Uddhav Thackeray Vs Shiv Sena MPs:  शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के महाराष्ट्र की कुर्सी गंवाने के बाद से ही उनके लिए मुश्किलों के दौर थम नहीं रहे हैं. पहले बगावती एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व में पार्टी से बाहर गए विधायकों (MLA) की वजह से उनको मुंह की खानी पड़ी और सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा. रही-सही कसर पार्टी के सांसद पूरी कर रहे हैं. शिवसेना के एक सांसद ने उनसे एनडीए (NDA) की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu ) को समर्थन देने को लेटर लिखा तो एक बागी विधायक ने बुधवार को 18 सांसदों में से 12 के जल्द ही एकनाथ शिंदे गुट में शामिल होने का दावा ठोंक डाला. इस बागी विधायक के दावे के जवाब में शिवसेना की तरफ से साधी गई चुप्पी बहुत कुछ कह रही है. अब इस आलम में जल्द ही उद्धव ठाकरे  यह कहते नजर आएं, 'गिला हम क्या करें परायों से कि अपने ही हमें दगा देने पर उतर आए हैं, हमारा ही पाकर सपोर्ट हमें लूटने चले आए हैं' तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी.


क्यों हैं उद्धव के सितारे गर्दिश में


उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अब अपनी संसदीय विंग (Parliamentary Wing) से उठ रही अशांति की आवाजों का सामना करना पड़ सकता है. शिवसेना के सांसद राहुल शेवाले (Rahul Shewale) के उद्धव से एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन की घोषणा के अनुरोध करने के एक दिन बाद ही बागी विधायक गुलाब राव पाटिल (Gulabrao Patil) ने बुधवार को दावा किया कि पार्टी के 18 में से 12 सांसद जल्द ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट में शामिल हो जाएंगे और आश्चर्य की बात है कि बागी विधायकों के इस दावे को पार्टी सूत्रों ने नकारा भी नहीं है. जलगांव (Jalgaon) में अपने चुनावी क्षेत्र में विधायक पाटिल ने पत्रकारों के सामने बड़े दमखम से ये दावा किया है. गौरतलब है कि विधायक पाटिल उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाडी सरकार (MVA) में मंत्री रहे हैं. उन्होंने कहा, 'हमारे बगावती कैंप के पास 55 एमएलए में से 40 एमएलए हैं और 18 में से 12 एमपी हमारे साथ हैं.' उन्होंने ये दावा भी किया कि उन्होंने चार सांसदों के साथ व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात की है. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही हमारे साथ 22 पूर्व (Former) एमएलए भी हैं.  


एमपी ने कहा द्रौपदी मुर्मू को दें समर्थन


शिवसेना के सांसद राहुल शेवाले (Rahul Shewale) ने मंगलवार की रात को उद्धव ठाकरे को एक लेटर लिखा. इसमें उन्होंने पार्टी प्रमुख से सभी शिवसेना के सभी सांसदों से एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन के लिए को कहने के लिए कहा. इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मुर्मू की जनजातीय (Tribe) जड़ों को ध्यान में रखने के साथ ही उनके सामाजिक क्षेत्रों में किए गए सेवा कार्यों को देखते उनके नाम पर समर्थन देने को कहा. उन्होंने अपने इस लेटर में ये भी लिखा कि जिस तरह बाल ठाकरे (Bal Thackeray) ने राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर यूपीए (UPA) की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल (Pratibha Patil) और दिवगंत प्रणव मुखर्जी (Pranab Mukherjee) को समर्थन दिया था, उसी तरह से वह भी अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाएं.


व्हिप चीफ का बदला जाना भी है दे रहा संकेत


शिवसेना ने बुधवार 6 जुलाई को लोकसभा के चीफ व्हिप ( Chief Whip) पद से भावना गवली (Bhavna Gawali) को हटा दिया. उसकी जगह एमपी रंजन विचारे (Ranjan Vichare Gawali ) को इस पद पर बैठाया गया. भावना गवली यवतमाल-वाशिम की वही एमपी हैं, जिन्होंने एकनाथ शिंदे की बगावत के दौरान शिवसेना को बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन करने की सलाह दे डाली थी, इसलिए ही शायद वो शिवसेना प्रमुख का निशाना बनीं. गौरतलब है कि शिवसेना के लोकसभा में 18 और राज्यसभा में तीन सांसद हैं. इसके साथ ही उद्धव कैंप के नेता पार्टी चीफ से खिन्न होने की बात को स्वीकार करते हैं.


