"भारतीय जनता पार्टी की तेलंगाना में सरकार बनेगी तो इस गैर संवैधानिक मुस्लिम रिजर्वेशन को हम समाप्त कर देंगे, ये अधिकार तेलंगाना के एससी-एसटी और ओबीसी का है जो उनको मिलेगा..."  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तेलंगाना में ये बड़ा बयान दिया है. कर्नाटक में सुप्रीम कोर्ट से झटका मिलने के बावजूद बीजेपी ने तेलंगाना में मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने का ऐलान कर दिया है. तेलंगाना में आने वाले विधानसभा चुनाव से इसे बीजेपी की बड़ी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है. हालांकि आरक्षण खत्म करने की बात हकीकत से ज्यादा फसाने की तरह लगती है. आइए जानते हैं क्यों बीजेपी मुस्लिम आरक्षण पर दांव चल रही है और ये कितना मुमकिन है. 


मुस्लिम रिजर्वेशन पर क्या बोले शाह
सबसे पहले आपको बताते हैं कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तेलंगाना में अपनी चुनावी रैली के दौरान क्या कहा. अमित शाह ने तेलंगाना में एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा, "मजलिस आपके लिए मजबूरी है, भारतीय जनता पार्टी के लिए नहीं. तेलंगाना सरकार लोगों के लिए चलेगी, ओवैसी के लिए नहीं चलेगी. टू बेडरूम हॉल किचन की स्कीम में भी माइनॉरिटी का रिजर्वेशन किया, संविधान विरोधी मुस्लिम रिजर्वेशन शिक्षा में किया और कई सारी बातें की. मैं यहां कहकर जाता हूं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी तो इस गैर संवैधानिक मुस्लिम रिजर्वेशन को हम समाप्त करेंगे. एससी, एसटी और ओबीसी को अपना अधिकार मिलेगा."


केसीआर के खिलाफ बनाया हथियार
बीजेपी ने मुस्लिम आरक्षण को केसीआर के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है. दरअसल केसीआर की पार्टी मुस्लिमों को मिलने वाले आरक्षण को बढ़ाकर 12% करने की कोशिश कर रही है. भारतीय राष्ट्र समिति के घोषणा पत्र में भी इसका वादा किया गया था, हालांकि फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. अब बीजेपी ने इसी मुद्दे को पलट दिया है और मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने की बात कर केसीआर पर निशाना साधा है. अमित शाह ने सीधे ये मैसेज दिया कि तेलंगाना सरकार दलितों के हितों का खयाल नहीं रख रही है और धर्म के नाम पर राजनीति कर रही है. उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. 


बीजेपी को फायदा या नुकसान
बीजेपी और खुद अमित शाह अगर कोई भी फैसला लेते हैं या फिर कोई बयान देते हैं तो उसके कई मायने होते हैं. ये बीजेपी की सोची समझी रणनीति का एक हिस्सा होता है. यानी अगर बीजेपी की तरफ से मुस्लिम रिजर्वेशन को टारगेट किया गया है तो इस पर काफी लंबा होमवर्क भी किया गया होगा. अब बात करते हैं कि बीजेपी को ऐसा करने से क्या फायदा होगा. 


तेलंगाना में मुस्लिम आबादी चुनावों में काफी अहम भूमिका निभाती है, ज्यादातर मुस्लिम आबादी ओवैसी के गढ़ हैदराबाद में है. कुल 119 सीटों में से करीब 40 सीटों पर ये समुदाय असर रखता है. कुल आबादी का करीब 12.7 फीसदी हिस्सा अल्पसंख्यकों का है. ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी इतने बड़े वोट बैंक को ठोकर क्यों मार रही है? इसका जवाब सीधा है कि बीजेपी को ये साफ पता चल चुका है कि ओवैसी के रहते तेलंगाना और खासतौर पर हैदराबाद के मुस्लिम वोटर उनके पाले में नहीं आ सकते हैं. इसीलिए वो अब मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने की बात कर बाकी समुदायों को लुभाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी की नजर राज्य के ओबीसी और एससी-एसटी वोटर्स पर है. 


तेलंगाना में दलित वोट बैंक
दरअसल पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से ही बीजेपी तेलंगाना में अपनी संभावनाएं देखने लगी है. इसके बाद बीजेपी ने यहां अपनी जमीन बनाना शुरू कर दिया और अब वो दलित वोटों पर टारगेट कर रही है. इसे बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा बताया जा रहा है. क्योंकि सवर्ण वोटर्स को अपने पाले में लाना बीजेपी के लिए आसान है और मुस्लिम वोट बीजेपी को मिलने से रहे... ऐसे में ओबीसी और अन्य जातियों को अपने पाले में लाना बीजेपी के लिए जीत की चाबी बन सकता है. बता दें कि तेलंगाना में दलितों की संख्या मुस्लिम और अल्पसंख्यकों से ज्यादा है. दलित वोट राज्य में करीब 17 फीसदी हैं. 


