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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

जुल्फिकार, जूनागढ़ और भुट्टो परिवार का भारत से रिश्ता; बिलावल के लिए क्यों खास है भारत दौरा?

बिलावल भुट्टो पूरे 12 साल बाद भारत का दौरा करने वाले पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री होंगे. इससे पहले साल 2011 में हिना रब्बानी भारत आईं थीं.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO 2023) की एक मीटिंग में शामिल होने के लिए गोवा आ रहे हैं. भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस संगठन के नए सदस्य हैं. भुट्टो पूरे 12 साल बाद भारत का दौरा करने वाले पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री होंगे. इससे पहले साल 2011 में तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत एक कार्यक्रम में भारत आई थीं.

बिलावल पहली बार 11 साल पहले अपने पिता आसिफ़ अली ज़रदारी के साथ भारत आए थे जो उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी थे. 8 अप्रैल 2012 को दिल्ली में कदम रखते हुए बिलावल ने कहा था- "अस्सलाम वालेकुम, भारत आपके यहां शांति हो."

बिलावल की मां बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं. उनके नाना जुल्फिकार अली भुट्टो उसी मुल्क के विदेश मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का पद संभाल चुके हैं.

बिलावल भुट्टो, पाकिस्तान के उस राजनीतिक खानदान से ताल्लुक रखते हैं जिसका भारत से काफी गहरा संबंध रहा है. बिलावल न सिर्फ पड़ोसी मुल्क के विदेश मंत्री हैं. बल्कि उनके परिवार का भारत से 4 पीढ़ी पुराना रिश्ता भी है.

इसके अलावा भुट्टो परिवार का इतिहास भी 'भारत विरोध' से भरा रहा है. जुल्फिकार अली भुट्टो के बयानों से पता चलता है कि उनकी पूरी राजनीति खुद को 'कट्टर भारत विरोधी' साबित करने पर केंद्रित थी.

हालांकि बेनजीर भुट्टो भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपना आदर्श मानती थीं. आइए जानते हैं बिलावल भुट्टो के परिवार का भारत से क्या और कैसा रिश्ता था?

जूनागढ़ रियासत से जुड़ा हुआ है भुट्टो खानदान
बिलावल भुट्टो के परनाना शाहनवाज भुट्टो का जूनागढ़ से बेहद खास रिश्ता रहा है. शाहनवाज ब्रिटिश भारत के सिंध क्षेत्र (लरकाना) के बहुत बड़े जमींदार थे. उस वक्त उनके पास लगभग ढाई लाख एकड़ से भी ज्यादा जमीन थी.

ब्रिटिश भारत के सिंध का इलाका उस वक्त बॉम्बे प्रेसिडेंसी का ही पार्ट हुआ करता था. बॉम्बे प्रेसिडेंसी निर्माण में भी शाहनवाज भुट्टो का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

साल 1931 में बिलावल भुट्टो ने मांग की कि सिंध को बंबई प्रांत से अलग कर दिया जाए. साल 1935 में उनके इस मांग को मान लिया गया और साल 1937 के प्रांतीय चुनावों में शाहनवाज भुट्टो जिस पार्टी से चुनाव लड़े थे बाद में उसी पार्टी का मुस्लिम लीग में विलय हो गया. अब तक शाहनवाज भुट्टो बड़े मुस्लिम नेता के तौर पर स्थापित हो चुके थे. इसके बाद 1947 आते-आते वह जूनागढ़ रियासत से जुड़ गए.

शाहनवाज भुट्टो देश के विभाजन से पहले मौजूदा गुजरात की जूनागढ़ रियासत के नवाब मुहम्मद महाबत खान III के दीवान यानी प्रधानमंत्री बन गए थे.

कहा जाता है कि जूनागढ़ रियासत के नवाब मुहम्मद महाबत खान III को पाकिस्तान में विलय करने का आइडिया बिलावल के परनाना शाहनवाज भुट्टो ने ही दिया था. जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद महाबत खान ने ऐलान कर दिया कि वह पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं.