एमपी को सताने लगी है अगले चुनाव की चिंता


उद्वव के साथ खड़े पार्टी के 18 सांसदों को अब आने वाले चुनावों की चिंता भी सताने लगी है. अगर इन सांसदों में से एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे (Shrikant Shinde) के छोड़ दिया जाए. सांसदों में इस बात को लेकर निराशा है कि पार्टी के निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के विधायकों के बागी होने के बाद उनके लिए यहां से अपने इलाकों में अगला लोकसभा का चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है. सामान्यतः इस सूबे के प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा खंड (Assembly Segment) पड़ते हैं. इसके अलावा बीते 2019 के लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र (Maharashtra) में  48 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उस वक्त वह बीजेपी के साथ गठबंधन में रहते लड़ी थी तो शिवसेना की इस जीत और प्रदर्शन का सेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Damodardas Modi ) की लोकप्रियता के सिर बंधा था. आलम यह था कि कई निर्वाचन क्षेत्रों में विरोधी लहर से निपटने के लिए शिवसेना के उम्मीदवारों ने इन इलाकों में प्रधानमंत्री की बड़ी -बड़ी तस्वीरें लगाईं थीं. कई इलाकों में तो ये  दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे की तस्वीरों से भी बड़ी थीं. 


बगावती एमएलए की सफलता लुभा रही है


अब देखना ये है कि कितने लंबे वक्त तक शिवसेना सांसद किनारे पर खड़े होकर ये देखते रहेंगे कि बीजेपी और केंद्र सरकार के धन और बल के बदौलत पार्टी के ही बगावती विधायक मलाई खा रहे हैं. इससे उत्साहित होकर पार्टी के बगावती नेता लगातार उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे (Aaditya Thackeray) पर लगातार हमला बोल रहे हैं. इससे इनके बीच विरोध के स्वर उठना लाजिमी है. जैसा की पार्टी के बगावती नेता गुलाब राव पाटिल कहते हैं कि किस के आदेश के बल पर ये ठाकरे परिवार ये संगठन चलाता है. हमने जमीनी स्तर पर लगातार पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत की है. पार्टी के विकास के लिए हमने अपना खून बहाया है, लेकिन वही सब जो पार्टी के संजीदा कार्यकर्ता और पक्के सैनिक रहे, वही पार्टी ने संगठन में किनारे कर दिए. 


एकनाथ शिंदे ने भी किया इशारा


शिवसेना को दिन में तारे दिखा देने वाले बागी नेता और महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने भी इशारा किया कि अभी उद्धव के नेतृत्व वाली शिव सेना पार्टी से और भी बागियों का सामने आना बाकी है. उन्होंने कहा था कि संसद, जिला परिषदों, कॉरपोरेशन्स, ग्राम पंचायतों  में शिवसेना के ऐसे अनगिनत सदस्य हैं जो पार्टी से नाखुश हैं. उन्होंने कहा था कि वह जल्द ही सामने आएंगे. शायद शिंदे गुट ने इसका अंदाजा पहले ही लगा लिया था कि पार्टी की यह दरार और भी चौड़ी होगी और यह असंतोष संगठन के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता तक मुखर हो जाएगा. शिवसेना के अंदर इस तरह यह भीतरघाती असंतोष केवल चुने हुए सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहेगा और इसके आसार नजर भी आ रहे हैं. 


उद्धव के कैंप वाले भी हैं निराशा से भरे हुए


शिवसेना में जो नेता अभी भी पार्टी में हैं उनके बीच भी अब निराशा और खिन्नता हिलोरें मारने लगी है. वे इस बात को खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं कि वह उद्धव से खुश नहीं है. उनका कहना है कि पार्टी प्रमुख की तरफ से समस्या को सुलझाने के लिए कोई सार्थक और वास्तविक पहल नहीं की गई. एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि समस्या से है कि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं. जब-तक हम ये आत्मनिरीक्षण और इस बात का पता नहीं कर लेते कि हम अपनी ही पार्टी के सदस्यों को अपने साथ रखने में क्यों कामयाब नहीं हो पाए, हममें कैसे सुधार आ सकता है. दरअसल इसके लिए पार्टी की तरफ से सुधार के लिए कोई कोशिश की ही नहीं गई.


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