UN Climate Report: दूर तक फैले समुद्र किनारे बसे शहरों को देखकर काफी सुकून मिलता है और मन करता है कि यहां अपना भी एक घर हो, लेकिन अगर आपको ये बताया जाए कि आने वाले कुछ दशकों में इन शहरों पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है तो आप क्या कहेंगे. यूएन की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन समुद्र के नजदीक बसे शहर डूब जाएंगे. इतना ही नहीं पूरी धरती के डूबने की भी बात कही गई है. 


पिछले 7 साल में बिगड़े हालात
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने क्लाइमेट चेंज को लेकर अपनी इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि समुद्रों का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. जिससे शहरों के डूबने का खतरा है. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सात साल में हालात काफी ज्यादा बिगड़ गए हैं. हालात ये हैं कि पिछले 20 साल में जितना नुकसान हुआ, उतना पिछले 7 साल में हो चुका है. ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. 


WMO ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हमारी सबसे पहली प्राथमिकता ग्लेशियरों को बचाना होना चाहिए. ऐसा नहीं किया गया तो समुद्रों का स्तर लगातार बढ़ता जाएगा, जिससे एक दिन धरती के डूबने का खतरा है. इसके पीछे ग्रीन हाउस गैस को एक बड़ा कारण बताया गया है. जिसे रोकने की जरूरत है. 


तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
यूएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2021 से लेकर अक्टूबर 2022 तक एक साल में ग्लेशियरों की मोटाई करीब साढ़े चार फीट तक कम हो गई. जिससे समुद्रों का स्तर तेजी से बढ़ रहा है. जिससे इंडोनेशिया के जकार्ता जैसी हालत सभी कोस्टल शहरों में हो सकती है. कहा गया है कि अगर खतरनाक ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण नहीं हुआ तो ये काफी खतरनाक हो सकता है. 



  • रिपोर्ट में बताया गया है कि जब इंडस्ट्रीज नहीं थी तब से अब तक कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर 149% बढ़ गया है. 

  • मीथेन गैस का भी वातावरण में स्तर तेजी से बढ़ा है. इसका स्तर 124% तक बढ़ गया है. इसके अलावा नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर भी बढ़ रहा है.

  • कार्बन की मात्रा ज्यादा बढ़ने से धरती ज्यादा गर्म हो रही है, जिसमें बाकी गैसों का स्तर भी जिम्मेदार है. 

  • समुद्र लगातार गर्म होते जा रहे हैं, जिससे बाढ़ और हीटवेव का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. ग्रीन हाउस गैसेस का समुद्र में जाना इसका कारण है. 

  • वैज्ञानिकों ने बताया है कि 2060 तक वेदर पैटर्न में कोई बदलाव नहीं होगा, वो ऐसे ही चलता रहेगा. इसीलिए दुनिया को एक साथ आकर इस रोकने की अपील की गई है. 


हीटवेव से यूरोप में 15 हजार मौतें
WMO की रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोप में साल 2022 में हीटवेव से करीब 15 हजार लोगों की मौत हो गई. ये चौंकाने वाला आंकड़ा इसलिए है क्योंकि यूरोप के ज्यादातर देश ठंडे होते हैं. स्पेन में सबसे ज्यादा 4600 लोगों की मौत हुई, इसके बाद जर्मनी में 4500 और यूके में 2800 लोगों की मौत हुई. 2022 में यूरोप के कई देशों में रिकॉर्ड टेंपरेचर दर्ज किया गया था. यूके में पहली बार तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया. 


अल नीनो ला-नीना का असर 
हाल ही में भारतीय मौसम विभाग ने कहा था कि तापमान को लेकर लगातार चिंता बढ़ रही है. आईएमडी ने कहा था कि मार्च और मई तक खतरनाक हीटवेव से लोग परेशान होंगे. इसके अलावा मानसून को लेकर भी चिंता जताई गई. अंदाजा लगाया गया कि इस बार मानसून अच्छा नहीं रहेगा. इस सबका कारण अल नीनो को बताया गया. ये मौसम में बदलाव को लेकर होने वाली एक घटना है. जिसके तीन फेज होते हैं. जिनमें पहला न्यूट्रल फेस, दूसरा अल नीनो और तीसरे को ला-नीना कहा जाता है. ये सभी फेज बारिश, गर्मी और सूखा पड़ने के लिए जिम्मेदार होते हैं. पिछले दिनों अल नीनो ला-नीना फिनोमिना तापमान को कंट्रोल करने में नाकाम रहा है. 


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