिहार के मजदूरों की है, जो दिल्ली से बिहार लौट रहे हैं.


दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं है, लेकिन जब ये मजदूर दिल्ली से बिहार लौट रहे हैं और घर जाने से पहले उनकी जांच की जा रही है, तो वो कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं. दिल्ली से बिहार लौटे हर चार में से एक मजदूर कोरोना पॉजिटिव पाया जा रहा है. बिहार सरकार के मुताबिक दिल्ली से बिहार लौटे 835 मजदूरों का टेस्ट करवाया गया है. इनमें से 218 मजदूर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. यानि दिल्ली से लौटे करीब 26 फीसदी मजदूर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं.


बिहार राज्य के नेशनल हेल्थ मिशन के मुखिया मनोज कुमार का दावा है कि ये रैंडम सैंपलिंग है और जब ये सैंपल लिए गए थे, तो उस वक्त तक किसी भी मजदूर में कोरोना के लक्षण नहीं दिखे थे. बिहार सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की तुलना में दूसरे राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल या महाराष्ट्र से लौटे मजदूरों में कोरोना का संक्रमण कम था.


17 मई, 2020 तक बिहार सरकार ने बिहार के बाहर से आए 8,337 लोगों का टेस्ट किया था. इनमें से 651 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. यानि कि बाहर से लौटे करीब 8 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव थे. अगर राज्यवार देखें तो बिहार से लौटे करीब 26 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव थे. पश्चिम बंगाल से लौटे करीब 12 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे, वहीं महाराष्ट्र से लौटे करीब 11 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. हरियाणा से लौटे मजदूरों में संक्रमण की दर 9 फीसदी थी. गुजरात में ये आंकड़ा 6 फीसदी था.


बिहार सरकार के इन आंकड़ों का जवाब दिया है दिल्ली सरकार ने. दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि 26 फीसदी का आंकड़ा चिंताजनक है, लेकिन मजदूरों को संक्रमण दिल्ली में नहीं हुआ, बल्कि तब हुआ जब वो ट्रेन से यात्रा करके बिहार पहुंचे हैं. अधिकारी ने अब भी दिल्ली में कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इन्कार किया है और कहा है कि दिल्ली में ऐसा संभव नहीं है.


29 अप्रैल को जब केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में लगे प्रतिबंधों पर थोड़ी ढील दी तो हजारों की संख्या में मजदूर ट्रेन से, बस से, साइकल से, ऑटो रिक्शा से और पैदल ही अपने-अपने घरों की ओर निकल पड़े. बिहार के डिजास्टर मैनेजमेंट विभाग के प्रमुख सचिव प्रत्यय अमृत का कहना है कि बिहार में अब तक कुल 300 ट्रेनें आई हैं, जिनसे दिल्ली से करीब 25 हजार मजदूर बिहार आए हैं.


और अब बिहार सरकार ने बाहर से आ रहे लोगों की क्वॉरंटीन की व्यवस्था बदल दी है. संजय कुमार का कहना है कि जिस राज्य से मजदूर आ रहे हैं, उन राज्यों को सख्त स्क्रिनिंग के लिए कहा गया है. वहीं बिहार की सीमा में दाखिल होने के बाद की व्यवस्था बदल दी गई है. पहले मजदूर राज्य की सीमा में आते थे, तो उन्हें क्वारंटीन करते वक्त एक साथ रखा जाता था, लेकिन अब उन्हें अलग-अलग ब्लॉक्स में रखा गया है.


डिजास्टर मैनेजमेंट विभाग के प्रमुख सचिव प्रत्यय अमृत के मुताबिक क्वॉरंटीन के लिए तीन अलग-अलग स्तर तय किए गए हैं. मुंबई, पुणे, सूरत, दिल्ली और कोलकाता के हॉट स्पॉट से आए लोगों को क्वारंटीन करने के लिए ब्लॉक स्तर पर व्यवस्था की गई है, जहां एक कमरे में सिर्फ दो लोगों को रखा जा रहा है. वहीं इन शहरों से नॉन हॉट स्पाट इलाकों से आए लोगों को पंचायत स्तर पर क्वॉरंटीन किया जा रहा है.


बाकी के जो लोग हैं, उनको क्वॉरंटीन करने की व्यवस्था उनके गांव में की गई है. अगर दूसरे और तीसरे स्तर के क्वॉरंटीन सेंटर में दाखिल लोगों में लक्षण दिखते हैं, तो उन्हें पहले लेवल के क्वॉरंटीन सेंटर में भेज दिया जाता है. सबके लिए क्वॉरंटीन की अवधि 14 दिनों की ही है. हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि क्वॉरंटीन की अवधि 28 दिन की होनी चाहिए थी, लेकिन फिलहाल ये संभव नहीं हो पा रहा है.


अगर नेशनल लेवल के आंकड़ों को देखें तो 4 मई से शुरू हुए चौथे लॉकडाउन के दौरान कोरोना पॉजिटिव की संख्या में अचानक से इजाफा हुआ है. लॉकडाउन 3 तक कोरोना का जो कर्व फ्लैट हो रहा था, वो अचानक से ऊपर उठने लगा. करीब 60 हजार से ज्यादा केस इस लॉकडाउन 4 में सामने आए हैं और विशेषज्ञों का दावा है कि लॉकडाउन में मिली छूट की वजह से आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.