पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की कहानी उसके कर्ज के चरित्र को समझे बगैर अधूरी है. यहां आर्थिक चुनौती का दौर अगस्त 1947 में इसके अस्तित्व में आने के बाद से ही शुरू हो गया था. 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली और उससे अलग होकर पाकिस्तान बना और देश के बनते ही उसे वित्तीय मदद लेनी पड़ी थी. पाकिस्तान आखिर इस तरह के कर्ज में कैसा आ गया इसकी तह तक जाने के लिए यहां के नीतिगत हस्तक्षेपों को गहराई से समझने की जरूरत है, जिसने देश को कर्ज के रास्ते पर ला खड़ा किया है.


इसके साथ ही इस बात की जांच भी जरूरी है कि कैसे कुछ समूहों ने अपने चंद स्वार्थों को बचाने के लिए देश को कर्ज की खाई में धकेल दिया. साल 1947 में बंटवारे के वक्त भारत और पाकिस्तान दोनों दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के हाल- बेहाल थे. पाकिस्तान को औपनिवेशिक भारत से राजस्व के तौर पर 17 फीसदी और उसकी सेना का लगभग 33 फीसदी हिस्सा विरासत में मिला था.


यही विरासत पाकिस्तान की आने वाली कई सरकारों के लिए बजट की प्राथमिकताओं का आधार बनी. उस दौरान अर्थव्यवस्था के मामले में पाक और भारत के कुछ अनुभव भले ही एक से रहे हों, लेकिन साल 1958 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) कार्यक्रम में जाने के बाद से पाक कर्ज के जाल से बाहर नहीं आ पाया है.


पाकिस्तान का उधारी चरित्र


मौजूदा वक्त में लगातार बिगड़ते आर्थिक हालातों की वजह से पाकिस्तान एक बार फिर खस्ताहाली में पहुंच चुका है. दिसंबर महीने के पहले हफ्ते में ही स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने खुलासा किया था कि सरकार के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी है. इस वजह से केवल 4 से 5 हफ्ते का ही आयात खर्च निकाला जा सकता है. सरकार के विदेशी मुद्रा भंडार में महज पौने 7 बिलियन डॉलर ही बच गए हैं. यहां के प्राइवेट बैंकों में जमा डॉलर को जोड़ने के बाद भी ये साढ़े 12 बिलियन डॉलर तक ही पहुंच रहे हैं.


ये एक मसला ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा नहीं है. बल्कि देश के अंदर चल रही राजनीतिक उठा-पटक भी इसे नुकसान पहुंचा रही है. यहां ये गौर करने वाली बात है कि दम तोड़ती पाक अर्थव्यवस्था को संभालने में चीन, सऊदी अरब और यूएई लगातार मदद का हाथ बढ़ाते रहे हैं, लेकिन इस तरह के हालातों में देश पाकिस्तान की गाड़ी कहां तक खींच पाएंगे ये खुद में ही एक सवाल है.


ऐसे हालातों में पाकिस्तान दिवालिया होने जा रहा है या नहीं इस हालिया बहस में पड़ने से पहले इस देश के मौजूदा कर्ज पर फिर से विचार करने की जरूरत है. इस बात को समझा जाना भी बेहद जरूरी है कि वक्त के साथ इतना अधिक कर्ज आखिर जमा कैसे हो गया है. 


दरअसल आईएमएफ अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली और दुनिया के आर्थिक विकास की निगरानी करता है. वो इस क्षेत्र में जोखिमों की पहचान कर विकास और वित्तीय स्थिरता के लिए नीतियों की सिफारिश करता है. ये फंड अपने 190 सदस्य देशों की आर्थिक और वित्तीय नीतियों की नियमित जांच भी करता है. पाकिस्तान भी इसके दायरे में है.




और आजादी के बाद भी पाकिस्तान कुल 22 आईएमएफ कार्यक्रमों के साथ हमेशा से ही इस बहुपक्षीय उधार देने वाले फंड की छाया में रहा है. इसके उलट भारत 7 बार तो बांग्लादेश 10 मौकों पर ही आईएमएफ के पास उधार के लिए गया. जबकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अब बाहरी कर्ज पर निर्भर नहीं है. 


