Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह यानी सेम सेक्स मैरिज को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मैराथन सुनवाई जारी है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार और याचिकाकर्ताओं की तरफ से अपनी-अपनी दलीलें दी जा रही हैं. इन सुनवाइयों के दौरान काफी कुछ ऐसा हुआ है, जिसने मामले की तस्वीर को साफ कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से समलैंगिक विवाह का जोरदार विरोध किया जा रहा है, इसे लेकर सरकार ने अब तक जो तर्क दिए हैं उनक काफी चर्चा हो रही है. आज हम आपको बताएंगे कि इस मामले की अब तक की बहस में क्या-क्या हुआ है और इससे क्या पता चला है. 


समलैंगिक विवाह का मामला 
पिछले लंबे वक्त से भारत में समलैंगिकता को लेकर बहस चल रही थी, जिसके बाद साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. LGBTQ कम्युनिटी ने इस फैसले का जोरदार स्वागत किया और इसे अपनी बड़ी जीत बताया. इसके बाद समलैंगिक विवाह को भारत में कानूनी मान्यता देने की मांग उठने लगी. इसे लेकर याचिकाएं दायर होने लगीं, लेकिन मामला तब पूरी तरह से सामने आया जब हैदराबाद के गे कपल अभय डांग और सुप्रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. साल 2022 में ये याचिका दायर की गई थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस पर जवाब मांगा और देश की तमाम अदालतों में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ही ट्रांसफर कर दिया. 


सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ इस पूरे मामले की सुनवाई कर रही है. जिसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं. 


मामले को लेकर दी गईं अहम दलीलें
अब सीधे मुद्दे पर आते हैं और आपको बताते हैं कि अब तक की सुनवाई के दौरान किस पक्ष की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कौन सी दलीलें दी गई हैं. इस मामले में दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस भी देखने को मिली, वहीं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी मामले में टिप्पणी करते नजर आए. अब तक मामले में 6 दिन की सुनवाई हुई है.  



  • आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार से पूछा गया कि अगर कानून नहीं बनाया जाना चाहिए तो आप बताएं कि आप इस समुदाय की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं. इसके लिए सरकार को 3 मई तक का वक्त दिया गया है. 

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार इन लोगों के लिए लोन, इंश्योरेंस, बैंक अकाउंट, स्कूल दाखिला आदि मामलों में क्या कर सकती है? जिस पर अब सरकार को जवाब देना है. 

  • सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलीलें रख रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी दलील ये है कि कानून बनाने का अधिकार संसद को है. इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी मौखिक सहमति जताई गई. 

  • हालांकि तुषार मेहता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि सरकार बिना कानूनी मान्यता दिए इस समुदाय के लोगों को अलग-अलग तरह की योजनाओं से लाभ देने पर विचार कर सकती है. 

  • तुषार मेहता की तरफ से दलील देते हुए कहा गया कि अगर सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी जाती है तो कल कोई कोर्ट में भाई-बहन के बीच के संबंध को लेकर भी कहेगा कि ये उसका मौलिक अधिकार है और इसमें सरकार दखल नहीं दे सकती है. 

  • सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि एक कानूनी रूप से वैध शादी क्या है और किसके बीच हुई है, इस बात को कौन तय करेगा? ऐसी कई श्रेणियों को मान्यता देने का असर 160 कानूनों पर पड़ेगा, जिनमें बदलाव करना मुमकिन नहीं है. 

  • सरकार ने कहा कि डोमेसाइल मामलों में पत्नी डोमेसाइल होती है, लेकिन गे मैरिज में मां कौन होगी? कोर्ट इसे कैसे तय करेगा? बच्चे की कस्टडी वाली बात आएगी तो कैसे तय किया जाएगा. इसके अलावा उत्तराधिकार का हवाला भी दिया गया. अगर किसी शख्स की मौत हो जाती है तो उसका पार्टनर कैसे खुद को उसकी पत्नी या पति के तौर पर साबित करेगा. 

  • सरकार की तरफ से दलील रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट में कहा जा रहा है कि 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी है, लेकिन ये कोई नहीं बता रहा है कि 194 में देशों में से महज कुछ देशों ने ही इसे मान्यता दी है. 

