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सैनेटरी पैड आज भी भारत में करोड़ों महिलाओं की पहुंच से दूर क्यों है?

किशोरावस्था में लड़कियों को पीरियड्स आना प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस दौरान उन्हें सही गाइडलाइन के साथ सैनेटरी पैड मिलना उनकी बुनियादी जरूरत है,

भारत में सैनिटरी पैड की औसत कीमत 5 से 12 रुपये प्रति पैड के बीच है जो कि औसत कमाई वाले परिवारों की महिलाओं के लिए किसी लग्जरी जैसा है. यही कारण है कि देश की 255 मिलियन महिलाओं में से सिर्फ 12 फीसदी औरतें ही सैनिटरी का पैड का इस्तेमाल कर पाती हैं.

किशोरावस्था में लड़कियों को पीरियड आना प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस दौरान उन्हें सही गाइडलाइन के साथ सैनेटरी पैड मिलना उनकी बुनियादी जरूरत है, लेकिन यह अपने आप में दुखदायी तथ्य है कि बुनियादी हक की मांग करने पर शीर्ष पद पर बैठी एक आईएएस अधिकारी हरजोत कौर भामरा कहती हैं, 'आज आप सैनिटरी पैड मांग रहे हैं, कल कंडोम मांगेंगे. इस मांग का कोई अंत नहीं है.'

विडंबना यह है IAS ने जिस कार्यक्रम में ये विवादित बयान दिया, उस कार्यक्रम का नाम था "सशक्त बेटी, समृद्ध बिहार: टुवर्ड्स इन्हैन्सिंग द वैल्यू ऑफ़ गर्ल चाइल्ड". दरअसल बिहार के पटना में मंगलवार यानी 27 सितंबर को महिला एवं बाल विकास निगम और यूनिसेफ ने एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया था. जहां  झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली छात्राओं को बुलाया गया था. 

कौर की इस टिप्पणी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. आखिर कम कीमत पर सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने के रिक्वेस्ट पर अधिकारी ने छात्र को फटकार क्यों लगाई? क्या हमारे देश में मासिक धर्म वाली हर महिला के लिए सैनिटरी पैड एक बुनियादी जरूरत नहीं है? फिर महिलाएं मुफ्त सैनिटरी पैड मांगती है तो इसमें क्या हर्ज है? इसके अलावा, भामरा ने सैनिटरी पैड को कंडोम से क्यों जोड़ा? क्या पैड को कंडोम से जोड़ना इसे सेक्शुलाइज करने की कोशिश नहीं है? अगर सरकार कम कीमत पर या मुफ्त में कंडोम उपलब्ध कराती है तो इसमें गलत क्या है? 

सबसे पहले तो यह अपने आप में ही चौंकाने वाला है कि एक महिला IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी ने कम कीमत पर सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने के सवाल पर इतनी असंवेदनशील प्रतिक्रिया दी. उनकी इस टिप्पणी से समाज में महिलाओं की समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता नजर आती है. 

 

पीरियड्स महिलाओं की मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण 

एक रिसर्च की माने तो भारत में ज्यादातर लड़कियों को पीरियड्स आने से पहले इसके बारे में कुछ जानकारी नहीं होती है. वहीं सैनिटरी पैड की कमी के कारण हमारे देश में बड़ी संख्या में लड़कियां माहवारी के समय कपड़ा, टाट, रेत या राख आदि का इस्तेमाल करती हैं, जो स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से ठीक नहीं है. पीरिड्स के समय सैनिटरी पैड नहीं इस्तेमाल करना महिलाओं के बीमार होने और अपनी जान गंवाने का एक प्रमुख कारण है.

वॉटर एड की एक रिपोर्ट के अनुसार पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर सतर्कता की कमी 8,00,000 महिलाओं की मृत्यु का कारण है और यही भारत में महिलाओं की मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण भी है. 


सैनेटरी पैड आज भी भारत में करोड़ों महिलाओं की पहुंच से दूर क्यों है?

2018 में पैड को किया गया था टैक्स फ्री

हालांकि 2018 में सरकार ने सैनिटरी पैड को टैक्स फ्री कर दिया, लेकिन भारत में सैनिटरी पैड की औसत कीमत पांच से 12 रुपये है. जो कि 80 करोड़ लड़कियों के लिए लग्जरी जैसा है. ऐसे में देश की महिलाओं के मासिक धर्म की स्वच्छता सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है? अगर उनकी ये बुनियादी मांग पूरी नहीं हुई तो महिलाएं सशक्त होने के लिए कैसे जीवित रहेंगी?

पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़े इस्तेमाल करना महिलाओं के लिए कितना खतरनाक है इसपर AbP न्यूज के बात करते हुए डॉक्टर निभा शर्मा कहतीं हैं कि घर में रखे पुराने गंदे कपड़े का इस्तेमाल करना भारी पड़ सकता है. इससे संक्रमण का खतरा रहता है. महिलाओं को 6 घंटे के अंतराल पर सैनिटरी नैपकिन बदलना चाहिए. साथ ही उन्हें अपने आस पास के जगहों जैसे बिस्तर की सफाई का ध्यान रखना चाहिए. मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को समय-समय पर बेडशीट बदलते रहना चाहिए. अगर आप यात्रा कर रही हैं और शौचालय जाना हो तो सफाई वाली जगह पर जाएं. खान-पान का रखें ख्याल रखना बेहद जरूरी है. 

डॉक्टर ने कहा कि पीरियड्स के समय स्वच्छता का ख्याल नहीं रखने पर महिलाओं को वैजाइनल इंफेक्शन, सर्वाइकल कैंसर, सर्विक्स इंफेक्शन, फैलोपियन ट्यूब और ओवरी का इंफेक्शन होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. 


सैनेटरी पैड आज भी भारत में करोड़ों महिलाओं की पहुंच से दूर क्यों है?

वहीं पैड खरीदना या पीरियड्स के बारे में बात करना आज भी इतना कठिन क्यों है. इसपर abp न्यूज से बात करते हुए पटना की वीमेंस कॉलेज में पढ़ने वाली शिवानी कहती है मुझे बचपन में इसके बारे में कुछ नहीं पता था. घर में अकेली बहन होने के कारण पीरियड्स होने के बाद भी इसपर किसी से बात नहीं कर पाती थी. मुझे लगता है कि हमें पीरियड्स, पैड इन सबके बारे में माता पिता से सीखना चाहिए. इससे एक फायदा ये होगा कि हम उनसे पीरियडस से जुड़ी किसी परेशानी को बिना किसी झिझक के साझा कर सकेंगे. 

राघव जो 27 साल के हैं, उन्होंने कहा कि घर में तीन बहनों के होते हुए भी मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता था. धीरे धीरे जब मेरी महिलाओं से दोस्ती हुई तो मुझे पीरियड्स का कॉन्सेप्ट क्लीयर हुआ. मुझे लगता है कि किसी अन्य बीमारी की तरह हमें पीरियड्स पर भी खुलकर बात करनी चाहिए. 

इस देश में फ्री है सेनेटरी पैड 

नवंबर 2020 में, स्कॉटलैंड की संसद में 'द पीरियड प्रोडक्ट्स (फ्री प्रोविजन) (स्कॉटलैंड) बिल' पारित किया. इसके अलावा न्यूजीलैंड के सभी स्कूल में जून 2021 से अगले तीन साल के लिए मुफ्त टैम्पोन और सैनिटरी पैड दिया जाएगा. वहीं ऑस्ट्रेलिया, केन्या, ब्रिटेन और US के राज्यों में भी सेनेटरी पैड मुफ्त में दी जा रही है. 

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