शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन: भारत के लिए कितना अहम, पीएम मोदी चीन से क्या मनवाना चाहेंगे?
भारत कनेक्टिविटी के प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है और चीन इस मंच पर अपनी मौजूदगी बना ले इससे अच्छा ये है कि भारत इस मंच पर रहकर संगठन का हिस्सा बनकर भागीदार बने.
उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन 2022 की मीटिंग 15 और 16 सितंबर को होने जा रहा है. भारत और चीन के बीच एलएसी पर पिछले करीब दो साल से भी ज्यादा समय से तनाव बरकरार है.
पैंगोंग लेक और गोगरा-हॉट स्प्रिंग में दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अभी भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. लेकिन, 15-16 सितंबर को शंघाई शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली मुलाकात से दोनों देशों के संबंधों की बेहतरी की उम्मीद की जा रही है.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी एससीओ परिषद के राष्ट्र प्रमुखों की होने वाली 22वीं बैठक में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव के निमंत्रण पर यह दौरा करेंगे.
शंघाई शिखर सम्मेलन भारत के लिए कितना अहम?
शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन भारत के लिए कितना अहम है? इस सवाल का जवाब देते हुए एबीपी न्यू़ज के पत्रकार प्रणय उपाध्याय कहते हैं, "भारत के लिए ये मध्य एशिया से जुड़ने का महत्वपूर्ण मंच है. ये दुनिया का सबसे बड़ क्षेत्रीय संगठन भी है. इसके सदस्य देशों में दुनिया की 40 फीसदी की आबादी रहती है, इसके साथ ही दुनिया के कुल व्यापार का 24 फीसदी यहीं से होता है. भारत के लिए यह ऐतिहासिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उज्बेकिस्तान के समरकंद का इलाका वही है जहां से पहले सिल्क का व्यापार यूरोप तक होता था."
शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक लिहाज से व्यापार का रास्ता खोलने वाला मंच है. इसलिए भारत इसमें रहना चाहता है. इस ग्रुप में जितने देश है वो एनर्जी संम्पन्न हैं, कोई भी देश जो एनर्जी का कंज्यूमर है वो चाहेगा कि सप्लायर देशों के साथ किसी न किसी मंच पर रहे और भारत इसका कंज्यूमर है. एसईओ की बात करें तो इसमें चार न्यूक्लियर संपन्न देश भारत, पाकिस्तान, रूस और चीन हैं, सिक्योरिटी काउंसिल के दो रूस और चीन सदस्य हैं, इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़ा आबादी वाले देश भारत और चीन हैं.
क्योंकि ये देश भारत के पड़ोसी हैं, इस लिहाज से भारत के लिए बातचीत, क्षेत्रीय सहयोग जरूरी है और चीन के साथ भारत की 4500 किलोमीटर की सीमा लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल लगती है. वहीं भारत के रूस साथ पुराने अच्छे रिश्ते हैं और हम रूस पर कई चीजों पर निर्भर भी हैं. इसलिए भारत को इन बाजारों की जरूरत है. इसी कारण भारत शंघाई सहयोग संगठन के मंच पर रहना चाहता है और इन मुद्दों पर बातचीत करना चाहता है.
उन्होंने कहा, भारत कनेक्टिविटी के प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है और चीन इस मंच पर अपनी मौजूदगी बना ले इससे अच्छा ये है कि भारत इस मंच पर रहकर संगठन का हिस्सा बनकर भागीदार बने.
प्रणय कहते हैं, इस सम्मेलन के ट्रेड, कनेक्टिविटी और एनर्जी तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं. वहीं इस क्षेत्र में आतंकवाद भी एक फैक्टर है क्योंकि विकास की योजनाएं इससे प्रभावित होती हैं. सभी हिस्सेदार देश रैट्स के जरिए आतंकवाद को कम करना चाहते हैं. रैट्स आतंकवाद गतिविधियों को कम करने के लिए एक संस्था है जो एसीओ का हिस्सा है. चीन की इन इलाकों में दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि उसके द्वारा 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' परियोजना को आगे बढ़ाना चाहता है. वहीं चीन इन इलाकों में निवेश भी कर रहा है. इसलिए भारत की इच्छा है कि वह इस संगठन में रहे और चीन ऐसा कुछ न कर दे जिससे भारत को धक्का लगे.
भारत चीन से क्या मनवाना चाहेगा?
वहीं चीन से विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कौन सी बड़ी बातें हैं जो वो चीन से मनवाना चाहेंगे? इस सवाल पर प्रणय उपाध्याय कहते हैं, भारत चाहता है कि इस सम्मेलन में जो भी तय हो उसमें हमारा श्रेय हो. इस सम्मेलन में तय होगा कि इस संगठन के देश डॉलर पर निर्भर न रहें, हम आपस में इंटरनली करेंसी में ही व्यापार करें. जैसे रूपया-रूबल ट्रेड, युआन- रूबल के बीच ट्रेड. इसके अलावा सम्मेलन में अगर एनर्जी पर कोई बात होती है तो उसमें भारत भी हिस्सा हो. वहीं अगर पीएम मोदी और शी चिनफिंग की मुलाकात होती है तो भारत ये दोहराने की कोशिश करेगा कि सीमा पर शांति और स्थायित्व बने और यही हमारे रिश्तों का आधार है.
