30 मई को केंद्र की मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो जाएगा. इस एक साल के दूसरे कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार की कई उपलब्धियां रही हैं, लेकिन अब आगे कई चुनौतियां भी हैं. इन चुनौतियों को एक-एक करके समझने की कोशिश करते हैं.


1. कोरोना ने पैदा की सबसे बड़ी चुनौती


केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सामने फिलहाल कोई इकलौती चुनौती है तो वो है कोराना वायरस. इस वायरस के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था की भी परवाह नहीं की. देश में लॉकडाउन लगा दिया और कहा कि जान है तो जहान है. तब देश में कोरोना संक्रमण के आंकड़े 600 से भी कम थे. लेकिन अब ये आंकड़ा डेढ़ लाख पहुंचने वाला है. लॉकडाउन में ढील भी दे दी गई है और कोरोना का संक्रमण हर रोज बढ़ता ही जा रहा है. इससे निबटने के लिए केंद्र सरकार ने हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन अब भी कामयाबी नहीं मिल पाई है. हर रोज मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है, हर रोज संक्रमण का आंकड़ा बढ़ रहा है और हर बढ़ता लॉकडाउन अर्थव्यवस्था के साथ ही देश की नींव को भी खोखला कर रहा है. न तो जान बच पा रही है और न ही जहान. अर्थव्यवस्था, उद्योग-धंधे, पढ़ाई-लिखाई, खेती, कारोबार, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात सब ठप पड़ा है और इससे निबटने के लिए सरकार खजाने का मुंह खोल रही है. 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज भी दे चुकी है, लेकिन इससे भी कोरोना का असर कम होता नहीं दिख रहा है. देश का कोई भी सेक्टर इससे अछूता नहीं है और कोरोना से निबटते हुए इन सेक्टर्स को पटरी पर लाना प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके करियर की शायद सबसे बड़ी चुनौती है.


2. बेपटरी अर्थव्यवस्था


प्रधानमंत्री मोदी जब अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में थे, तब से ही देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरनी शुरू हो चुकी थी. जीडीपी का आंकड़ा लगातार गिरता जा रहा था. ये अब भी गिरता जा रहा है. कोरोना ने इस गिरती अर्थव्यवस्था को और भी तबाह कर दिया है. पहले विदेशी एजेंसीज जैसे मूडीज और विश्व बैंक ने भारत की जीडीपी को लेकर अनुमान जाहिर किए थे और इसे एक से दो फीसदी के आस-पास बताया था. कुछ एजेंसीज ने इसे नकारात्मक भी बताया था और तब भारत ने उनके अनुमानों को खारिज कर दिया था. लेकिन अब तो रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी आधिकारिक तौर पर कह दिया है कि भारत की जीडीपी निगेटिव हो सकती है. औद्योगिक उत्पादन ठप पड़ा है, राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है, खुदरा महंगाई दर बढ़ती जा रही है, लोगों के पास पैसे खत्म होते जा रहे हैं और लोग खर्च करने से बच रहे हैं. इसकी वजह से बाजार में मांग की कमी बनी हुई है. मोदी सरकार के सामने चुनौती है कि वो राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करे और साथ ही साथ बाजार में मांग बनाने के लिए कैश फ्लो करे. इसकी कोशिश हुई भी है. 20 लाख करोड़ के कोरोना राहत पैकेज में भी इसका जिक्र है, लेकिन ये पैसे नाकाफी दिख रहे हैं. आने वाले दिनों में कम से कम एक साल तक मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था एक बड़ी चुनौती है, जिससे निबटना फिलहाल तो संभव नहीं दिख रहा है.

