Hydrabad Merger In india: तेलंगाना में अमित शाह बीजेपी के लिए सियासी जमीन मजबूत करने की पूरी कोशिश में जुटे हैं. इसके लिए पार्टी की तरफ से पूरी रणनीति भी तैयार हो चुकी है. अमित शाह ने  तेलंगाना में केसीआर सरकार पर जमकर हमला बोला और मुस्लिम आरक्षण को पूरी तरह खत्म करने की बात कही. इस दौरान अमित शाह ने तेलंगाना की जनता से एक और वादा किया, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर वो सत्ता में आए तो तेलंगाना स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा. अमित शाह ने कहा कि सरदार पटेल ने निजाम को भगाया और तेलंगाना की रचना की. आज हम उसी कहानी के बारे में आपको बताएंगे कि कैसे सेना की मदद से हैदराबाद को सरदार पटेल ने भारत में शामिल कराया था. 


तेलंगाना स्वतंत्रता दिवस मनाने का ऐलान
पहले अमित शाह के बयान की बात करते हैं कि तेलंगाना में उन्होंने निजाम का जिक्र क्यों किया. दरअसल तेलंगाना में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में यहां अमित शाह के चुनावी दौरे शुरू हो चुके हैं. अपनी जनसभा में अमित शाह ने सरदार पटेल का जिक्र करते हुए कहा- "मुझे बताओ कि सरदार पटेल ने तेलंगाना की रचना की, निजाम को भागाया, तेलंगाना स्वतंत्रता दिन मनाना चाहिए या नहीं मनाना चाहिए? मैं आपको वादा करता हूं कि मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनाइए हैदराबाद में परेड ग्राउंड में पूरी दुनिया देखे ऐसा तेलंगाना स्वतंत्रता दिवस हम मनाएंगे." अब अमित शाह ने सरदार पटेल और जिस निजाम को भगाने की बात कही वो आखिर क्या है? इसकी पूरी कहानी आपको बताते हैं....


500 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय
भारत को आजादी मिलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि सैकड़ों विरासतों को कैसे एकजुट किया जाए और इनका भारत में विलय कराया जाए. इसके लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहले गृहमंत्री सरदार पटेल को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. करीब 550 से ज्यादा रियासतों को भारत में शामिल होने का न्योता दिया गया. जिनमें से ज्यादातर रियासतों ने आसानी से सरकार की बात मान ली और भारत में अपना विलय कर लिया, लेकिन कुछ रियासतें ऐसी थीं, जिन्होंने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया था. जिनमें जोधपुर, जूनागढ़, त्रावणकोर, भोपाल और हैदराबाद की रियासतें शामिल थीं. 


हैदराबाद ने विलय से किया इनकार
इन सभी रियासतों में से चार रियासतों का जैसे-तैसे अपनी शानदार कूटनीति से सरदार पटेल ने भारत में विलय कराया, लेकिन हैदराबाद ने साफ इनकार कर दिया. हैदराबाद रियासत देश की सबसे धनी और सबसे बड़ी रियासत थी. हैदराबाद की अपनी सेना और रेल सेवा थी. यहां के प्रशासकों को निज़ाम कहा जाता था. हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली खान थे, जिन्हें मनाने के लिए सरदार पटेल ने कई प्रस्ताव रखे, लेकिन निज़ाम इस बात पर अड़ा रहा कि हैदराबाद को भारत से अलग रखा जाए. इसके बाद निजाम को भारत में विलय के लिए तीन महीने का वक्त दिया गया. लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी निजाम और उनके आसपास के लोगों ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया.


पाकिस्तान से मांगी थी मदद
सरदार पटेल की तरफ से साफ कर दिया गया था कि अगर निज़ाम भारत में विलय के लिए तैयार नहीं होते हैं तो उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई होगी. इसका निजाम को भी अच्छी तरह से अंदाजा था, इसीलिए उसने तब भारत के खिलाफ पाकिस्तान से भी मदद मांगी थी. तब निजाम ने जिन्ना को संदेश भेजा था और पूछा था कि क्या वो भारत के खिलाफ लड़ाई में हैदराबाद की मदद करेंगे? हालांकि जिन्ना की तरफ से मदद देने से साफ इनकार कर दिया गया था. 


नेहरू से सहमत नहीं थे पटेल
हैदराबाद को दिया हर विकल्प खत्म हो गया था, ऐसे में सरदार पटेल का सब्र भी जवाब देने लगा. वो जल्द से जल्द हैदराबाद का किसी भी तरह विलय कराना चाहते थे. हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि हैदराबाद से शांतिपूर्वक समझौता किया जाए और किसी भी तरह का कोई विरोध न हो, लेकिन सरदार पटेल इस मामले में नेहरू से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि हैदराबाद भारत के पेट में एक कैंसर की तरह है, जिसे जल्द से जल्द निकालना होगा. उनका कहना था कि आने वाले वक्त में पाकिस्तान हैदराबाद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है. हैदराबाद पर हमले को लेकर हुई बैठक में नेहरू और सरदार पटेल में जमकर बहस हुई. सरदार पटेल नाराज होकर यहां से निकल गए. जिसके बाद आखिकार हैदराबाद पर हमले की इजाजत मिल गई. 


हैदराबाद पर हमले की तैयारी
हैदराबाद की रियासत पर राज करने वाले निजाम को ये अच्छी तरह से पता था कि अगर भारत उस पर हमला करता तो उनकी सेना ज्यादा देर नहीं टिक पाएगी, इसके बावजूद उन्होंने घुटने नहीं टेके. इसके बाद सरदार पटेल ने हमले की पूरी तैयारी की. इसके लिए भारतीय सेना के अधिकारियों को बुलाकर ये पूछा गया कि अगर हैदराबाद पर हमले के बाद पाकिस्तान हमला करता है तो क्या वो इसके लिए तैयार हैं. इस पर सेना की तरफ से हामी भरी गई. हमले से ठीक पहले इसे रोकने की कुछ और कोशिशें भी हुईं, लेकिन सरदार पटेल ठान चुके थे और उन्होंने कार्रवाई की हरी झंडी दिखा दी. 


ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में घुसी सेना
भारतीय सेना सितंबर 1948 में ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में घुस गई. क्योंकि उस दौर में हैदराबाद में सबसे ज्यादा पोलो के मैदान थे, इसीलिए सैन्य कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया. हैदराबाद के निजाम की सेना ने भारत की सेना से मुकाबला किया और करीब पांच दिन तक ये जंग चलती रही. इसमें निजाम की सेना के करीब 1400 जवान मारे गए, वहीं भारत के भी 66 जवान शहीद हुए. इस करारी हार के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण का ऐलान कर दिया और आखिरकार हैदराबाद का भारत में विलय हुआ. बताया गया कि इस दौरान पाकिस्तान की तरफ से भी दिल्ली में बम गिराने को लेकर बातचीत हुई थी, लेकिन बाद में पाक सैन्य अधिकारियों ने नुकसान का अंदाजा लगाया और ऐसा नहीं करने की सलाह दी. 


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