Explained : कोरोना के मरीजों की जान कैसे बचाता है वेंटिलेटर?
कोरोना से पीड़ित हर छह में से एक आदमी को इलाज के लिए वेंटिलेटर की ज़रूरत होती है. वेंटिलेटर इस बात की उम्मीद है कि मरीज ठीक हो सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल नाजुक परिस्थितियों में ही किया जाता है.
किसी इंसान के शरीर में कोरोना का वायरस कैसे घुसता है और उसके क्या खतरे होते हैं, अब इससे पूरी दुनिया के डॉक्टर परिचित हो चुके हैं. अब इस बात की तस्दीक हो चुकी है कि कोरोना का वायरस शरीर में अंदर जाने के बाद सांस लेने में तकलीफ पैदा करता है. अगले चरण में वायरस इंसान के फेफड़े तक पहुंच जाता है. फेफड़ा ही शरीर का वो अंग है, जो पूरे शरीर को ऑक्सीजन की सप्लाई करता है और कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालता है. जब कोरोना का वायरस इंसान के फेफड़े में पहुंच जाता है तो वो फेफड़े में छोटी-छोटी दीवार बना देता है, जिसे एयर सैक कहते हैं. इन एयरसैक में पानी जमा होने लगता है और फिर आदमी सांस नहीं ले पाता है. और जब ऐसी स्थिति आती है तो मरीज को जिस चीज की ज़रूरत पड़ती है, उसे कहते हैं वेंटिलेटर.
चूंकि कोरोना का वायरस फेफड़े को ऑक्सीजन नहीं लेने देता है, तो मरीज इस वेटिंलेटर के जरिए ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ता है. अगर कोरोना के अलावा किसी और भी वजह से फेफड़े काम नहीं कर रहे हों, तो उस वक्त भी मरीज को वेंटिलेटर की ही ज़रूरत पड़ती है. इस मशीन में एक पतली सी ट्यूब होती है, जिसे मरीज के मुंह की एंडोट्रैचियल ट्यूब या फिर गले में चीरा लगाकर ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब के जरिए शरीर के अंदर डाला जाता है. इस पाइप के जरिए ऑक्सीजन शरीर के अंदर जाती है और कॉर्बनडाई ऑक्साइड बाहर निकलती है. इसके अलावा वेंटिलेटर में ह्यूमिडिफायर होता है. इस ह्यूमिडिफायर की वजह से ऑक्सीजन में गर्माहट और नमी दोनों ही शामिल हो जाती है यानि कि वो बिल्कुल की प्राकृतिक ऑक्सीजन की तरह हो जाती है, जिससे कि मरीज के शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है.
और आसाना भाषा में कहें तो जो काम हमारे फेफड़े करते हैं, वहीं काम ये वेटिंलेटर भी करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना जैसी महामारी में वेटिंलेटर की ज़रूरत ज्याजा बढ़ जाती है. अभी तक जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें से हर छठे मरीज को वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ी है. और भारत जैसे देश में वेंटिलेटर महज 40,000 ही हैं. जबकि यहां की आबादी 135 करोड़ के आस-पास है. अगर 10 फीसदी आबादी भी कोरोना से संक्रमित हुई और उस 10 फीसदी के एक फीसदी को भी वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ी तो हम उसकी सप्लाई नहीं कर पाएंगे. और ये किसी भी देश के लिए अच्छी स्थिति नहीं है. आम तौर पर एक वेंटिलेटर की कीमत 6 से 12 लाख रुपये के बीच है. भारत ने 50,000 वेंटिलेटर मंगवाएं हैं, लेकिन वो अभी तक अस्पतालों में पहुंचे नहीं हैं. और गनीमत ये है कि भारत जैसे सघन घनत्व वाले देश में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू नहीं हुआ है, जिससे हम अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे देशों के मुकाबले कई गुनी बेहतर स्थिति में हैं.