सीमा पर शांति और स्थायित्व के बिना दोनों देश व्यापार आगे नहीं बढ़ा सकते. इसके अलावा बाकी सारे मुद्दों पर भी आगे बढ़ना मुश्किल है. भारत चीन के सामने ये बात भी रखेगा कि सीमा पर जहां-जहां मोर्चे बने हैं उसको हटाया जाए. पूर्वी लद्दाख में जो 28 महीने से तनाव चल रहा है उसे अप्रैल 2020 की स्थिति में लेकर आएं. जिस फौज को चीन ने सीमा पर बढ़ाया था उसे पीछे ले और आमने-सामने के मोर्चे को कम करें.
कब हुई शुरूआत
एससीओ की शुरुआत जून 2001 में शंघाई में हुई थी. इसके छह संस्थापक सदस्य समेत आठ पूर्णकालिक सदस्य हैं. संस्थापक सदस्य देशों में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान हैं. भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके पूर्णकालिक सदस्यों के रूप में शामिल हुए थे. एससीओ के पर्यवेक्षक देशों में अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया शामिल हैं, वहीं संवाद साझेदारों में कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका, तुर्की, आर्मीनिया और अजरबैजान हैं.
एससीओ का मुख्यालय बीजिंग में है. एससीओ का विस्तार रूप शंघाई सहयोग संगठन है. शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना साल 2001 में हुई थी. रूस, चीन, कजाकिस्तान, ताजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान और किर्गिज गणराज्य ने शंघाई में इसकी स्थापना की थी. भारत 2005 में SCO में पर्यवेक्षक बना और 2017 में पाकिस्तान के साथ सदस्यता प्राप्त की.
PM मोदी की बड़े नेताओं से मुलाकात संभव
साल 2020 में कोविड महामारी आने के बाद यह पहला मौका है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेंगे. कोविड की चिंताओं को छोड़ते हुए एससीओ सम्मेलन में शी चिनफिंग के शामिल होने की आकस्मिक घोषणा हुई.
एससीओ समिट 2022 का एजेंडा क्या?
एससीओ समिट 2022 में रूस और यूक्रेन जंग का मसला अहम एजेंडे में शामिल है. रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन पर हमले से बने भू-राजनीतिक संकट को लेकर चर्चा होने की उम्मीद जताई जा रही है. युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ है. जंग की वजह से दोनों देशों में खाद्य संकट भी गहरा गया है. पीएम मोदी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति यूक्रेन में जंग के मसले पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मिलकर कुछ अहम और ठोस पहल कर सकते हैं. इसके साथ ही मध्य एशियाई देशों के बीच ट्रेड को लेकर अहम चर्चा होनी भी संभव है.
दो साल बाद चीन से बाहर चिनफिंग
वहीं चिनफिंग दो साल से ज्यादा समय के अंतराल के बाद पहली बार चीन के बाहर गये हैं. वह जनवरी 2020 के बाद से अपनी पहली राजकीय यात्रा पर कजाकिस्तान गये और वहां से समरकंद में एससीओ सम्मेलन में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान जाएंगे. हालांकि चीन ने अपने कार्यक्रमों से पर्दा नहीं उठाया है और शी चिनफिंग की सम्मेलन से इतर पुतिन और मोदी से मुलाकात की खबरों की पुष्टि नहीं की है.
भारत-चीन विवाद
बता दें कि चीन ने गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स में पेट्रोल प्वाइंट 15 से अपने सैनिकों को वापस लेने की भारत की मांग को पिछले दिनों स्वीकार कर लिया था. कुछ विशेषज्ञों ने इसे पूर्वी लद्दाख में जारी सैन्य गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में कदम बताया जो मई 2020 में शुरू हुआ था और जिसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव आ गये थे.
दोनों देशों ने सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के परिणाम स्वरूप पिछले साल पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण किनारों पर और गोगरा इलाके से सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी. पेट्रोल प्वाइंट 15 से सैनिकों की वापसी के बाद से समरकंद में मोदी और शी चिनफिंग की मुलाकात की संभावना को लेकर अटकल शुरू हो गयी थी.
शी चिनफिंग के लिए यात्रा महत्वपूर्ण
वहीं चीन ने कहा है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग की कजाकिस्तान और शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में शामिल होने के लिए उजबेकिस्तान की यात्रा अगले महीने होने वाले सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के कांग्रेस से पहले 'सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम' है. संभावना जताई जा रही है कि कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में चिनफिंग को रिकॉर्ड तीसरे कार्यकाल के लिए चुना जा सकता है.
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने शी की यात्रा पर जानकारी देते हुए मीडिया से कहा, "20वीं कांग्रेस से पहले राष्ट्र प्रमुख स्तर की कूटनीति में यह सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम होगा जो एससीओ को चीन की ओर से दिये जाने वाले महत्व और कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ हमारे संबंधों को दर्शाता है."
हालांकि माओ ने दो दिवसीय सम्मेलन से इतर पुतिन समेत अन्य नेताओं के साथ शी की बैठकों के बारे में पुष्टि नहीं की है. लेकिन उन्होंने कहा कि माओ के अनुसार चीन और रूस के राष्ट्रपति लंबे समय से अनेक तरीकों से रणनीतिक संवाद करते रहे हैं और द्विपक्षीय सबंधों को हमेशा सही दिशा में रखते हैं.
भारत की कोशिश इस मंच पर अपना दखल बढ़ाने की है. वहीं एससीओ के शिखर सम्मेलन पर सभी की निगाहें रहेंगी और इसके अलावा शी की पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ समेत अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकों की संभावना पर भी नजर रखी जाएगी.