अभी भी आर्थिक विकास और बाहरी से लिए कर्ज के बीच बेहद खराब रिश्ता है. बाहर से उधार लेने पर आर्थिक विकास पर स्वाभाविक तौर पर असर पड़ता है. ये पाकिस्तान जैसे देश के लिए परेशानी वाली बात होनी चाहिए क्योंकि वो अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से बाहरी कर्ज पर निर्भर रहता है. 


बीते 75 साल में जमा हुए कर्ज के पैटर्न में डूबे बगैर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के ट्रैक को नहीं समझा जा सकता है.  इन वर्षों में पाकिस्तान अक्सर कई बार मुसीबतों के नजदीक पहुंचा है. इस दौरान उसे राजकोषीय असंतुलन और भुगतान संतुलन पर भारी दबाव का सामना करना पड़ा है. बार-बार आईएमएफ ने आगे का नुकसान होने से रोकने के लिए उसकी मदद की है. पाकिस्तान ने इस मदद का इस्तेमाल कम वक्त के लिए देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती लाने के लिए किया.


इसके लिए उसने परंपरागत आर्थिक मजबूती देने वाले तरीकों को अपनाया. जैसा कि केवल कम वक्त के लिए ही पाकिस्तान देश की आर्थिक व्यवस्था को स्थिर कर पाता है. इस वजह से यहां आर्थिक संकट बार-बार आते हैं और इनका असर भी लंबे वक्त तक बना रहता है. यही वजह कि यहां लंबे वक्त से ऐसी चुनौतियां हमेशा बनी रही हैं जो पूरे देश के आर्थिक विकास पर असर डालती हैं.


हालांकि एक वो भी दौर पाकिस्तान ने देखा था. जब शुरुआत में भारत पाकिस्तान से पिछड़ गया था. और 1980 के दशक किसी वक्त में पाकिस्तान का आर्थिक विकास भारत से अधिक हो गया था, लेकिन भारत के 1990 के आर्थिक सुधारों ने इसे लगातार विकास के सही रास्ते पर ला खड़ा किया तो वहीं पाकिस्तान अपने आर्थिक सफर में उठता-गिरता रहा है. 




इन हालातों में कैसे पहुंचा पाकिस्तान


पहले दशक के बाद से ही पाकिस्तान का हाल आमदनी अठ्ठनी खर्चा रुपया वाला रहा. वो कमाई से ज्यादा खर्च करने लगा. सरकार का आकार बढ़ना लगातार जारी रहा. इसकी वजह सैन्य तानाशाहों के समर्थन से राजनीतिक दलों का वोटों के बदले नौकरी देने का रवैया रहा. इससे राष्ट्रीय खजाने पर दबाव बढ़ता गया. इससे उधार लेने की नौबत आई और इस उधार का नतीजा कम विकास के तौर पर सामने आया. यही वजह रही की पाकिस्तान आजादी के बाद से लंबे वक्त तक देश को आर्थिक मजबूती देने में कामयाब नहीं हो सका. 


पाकिस्तान के मौजूदा बुरे आर्थिक हालात अर्थव्यवस्था में बहुत पहले से कभी न खत्म होने वाले इन मुद्दों की वजह से भी हैं.  ये देश एक अस्थिर जीडीपी, रिकॉर्ड स्तर पर निम्न विनिमय दर अन्य मुद्दों के साथ बढ़ती महंगाई और बड़े घाटे का सामना कर रहा है. 


अब यहां के लोगों की बात आती है जिनका जीवन इस तरह की अस्थिरता और झटकों से काफी हद तक प्रभावित होता है. इस दौर में इन आर्थिक झटकों को झेलने में लोगों की मदद के लिए बैंक क्षेत्र ही सामने आता है. वहीं देखा जाए तो बैंकिंग क्षेत्र में सुधार लाने की एक जरूरी शर्त राजस्व और मौद्रिक मजबूती है, लेकिन पाकिस्तान में ये संभव नहीं है. इसके उलट पाकिस्तान उधार और वित्तीय मदद मांगने के लिए वाणिज्यिक बैंकों से लेकर मित्र देशों तक और अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं से लेकर बहुपक्षीय विकास एजेंसियों तक के हर संभव दरवाजे पर गया.




आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था 


अर्थव्यवस्था को बुनियादी स्तर पर ठीक करने की जगह पाकिस्तान ने इसे किराएदार वाली अर्थव्यवस्था में बदल डाला है. जो उधार और दूसरे देशों की वित्तीय मदद से चलती है. यहां का संपन्न अभिजात वर्ग काफी हद तक अलग-अलग सब्सिडी हासिल करने में लगा हुआ है. फिर चाहे यह इस देश को अधिक उधार लेने और मौजूदा कर्ज में बढ़ोतरी करने के लिए मजबूर ही क्यों न करता हो.


कर्ज के ढेर के बीच निवेश को आकर्षित करना और कुछ नए को बढ़ावा देना पाकिस्तान के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है. इन क्षेत्रों में हुआ कम विकास और कमजोरियां पूरी अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीतियों पर बुरा असर डालती हैं. बड़े उद्योगों सहित सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (MSMEs)  को सही तरीके से चलाने और उन्हें बढ़ाने के लिए किसी भी देश में घरेलू वित्त पोषण क्षेत्र का अच्छी तरह से विकसित और मजबूत होना जरूरी है जो कि पाकिस्तान में नहीं है.


इस सेक्टर को बढ़ावा मिलने से नए रास्ते खुलते हैं जो अर्थव्यवस्था के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं. इससे नई नौकरियां पैदा होती है और गरीबी को कम करने में मदद मिलती है. पाकिस्तान के कारोबारी माहौल में इन कमियों की वजह से आर्थिक विकास को बढ़ावा नहीं मिला है. पाकिस्तान विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस देशों की रैंकिंग रिपोर्ट में  108वें स्थान पर है.




कुछ ऐसे हैं मौजूदा हालात


स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के गवर्नर जमील अहमद ने पाकिस्तानी अवाम को यकीन दिलाया है कि देश अपनी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए कर्जों की किश्तें लौटाने में देरी नहीं करेगा और देश दिवालिया होने नहीं जा रहा है. वहीं बीते करीब एक साल से यहां का विदेशी भंडार चीन के कर्जे की वापसी की किश्तों को आगे बढ़ाने की वजह से बना हुआ है.


उधर दूसरी तरफ सऊदी अरब और यूएई ने 3-3 बिलियन डॉलर एक साल की वापसी की शर्त पर स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के खजाने को भरा दिखाने के लिए इसमें रखे हैं. सऊदी 3 बिलियन डॉलर का तेल उधार पर दे रहा है. अगर ये आज देश पाकिस्तान की तरफ बढ़ाया मदद का हाथ खींच ले तो उसके पास कुछ बचने की उम्मीद नहीं है. 


पाकिस्तान ने साल 2021 में इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन से 16295 मिलियन डॉलर, एशियन डेवलपमेंट बैंक से 13423 मिलियन डॉलर, कमर्शियल बैंक से 10287 मिलियन डॉलर, आईएमएफ से 7384 मिलियन डॉलर और इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंटसे 1840 मिलियन डॉलर का कर्ज ले चुका है. 


आईएमएफ ने 7 बिलियन डॉलर के 3 साल के पहले पैकेज में से दिसंबर में जो पौने दो अरब डॉलर देने थे उसे लेकर भी आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच बातचीत अड़चन में है. पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार ने कर्ज के लिए आईएमएफ के आगे नहीं गिड़गिड़ाने का मन बनाया है. उन्होंने रौब से कहा है कि वो आवाम पर महंगाई का और बोझ नहीं डालेंगे. आईएमएफ अगर असली किश्त देता है तो दें वरना हम एक दोस्त देश से 3 मिलियन डॉलर यानी 24 हजार करोड़ रुपये की मदद लेकर गुजारा कर लेंगे.