हालांकि जनमत संग्रह के बाद जूनागढ़ भारत में मिल गया. रियासत के नवाब पाकिस्तान चले गए और शाहनवाज एक बार फिर लरकाना चले गए जहां उनके पास ढाई लाख एकड़ जमीन थी. यहां आकर शाहनवाज राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए.

शाहनवाज ने चार शादियां की थी. जिनमें से उनकी दूसरी पत्नी लाखीबाई हिंदू धर्म की थी. शादी से पहले लाखीबाई ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था और अपना नाम बदलकर खुर्शीद बेगम कहलाने लगीं. इनकी तीन बेटियां और एक बेटे थे. बेटे का नाम था जुल्फिकार अली भुट्टो.


जुल्फिकार, जूनागढ़ और भुट्टो परिवार का भारत से रिश्ता; बिलावल के लिए क्यों खास है भारत दौरा?

(शाहनवाज भुट्टो)

नाना जुल्फिकार अली भुट्टो का मुंबई से था गहरा रिश्ता
बिलावल भुट्टो के नाना जुल्फिकार भुट्टो का भारत से काफी करीबी संबंध था. जुल्फीकार ने मुंबई के प्रतिष्ठित कैथेड्रल स्कूल में पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद साल 1942 के आसपास वह मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ने लगे. उस दौरान ही जुल्फिकार भारत बंटवारे की राजनीति करने वाले संगठन के आंदोलनों में सक्रिय हो गए थे.

जुल्फिकार भुट्टो अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय चले गए और जब वहां से वापस लौटा तो पाया कि भारत का बंटवारा हो चुका है.

साल 1957 में देश लौटते ही जुल्फिकार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल में सदस्य बन गए. जुल्फिकार राजनीति में सक्रिय रहे.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहते हुए जुल्फिकार ने 1965 में ऑपरेशन जिब्राल्टर चलवाया था. इस ऑपरेशन के तहत जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकी भेजे गए थे जिसे बाद में पकड़ लिया गया. साल 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत यहीं से हुई.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहते हुए भुट्टो ने साल 1966 में हुए ताशकंद समझौते का विरोध किया था. यह समझौता साल 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुआ था. यह समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अय्यूब खान के बीच हुआ था. कहा जाता है कि इस समझौते के दौरान किए गए विरोध के साथ ही भुट्टो की 'लोकप्रिय राजनीति' शुरू हुई थी.

साल 1967 में जुल्फिकार भुट्टो ने जनता को संबोधित करते हुए एक रैली में कहा कि 'हम 1 हजार साल तक भारत के साथ युद्ध लड़ेंगे'. उन्होंने अपनी राजनीति को चमकाने के लिए 1960 के दशक की भारत विरोधी लहर का पूरा फायदा उठाया.

जुल्फिकार ने साल 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम का एजेंडा तैयार किया था. जुल्फिकार भुट्टो ही वो नेता थे जिन्होंने भारत से मुकाबले की होड़ में चर्चित बयान दिया था कि भले ही पाकिस्तानी घास खाएंगे लेकिन परमाणु बम जरूर बनाएंगे.

साल 1971 में जिस दिन बांग्लादेश बनने वाला था उस दिन जुल्फिकार अली भुट्टो अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में थे. वहां उन्होंने सीजफायर के समझौते का विरोध जताते हुए समझौते के कागज को फाड़ दिया और बैठक से उठकर चले गए.  उनका यह तेवर पाकिस्तानियों को खूब पसंद आया.

जुल्फिकार अली भुट्टो साल 1973 से 1977 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर दिया. भुट्टो के खिलाफ हत्या के एक मामले में अक्टूबर 1977 में मुकदमा शुरू हुआ. उन्हें इस मामले में मौत की सजा सुनाई गई.


जुल्फिकार, जूनागढ़ और भुट्टो परिवार का भारत से रिश्ता; बिलावल के लिए क्यों खास है भारत दौरा?

(जुल्फिकार अली भुट्टो)

मां बेनजीर भुट्टो इंदिरा को मानती थी आदर्श
बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार वह तीन लोगों को अपना आदर्श मानती थीं. पिता जुल्फिकार अली भुट्टो, फ्रांस की वीरांगना जोन ऑफ आर्क और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.