  • सरकार की तरफ से सुनवाई के दौरान ये भी दलील दी गई थी कि ये एक एलीट क्लास की विचारधारा है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र इसे शहरी एलीट क्लास की विचारधारा नहीं बता सकता है. ऐसा कहने के लिए या इस कॉन्सेप्ट को प्रूव करने के लिए उनके पास कोई डेटा नहीं है. 

  • याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील रख रहे सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये सुनकर दुख होता है कि सरकार इसे एलीटिस्ट अवधारणा मानती है, लेकिन ऐसा नहीं है. जब मैं रिसर्च कर रहा था तो मुझे रोमन सम्राट नीरो ने 1854 और 1858 में दो बार दो पुरुषों से शादी की थी. तब उसने भी शाही अदालतों से इसे मान्यता देने की बात कही थी. 

  • याचिकाकर्ताओं के वकील रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि आर्टिकल 14,15,19 और 21 के तहत हम अपने सभी अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहते हैं. क्योंकि अब समलैंगिकों को समान अधिकार हासिल करने में बाधा बनी आईपीसी की धारा 377 को निरस्त कर दिया गया है. 

  • एक दूसरे याचिकाकर्ता के वकील ने बच्चा गोद लेने और उसकी परवरिश करने को लेकर कहा कि हमारे देश में इसका एक तरीका है. इस दौरान उन्होंने हवाईयन केस का जिक्र करते हुए कहा कि इस दौरान जुटाए गए डेटा के मुताबिक ऐसे कोई सबूत नहीं मिले कि गे, लेस्बियन या फिर सेम सेक्स वाले कपल बच्चों को उचित सुरक्षा और उनकी परवरिश नहीं कर सकते हैं. 

  • सुप्रीम कोर्ट में पुरुष और महिला की अवधारणा पर भी बहस हुई. जिसमें एसजी तुषार मेहता ने कहा कि एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच के ही रिश्ते को हमारे समाज में मान्यता मिली है. इस पर सीजेआई ने कहा कि संपूर्ण पुरुष और महिला की कोई भी पुख्ता अवधारणा नहीं है. इस पर बहस करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि बायोलॉजिकल पुरुष का मतलब पुरुष ही होता है. इसमें कोई सवाल ही नहीं है. 

  • सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक संबंधों को सिर्फ शारीरिक संबंध के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. इसमें भावनात्मक चीजें ज्यादा हैं. इसे अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद हम सामाजिक तौर पर उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां कोई ये सोच सकता है कि इस श्रेणी में आने वाले लोग शादी कर सकते हैं. 


अब तक की बहस से क्या तस्वीर हुई साफ
आपने सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस की हर बड़ी बात को जान लिया, तो अब सवाल है कि इस पूरे मामले पर क्या तस्वीर साफ होती दिख रही है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि सरकार का संसद के अधिकार वाला तर्क सही है. अब 3 मई को सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में ये जवाब दिया जाएगा कि वो LGBTQ+ को समाजिक तौर पर सुविधाएं देने के लिए क्या कदम उठा सकता है. इसके बाद मुमकिन है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को कुछ कानूनों में संशोधन का निर्देश दे. 


अब अगर गेंद सरकार के पाले में गिरती है तो समलैंगिकों को लेकर उसका रुख साफ है. यानी सरकार किसी भी हाल में इसे मान्यता देने के लिए कानून नहीं बनाने वाली. सुप्रीम कोर्ट भी कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता. इसकी जगह सरकार की तरफ से LGBTQ+ के लोगों को कई तरह की सुविधाएं और सामाजिक जीवन जीने के लिए कुछ अधिकार दिए जा सकते हैं. वहीं अगर सुप्रीम कोर्ट फैसला समलैंगिकों के पक्ष में सुनाता है और सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देता है तो भी सरकार संसद में कानून पारित कर उस आदेश को खत्म कर सकती है. क्योंकि सरकार का कहना है कि भारतीय समाज इस तरह के विवाह को स्वीकार नहीं करेगा. 


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