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राजपथ का नाम कर्तव्यपथ करने के पीछे क्या है सरकार की मंशा?

मोदी सरकार ने इससे पहले भी कई मार्गों के नाम बदलकर जन-केंद्रित नाम रखे हैं. साल 2015 में रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया था.

Rajpath Name Change: हम राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड को देखते हुए बड़े हुए हैं. इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की इस 3 किलोमीटर लंबी सड़क पर आपने आइसक्रीम, पान और झालमुरी खाते हुए कई यादगार फोटो खिंचवाई होंगी. लेकिन अब 8 सितंबर से राजपथ इतिहास में दर्ज हो जाएगा. अब इसी राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ कर दिया गया है. गुरुवार की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेंट्रल विस्टा के साथ में कर्तव्यपथ का भी उद्धाटन करेंगे. 

दरअसल, राजपथ इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक फैली 3 किलोमीटर लंबी, देश की सबसे वीवीआईपी सड़क है. इस सड़क के आसपास ऐसी सुरक्षा होती है कि यहां कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता. इसी सड़क के दोनों तरफ सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट है. अब राजपथ के कायाकल्प होने के बाद यह नए रूप में दिखाई देगा. लेकिन इसको लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर राजपथ का नाम कर्तव्यपथ करने के पीछे सरकार की मंशा क्या है? 

स्पेशल मीटिंग में फैसला
नई दिल्ली नगरपालिका परिषद ने एक बैठक की जिसमें नाम बदलने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई. केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री मानाक्षी लेखी ने एनडीएमसी की बैठक खत्म होने के बाद कहा कि "बैठक ऐतिहासिक थी, स्पेशल मीटिंग थी. फैसला सर्वसम्मति से पारित हुआ. राजपथ का नाम पहले किंग्सवे था. हमें गुलामी की हर निशानी को बदलना होगा."  


राजपथ का नाम कर्तव्यपथ करने के पीछे क्या है सरकार की मंशा? 

राजपथ 'किंग्सवे' का हिंदी अनुवाद 
एनडीएमसी की सदस्य लेखी ने आगे कहा, अगर हम अपने देश के इतिहास को देखें तो राजपथ साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा बनाया गया था और इस सड़क को किंग्सवे और चौराहे को किंग्सवे के नाम से जाना जाता था.किंग्सवे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया था. मगर राजपथ 'किंग्सवे' का हिंदी अनुवाद आज तक बना रहा. अब इसको बदलकर कर्तव्यपथ कर दिया गया है.  

औपनिवेशिक सोच वाले प्रतीकों की समाप्ति 
वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने इस साल अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में औपनिवेशिक सोच दर्शाने वाले प्रतीकों को समाप्त करने पर जोर दिया था. प्रधानमंत्री ने 2047 तक अगले 25 वर्ष में सभी लोगों के अपने कर्तव्य निभाने के महत्व पर जोर दिया है और 'कर्तव्यपथ' नाम में इस भावना को देखा जा सकता है.

पहले भी बदले गए नाम
मोदी सरकार ने इससे पहले भी कई मार्गों के नाम बदलकर जन-केंद्रित नाम रखे हैं. साल 2015 में रेसकोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया, जहां प्रधानमंत्री आवास है. 2015 में ही औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड किया गया. 2017 में डलहौजी रोड का नाम दारा शिकोह रोड कर दिया गया. अकबर रोड का नाम बदलने के भी अनेक प्रस्ताव आये हैं, मगर इसपर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है.

नाम बदलने से शायद ही कोई परिवर्तन आए- प्रोफेसर
राजपथ का नाम बदले जाने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के शिक्षक संतोष कुमार कहते हैं "राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्यपथ कर देने में कोई हर्ज नही हैं, लेकिन इससे क्या बदलेगा? इंसान अब वैश्विक परिदृश्य में जी रहा हैं. रहन-सहन, कपड़ा, भाषा, शिक्षा व्यवस्था, व्यापार, नियम कानून सब पर तो पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है और यह प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. नाम बदलने से मूलभूत व्यवस्था में शायद ही कोई परिवर्तन आए.


राजपथ का नाम कर्तव्यपथ करने के पीछे क्या है सरकार की मंशा?

राजपथ का इतिहास
राजपथ का 102 साल में यह तीसरी बार है कि जब उसका नाम बदला गया है. सबसे पहले ब्रिटिश सरकार में इस सड़क को किग्सवे नाम दिया गया, लेकिन आजादी मिलने के बाद 1961 में इसका नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया. अब 61 साल बाद एक बार फिर से इसका नाम बदल दिया गया है. देश की आजादी के 75 सालों से राजपथ पर ही गणतंत्र दिवस की परेड हो रही है.  


राजपथ का नाम कर्तव्यपथ करने के पीछे क्या है सरकार की मंशा?

इलाहाबाद को प्रयागराज करना
हालांकि बीजेपी जब से सत्ता में आई है तब से ही कई जगह और योजनाओं के नाम बदले हैं. इसके पीछे सरकार की दो तरह ही मंशा है. एक तो सरकार औपनिवेशिक काल की निशानियों को मिटा देना चाहती है और दूसरी मुगलों की निशानी वाले नामों भी हटाना चाहती है. यही कारण है कि मोदी सरकार ने कई मुस्लिम नामों वाले जगहों के नाम हिन्दुओं के नाम पर कर दिया. सबसे बड़ा उदाहरण है इलाहाबाद को प्रयागराज कर देना. ऐसे ही अब राजपथ जो पहले किग्सवे नाम से जाना जाता था उसे कर्तव्य पथ का नाम दे दिया गया है. 

क्या है सरकार की मंशा
गुलामी के प्रतीकों को मिटाना सरकार के लिए जनता के बीच एक लोकप्रिय फैसला है. ऐसे फैसलों से कौन नहीं खुश होगा. लेकिन इसके पीछे की पोलिटिकल माइलेज लेने की भी बात है. मोदी सरकार राष्ट्रवाद की लहर पर सवाल है और वह ऐसे फैसलों के जरिए इस लहर को बनाए रखना चाहती है. जाहिर लोकसभा चुनाव 2024 में ये इस मुद्दे को बीजेपी विपक्ष के सामने खूब भुनाएगी. विपक्ष को इसके लिए भी से तैयारी करनी होगी.

 

 

 

 

 

 

 

 

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