बीजेपी दलित वोट बैंक में सेंध इसलिए भी लगा सकती है, क्योंकि तेलंगाना की सरकार ने जो वादे किए थे उन्हें पूरा करने में वो सफल नहीं रही. दलितों के लिए केसीआर सरकार ने दलित बंधु स्कीम लॉन्च की थी, जिसके तहत 13 लाख परिवारों को शामिल करने की बात कही गई. राज्य सरकार ने इस योजना के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने की बात कही. इस योजना को लेकर अब विपक्षी दल केसीआर पर जमकर हमलावर हैं. बीजेपी की कोशिश है कि वो जनता तक ये बात पहुंचाने में कामयाब हो जाए कि केसीआर दलितों से आगे मुस्लिमों को तवज्जो दे रहे हैं. 


मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
बीजेपी ने भले ही तेलंगाना में चुनावों को देखते हुए मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने की बात कही है, लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है जितना दिख रहा है. यही कोशिश बीजेपी ने कर्नाटक चुनाव से पहले भी की, जब मुस्लिमों को शिक्षा और रोजगार में मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को खत्म कर उसे लिंगायत और वोक्कालिगा में बांट दिया गया. चुनाव से पहले बीजेपी ने इसका खूब प्रचार भी किया और इसे भुनाने की पूरी कोशिश हुई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर चुनाव की तारीखों तक रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया. 


आरक्षण खत्म करना कितना मुश्किल?
कर्नाटक में सरकार ने तर्क दिया है कि उसने पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट के बाद ये फैसला लिया, लेकिन अब तक इस रिपोर्ट में कुछ और आंकड़े जुटाना बाकी है. ऐसे में कर्नाटक सरकार के तर्क पर सवाल खड़े होते हैं. अब सवाल है कि आरक्षण को देने या फिर इसे छीनने में क्या कानूनी अड़चन आ सकती हैं. दरअसल चुनाव से पहले राजनीतिक दल वोटों के लिए ऐसा दांव चलते हैं, लेकिन इसका एक पूरा प्रोसेस होता है. 


किसी भी समुदाय का आरक्षण खत्म करने से पहले उसके सामाजिक, शैक्षणिक और बाकी तरह के आंकड़ों को जुटाना जरूरी होता है. ऐसा नहीं होने पर ऐसे फैसलों को कोर्ट में चुनौती मिलती है और इन्हें रद्द कर दिया जाता है. हमने मराठा आरक्षण और जाट आरक्षण के मामले में ये देखा है. दोनों ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि आरक्षण के लिए जरूरी आंकड़े नहीं जुटाए गए. कर्नाटक और तेलंगाना के मामले में कानूनी जानकार भी यही कहते हैं कि ये सिर्फ एक राजनीतिक चाल है, जिसे चुनाव के बाद ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती और ये मामले कोर्ट में लंबित रहते हैं.  


क्या है बीजेपी की दलील
अमित शाह ने कर्नाटक में मुस्लिम रिजर्वेशन खत्म करने को लेकर सफाई भी दी. मुस्लिम रिजर्वेशन को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, "कांग्रेस ने कर्नाटक में गैर संवैधानिक तरीके से मुस्लिमों को 4 फीसदी आरक्षण दिया था. क्योंकि भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण को सहमति नहीं देता है. अब हमारी सरकार ने इसे खत्म कर एससी-एसटी, वोक्कालिगा और लिंगायत जैसे समुदायों को बढ़ाने का काम किया है." अब बीजेपी इसी तर्क को लेकर तेलंगाना जैसे राज्यों में भी जा रही है और इसे एक बड़े राजनीतिक प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है. 


हालांकि जहां बीजेपी ओबीसी वोटर्स को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, वहीं विपक्ष अब बीजेपी को जातिगत जनगणना के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी अगर वाकई ओबीसी समुदाय का हित चाहती है तो उसे ये पता लगाना होगा कि उनकी आबादी कितनी है. जिससे दलितों और ओबीसी को फायदा मिल सके. वहीं जातिगत जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है. फिलहाल ये देखना जरूरी है कि मुस्लिम आरक्षण पर कैंची चलाकर बीजेपी अपने मिशन साउथ में कितनी कामयाब होती है. 


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