साल 2021 -22 दो साल में यहां महंगाई सबसे अधिक बढ़ी है. एक तरफ आर्थिक हालात यहां बेहद नाजुक मोड़ पर है तो दूसरी तरफ शहबाज शरीफ की सरकार और अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच तकरार चल रही है. इमरान खान इस पूरी समस्या का समाधान फौरी चुनाव में ढूंढते हैं तो  शहबाज शरीफ की सरकार मुल्क की नाजुक हालत को देखते हुए इमरजेंसी लगाने पर भी गौर फरमा रही है.


पहले यहां ऐसे हालातों में नेता सेना की तरफ देखते थे, मगर पिछले 8 महीनों में सेना के ऐतिहासिक राजनीतिक किरदार की ऐसी फजीहत हुई है कि खुद वो अल्लाह के भरोसे हैं. ऐसे में नेशनल काउंटर टेररिज्म ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश एक बार फिर रफ्ता-रफ्ता तालिबानी आतंक की चपेट में आ रहा है. वो फौजी काफिलों और पुलिस को पहले ही टारगेट कर रहे हैं. ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के अफगान सीमा से लगे जिलों में वो फिर से ताकतवर हो रहे हैं.




स्थिरता की राह


सकल राष्ट्रीय उत्पाद में 24 फीसदी और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 19 फीसदी के योगदान के साथ कृषि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों में से एक है. यह क्षेत्र यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है क्योंकि यह पूरी आबादी के लिए जीविका प्रदान करता है और विदेशी व्यापार में योगदान देता है. यह पाकिस्तानी श्रम शक्ति के कम से कम आधे हिस्से को भी रोजगार देता है.


कृषि क्षेत्र के विकास से देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा. इसके साथ ही इस क्षेत्र में निर्यात क्षमता भी बहुत बड़ी है जो मूल्यवान विदेशी मुद्रा देश में ला सकती है. देश के भुगतान संतुलन संकट यानी उधार चुकाने में असमर्थ होने का एक कारण कृषि क्षेत्र की लापरवाही है.


हाल के वर्षों में, पाकिस्तान ने गेहूं और कपास का आयात करना शुरू कर दिया है, जिससे देश के आयात बिल पर और दबाव आ गया है. यहां कृषि में खोए गए अवसरों के लिए सरकार की उन प्रमुख नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिन्होंने पाकिस्तान का ध्यान उन क्षेत्रों पर केंद्रित रखा है जो अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी नहीं थे.




वित्त मंत्रालय और पाकिस्तान सरकार


वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए विश्व बैंक का लेटेस्ट जीडीपी विकास अनुमान भारत के लिए 8.7 फीसद और पाकिस्तान के लिए 4.3 फीसद रहा था. साल 1993 से 2020 के बीच पाकिस्तान केवल दो साल 2004-05 में 6 फीसदी से अधिक सकल घरेलू उत्पाद की बढ़ोतरी हासिल कर सका, जबकि इसी अवधि के दौरान भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6 फीसदी की बढ़ोतरी लेकर 18 गुना अधिक हो गया है.


उधर दूसरी तरफ पाकिस्तान के उधार चुकाने के दायित्वों में हर दिन लगातार बढ़ोतरी हो रही है. हर बार वो पुराने उधार को चुकाए बगैर नया उधार लेता जाता है. हर बार यहां आयात लगभग हर वक्त निर्यात से अधिक हो जाता है. हालात इस कदर खराब हैं कि पाकिस्तान अपनी पड़ोसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ तालमेल तक नहीं रख पा रहा है.


इसकी बड़ी वजह देश के आर्थिक निर्णयों और प्राथमिकताओं का सटीक आकलन न किया जाना है. कृषि सेक्टर में पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबार लाने की क्षमता और योग्यता है, लेकिन यहां बीते 40 साल से ये सेक्टर उपेक्षा का शिकार है. बगैर किसी योजना के कृषि भूमि को आवासीय सोसायटियों में बदला जा रहा है. इस देश को मौजूदा कर्ज के जाल से बाहर निकलना देश की आर्थिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन बगैर कोई सख्त फैसला लिए यह संभव नहीं होगा.