एक तरफ जहां बेनजीर के पिता जुल्फिकार भुट्टो की राजनीति भारत का विरोध करके आगे बढ़ने वाली थी तो वहीं दूसरी तरफ बेनजीर के संबंध कई भारतीय नेताओं जैसे- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी से काफी अच्छे थे.

भारत को लेकर उनका रुख बहुत विरोध का तो नहीं रहा. पूरब की बेटी के नाम से जानी जाने वाली बेनजीर किसी भी मुस्लिम देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं.

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार बेनजीर भुट्टो ने भारत और खासकर कश्मीर के खिलाफ कई बयान दिए. साल 1990 में बेनजीर भुट्टो का कश्मीर के राज्यपाल को लेकर की गई टिप्पणी काफी चर्चा में रहा था.

दरअसल चुनावी माहौल में उन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर को लेकर कहा, ‘कश्मीर के लोगों को मौत का डर नहीं है क्योंकि वे मुसलमान हैं. कश्मीरियों में मुजाहिदीन का खून है. कश्मीर के लोग वकार (इज्जत) के साथ जिंदगी जीते हैं, जल्दी ही हर गांव से एक ही आवाज निकलेगी- आजादी. हर स्कूल से एक ही आवाज निकलेगी- आजादी. हर बच्चा चिल्लाएगा- आजादी, आजादी, आजादी. वहीं साल 2007 में एक बम धमाके में आतंकियों ने बेनजीर की हत्या कर दी थी.


जुल्फिकार, जूनागढ़ और भुट्टो परिवार का भारत से रिश्ता; बिलावल के लिए क्यों खास है भारत दौरा?

पाकिस्तान के सबसे कम उम्र के विदेश मंत्री 'बिलावल भुट्टो'

पहली बार भारत आने के बाद बिलावल ने अपनी माँ को याद करते हुए ट्विटर पर लिखा था, "मेरी माँ ने एक बार कहा था कि हर पाकिस्तानी में कहीं न कहीं भारत बसता है और हर भारतीय के दिल में छोटा सा पाकिस्तान बसता है."

बिलावल भुट्टो साल 2007 से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन हैं और वर्तमान में पाकिस्तान के विदेश मंत्री का पद संभाल रहे हैं. उन्होंने ऑक्सफोर्ड से BA की पढ़ाई की है. अगस्त 2018 के पाकिस्तान आम चुनाव में बिलावल की पार्टी PPP को 43 सीटें मिली थी. इसी साल बिलावल नेशनल असेंबली के सदस्य भी बने थे. 

साल 2022 में  इमरान खान के तख्तापलट के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. उस वक्त वह पाकिस्तान के सबसे कम उम्र के विदेश मंत्री बने थे. बिलावल भुट्टो की दिसंबर 2022 में PM मोदी पर की गई टिप्पणी काफी चर्चे में रही थी.

उन्होंने कहा था "ओसामा बिन लादेन मर चुका है पर 'बुचर ऑफ गुजरात' जिंदा है और वह भारत का प्रधानमंत्री है. जब तक वो प्रधानमंत्री नहीं बना था तब तक उसके अमेरिका आने पर पाबंदी थी." बिलावल के इस टिप्पणी के बाद उनकी कड़ी आलोचना भी हुई और भारत ने विरोध भी जताया गया.


जुल्फिकार, जूनागढ़ और भुट्टो परिवार का भारत से रिश्ता; बिलावल के लिए क्यों खास है भारत दौरा?

SCO बैठक पाकिस्तान के लिए कितना अहम
एससीओ की स्थापना साल 2001 में मध्य एशिया में सुरक्षा और आर्थिक मामलों पर चर्चा करने के लिए की गई थी. इसका नेतृत्व चीन और रूस करता रहा है. एससीओ में मध्य एशिया के चार सदस्य भी शामिल हैं. ये एक ऐसा भू-क्षेत्र है जहां पाकिस्तान व्यापार, कनेक्टिविटी और ऊर्जा को बढ़ावा देने की उम्मीद करता है.

ऐसे में एससीओ मीटिंग में भाग न लेने से पाकिस्तान का एक ऐसे संगठन से अलग होने का खतरा बढ़ जाएगा जो उसके हितों को मजबूती से अपनाता है.  

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