Shankaracharya Fight: आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार के लिए देश की चार दिशाओं में चार पीठ की स्थापनी की. चारों पीठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है. सनातन धर्म (Sanatan Dharma) के इन प्रमुख पदों को लेकर जो स्थिति रही और जो है वो हैरान कर देने वाली है. पूर्व में चार पीठ (Shakti Peeth) में से तीन पर विवाद रहा है. कहीं परंपरा का उल्लंघन तो कहीं पद पर एक से ज्यादा का दावा रहा. इसके अलावा ये भी कहा गया कि जब 4 पीठ हैं तो पिछले कई सालों से तीन ही शंकराचार्य उन्हें क्यों देख रहे हैं?
दरअसल, स्वामी स्वरूपानंद साल 1973 में ज्योतिष मठ के शंकराचार्य तो थे ही, साल 1982 में वो द्वारका पीठ के शंकराचार्य भी बन गए. जब स्वरूपानंद दूसरे मठ का जिम्मा संभालने लग गए तो ये तर्क दिया गया था कि जैसे किसी राज्य में आपातस्थिति में व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक राज्यपाल को दूसरे राज्य के राज्यपाल का जिम्मा दे दिया जाता है वैसे ही ये व्यवस्था भी हुई है. तो वहीं स्वारूपानंद के विरोधियों का कहना था कि राज्यपाल हमेशा के लिए दो राज्यों की देखरेख नहीं करता है.
शंकराचार्यों में दावेदारी की लड़ाई
इसके अलावा ये भी विवाद रहा कि चार प्रमुख मठ यानी द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ को आदि पीठ नहीं मानते हैं और न हीं वहां के शंकराचार्य को शंकराचार्य कहने को राजी होते हैं. ये अलग बात है कि वक्त की मांग पर वहां के शंकराचार्य का आसन भी दूसरे शंकराचार्यों के समानांतर लगाया जा चुका है. अगर कांची पीठ के विवाद को हटा भी दिया जाए तो एक पक्ष ये भी है कि 4 प्रमुख मठों के शंकराचार्यों ने अपनी-अपनी दावेदारी की लड़ाई लड़ी है.
4 पीठों के शंकराचार्य, अपनी-अपनी दावेदारी
- पुरी, गोवर्धन पीठ- एक समय में यहां स्वामी निश्चलानंद सरस्वती तो शंकराचार्य थे ही लेकिन अधोक्षजानंद सरस्वती भी खुद को उसी पीठ का शंकराचार्य कहते रहे.
- द्वारका, शारदा पीठ- स्वामी स्वरूपानंद और राज राजेश्वर आश्रम की दावेदारी.
- बद्रीनाथ, ज्योतिष पीठ- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद और स्वामी वासुदेवानंद की दावेदारी. इन दोनों के बीच सालों से चलने वाली जुबानी जंग चर्चित रही. इसके अलावा इसी मठ पर माधवाश्रम की दावेदारी.
- कर्नाटक, श्रृंगेरी मठ- शंकराचार्य भारती तीर्थ और उनके समांतर 14 अन्य स्मीगण शंकराचार्य उपनाम से जगतगुरु बने रहे.
ये तो हुई शंकराचार्यों में आपसी लड़ाई और विवाद की कहानी. अब बात करते हैं तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ की और उसका महत्व क्या है?
कांची कामकोटि पीठ
कांची कामकोटि पीठ तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम में स्थित है. इसकी स्थापना का श्रेय पंरपरागत रूप से आदि शंकर को दिया जाता है. आदि शंकर के बारे में कहा जाता है कि वो अपने जीवन के आखिरी सालों में यहीं पर रहे थे. इस मठ के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है. kamakoti.org के मुताबिक इस पीठ की स्थापना 482 ईसा पूर्व में की गई थी. मठ परंपरा के सिद्धातों के अनुसार, मुनष्य सामाजिक जीवन के सभी छोटे-बड़े पहलुओं को समझकर समाज को संतुलित और व्यवस्थित रखने का प्रयास करता है. कामकोटि पीठ का नाम कामाक्षी का नाम पर रखा गया है. कामाक्षी को को दुर्गा देवी के रूप में जाना जाता है.
कांची कामकोटि पीठ का महत्व
कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shaktipeeth) 51 शक्तिपीठों में से एक है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) के पुराणों के मुताबिक, जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए गए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. ये पवित्र तीर्थ स्थल कहलाए गए हैं. कांची कामकोटि पीठ के बारे में एक मान्यता ये भी है कि यहां पर देवी के कंकाल गिरा था. यहां देवी कामाक्षी का विशाल मंदिर (Huge Temple) भी है. ये दक्षिण भारत का प्रमुख शक्तिपीठ है. कांची के तीन भाग हैं- शिवकांची, विष्णुकांची और जैनकांची.
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