Explained : देश में कोरोना के 100 दिन, जानिए क्या खोया और संभावित नुकसान पर कितना काबू पाया?
भारत में कोरोना को दाखिल हुए 100 दिन से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. इन 100 दिनों में देश ने बहुत कुछ खोया है. वहीं बहुत कुछ ऐसा था, जो खो सकता था लेकिन देश उसे बचाने में कामयाब रहा है.
भारत में कोरोना को दाखिल हुए 100 दिन से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. इन 100 दिनों में कोरोना के कुल 67,152 केस सामने आ चुके हैं. इनमें से 20,916 लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं. फिलहाल कुल 44029 ऐक्टिव केस हैं. इसके अलावा इस वायरस की चपेट में आकर अब तक 2,206 लोगों की मौत हो चुकी है. ये आंकड़ा सिर्फ कोरोना का है. लेकिन इसके अलावा भी कोरोना ने देश का बड़ा नुकसान किया है.
30 जनवरी, 2020. केरल के त्रिशूर में चीन के वुहान शहर से मेडिकल का एक छात्र लौटा था. उसे बुखार था और गले में सूजन की शिकायत की थी. जांच हुई तो उसका कोविड 19 टेस्ट पॉजिटिव आया. ये भारत का पहला केस था. तब से लेकर अब तक इस देश में कुल 67,152 केस सामने आ चुके हैं. कोरोना के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सके, इसके लिए 24 मार्च को देश भर में लॉकडाउन हुआ. पहले ये लॉकडाउन 21 दिनों का था. फिर इसे और 19 दिनों के लिए बढ़ाया गया. और जब ये 40 दिन पूरे होने वाले ही थे, उससे पहले लॉकडाउन को तीसरी बार 14 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया. इस लॉकडाउन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा है, इसके लिए फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की प्रेसिडेंट संगीता रेड्डी का एक बयान ही काफी है.
संगीता रेड्डी का अनुमान है कि लॉकडाउन के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था को हर दिन करीब 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. यानि कि अब तक करीब 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसके अलावा फिक्की का ही आंकड़ा कहता है कि अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के दौरान करीब 4 करोड़ नौकरियों पर खतरा बना हुआ है. दुनिया भर की कुछ एजेंसियों ने भी भारत में हुए नुकसान का आंकलन किया है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ का कहना है कि भारत की जीडीपी ज़ीरो हो सकती है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत की जीडीपी 1.9 फीसदी रहने की बात कही है.
इस कोरोना ने भारत का आर्थिक तौर पर तो नुकसान किया ही है, इसका सामाजिक दुष्प्रभाव कितना है ये दिन देश के हाईवे पर देखने को मिल रहा है. कभी सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हुए मज़दूरों की तस्वीर सामने आ रही है, तो कभी रेल की पटरियों पर सोए मज़दूरों के ऊपर से मालगाड़ी गुजर जा रही है. कभी आम के ट्रक में छिपकर घर आ रहे मजदूर सड़क हादसे का शिकार हो जा रहे हैं, तो कभी सैकडों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचे इंसान को खून की उल्टी होती है और वो दम तोड़ देता है. यही कोरोना का कहर है, जिसने गरीबों और मज़दूरों को कहीं का नहीं छोड़ा है.
हालांकि एक और बात है, जिसका जिक्र ज़रूरी है. कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से देश को अब तक वो नुकसान नहीं झेलना पड़ा है, जिसकी आशंका जताई गई थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ये माना था कि स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वे में देखा गया है कि अगर देश में लॉकडाउन नहीं होता तो कोरोना के मामले कम से कम 8 से 10 लाख रहे होते. दुनिया के कुछ देशों से तुलना करें तो संयुक्त सचिव की इस बात में दम दिखता है.
अमेरिका का उदाहरण लेते हैं. अमेरिका में पहला केस रजिस्टर हुआ था भारत से 9 दिन पहले यानि कि 21 जनवरी, 2020 को. पहले तो ट्रंप ने इसे बीमारी मानने से इन्कार कर दिया और फिर जब लॉकडाउन की बारी आई तो इसे राज्यों के ऊपर छोड़ दिया. लॉकडाउन हुआ लेकिन 100 दिन के बाद अमेरिका में केस 10 लाख के पार चले गए थे. वहीं भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन हुआ. और शुरुआती दिन से ही इसमें सख्ती रही.
इतनी सख्ती दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों में ही थी. नतीजा ये हुआ कि 100 दिन के बाद भी भारत में महज 60 हजार से थोड़े ज्यादा केस सामने आए हैं. यही हाल ब्रिटेन का भी है. ब्रिटेन में भारत के एक दिन बाद यानि कि 31 जनवरी को पहला केस रजिस्टर हुआ था. वहीं ब्रिटेन ने भारत से एक दिन पहले यानि कि 23 मार्च को लॉकडाउन लगाया था. लेकिन 100 दिनों के बाद ब्रिटेन में कोरोना के कुल केस 2 लाख के पार थे, वहीं भारत में आंकड़ा 60 हजार के ही आस-पास रहा था.
अमेरिका की आबादी 32 करोड़ से थोड़ी ज्यादा है वहीं ब्रिटेन की भी आबादी सात करोड़ से कम है. इन दोनों देशों की आबादी मिलाकर भी भारत की आबादी का आधा नहीं होता है, क्योंकि यहां की आबादी 130 करोड़ को पार कर गई है. साफ है कि अगर देश में लॉकडाउन में सख्ती नहीं रही होती तो हमारे पास खोने के लिए बहुत कुछ था. हां ये सच है कि हमने बहुत कुछ खोया है. आगे भी आशंका है कि देश को नुकसान उठाना ही पड़ेगा. लेकिन ये भी एक सच है कि दुनिया के दूसरे मुल्कों की तुलना में हमारी स्थिति बेहतर है.