3. खत्म होते रोजगार


रोजगार का मसला मोदी सरकार की एक और बड़ी चुनौती है. जब 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव प्रचार कर रही थी, तो उसके घोषणापत्र में रोजगार एक अहम मसला था. सरकार बनी और फिर विपक्ष ने रोजगार के आंकड़ों पर मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी दिनों में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के हवाले से कहा गया कि देश में बेरोजगारी पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है. तब चुनाव प्रचार में जुटी बीजेपी ने इसे खारिज कर दिया था. लेकिन जिस दिन नरेंद्र मोदी ने लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, उसके अगले ही दिन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने आंकड़ा जारी कर दिया. बताया कि देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी है, जो पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है. अभी नरेंद्र मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में बेरोजगारी पर कोई बात करती, उससे पहले ही कोरोना का प्रकोप आ गया. और इस कोरोना का असर कितना है, इसका अंदाजा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़े से लगा सकते हैं. CMIE का कहना है कि 3 मई को भारत में बेरोजगारी की दर देश के इतिहास में सबसे अधिक 27.11 फीसदी हो गई है. यानि कि देश का हर चौथा नागरिक बेरोजगार है. सीएमआई के मुताबिक शहर में बेरोजगारी की दर 29.22 फीसदी है, जबकि गांव में ये आंकड़ा 26.69 फीसदी का है. सीएमआई ने इस बात की भी आशंका जताई है कि भविष्य में बेरोजगारी का ये आंकड़ा और ज्यादा हो सकता है, क्योंकि कोरोना की वजह से जो मजदूर शहर छोड़कर गांव लौट गया है, वो जल्दी शहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा. मोदी सरकार इन बेरोजगारों के लिए रोजगार सृजन कैसे करेगी, ये एक बड़ी चुनौती है, जिससे खुद पीएम मोदी को पार पाना है.

4. पड़ोसी देशों से बनते-बिगड़ते संबंध


मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की एक और बड़ी चुनौती है. लेकिन ये चुनौता घरेलू न होकर अंतरराष्ट्रीय है. ये चुनौती है पड़ोसी देशों से संबंध की. अभी तक नेपाल भारत का सबसे अच्छा पड़ोसी देश था. छोटी-मोटी नोंकझोंक होती रहती थी, इसके बावजूद वो हमारा सबसे अच्छा पड़ोसी देश था. लेकिन मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में लिपुलेख तक सड़क बना दी, ताकि भारत की सामरिक ताकत को भी मज़बूती मिले और कैलाश मानसरोवर के तीर्थयात्रियों को भी सुविधा हो जाए. लेकिन इस सड़क के बनने से नेपाल नाराज हो गया है. उसका कहना है कि भारत ने उसकी सीमा का अतिक्रमण किया है. नेपाल दावा कर रहा है कि भारत ने उसके कब्जे वाले कालापानी क्षेत्र में अपनी सड़क बनाई है. इस वजह से भारत के नेपाल से संबंध खराब होते जा रहे हैं. वहीं चीन ने भी भारत को आंख दिखानी शुरू कर दी है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में चीन ने डोकलाम में हंगामा किया, जिससे निबटने में मोदी सरकार को लंबा वक्त लगा. अब चीन फिर से लद्दाख में भारत को परेशान कर रहा है. चीन ने लद्दाख बॉर्डर पर सैनिक तैनात कर दिए हैं, जो भारतीय सैनिकों पर पथराव कर रहे हैं. सामरिक मुद्दों के विशेषज्ञों का मानना है कि कालापानी को लेकर नेपाल जो आपत्ति जता रहा है, उसके पीछे भी अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का ही हाथ है. ऐसे में मोदी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने दो पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने की भी चुनौती है.


# इन चार बड़ी चुनौतियों के अलावा भी मोदी सरकार के सामने और कई चुनौतियां हैं. जैसे मोदी सरकार ने सीएए को लागू कर दिया है, जिसके खिलाफ खूब प्रदर्शन हुए. कोरोना की वजह से प्रदर्शन रुके, लेकिन अब भी इस बात की आशंका जताई जा रही है कि कोरोना के खत्म होने के बाद मुद्दा गरम हो सकता है.


# इसके अलावा मोदी सरकार के सामने किसानों की आत्महत्या को रोकना और उनकी आय को दोगुनी करना एक बड़ी चुनौती है. मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में 2022 का लक्ष्य रखा था कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी. इस वक्त को पूरा होने में दो साल से भी कम का समय है और इतने कम वक्त में लक्ष्य हासिल करना मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी.


# कोरोना ने हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है. इस महामारी ने हमें फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हम कहां खड़े हैं. मोदी सरकार के सामने आने वाले कुछ साल में देश की स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने की भी चुनौती होगी, ताकि कोई ऐसी महामारी आए तो हम पहले से तैयार हों.


इन सभी चुनौतियों से मोदी सरकार कब और कैसे पार पाएगी ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन 2020 के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जो परफॉर्मेंस होगी, उसे भी मोदी सरकार के कार्यकाल से अलग करके नहीं देखा जाएगा.