Citizen Amendment Act: अब से करीब 3 साल पहले केंद्र में प्रधानमंत्री (Prime Minister) नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाली सरकार ने नागरिक संसोधन कानून (Citizen Amendment Act) यानी सीएए (CAA) लागू करने की बात की थी तो इस कानून को लेकर देश में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थीं. इसको लेकर देशभर में विरोध हुआ. सियासी पार्टियों ने भी इसका विरोध किया लेकिन सरकार ने इसे लेकर लगातार स्थिति साफ रखी. कोरोना (Corona) को लेकर सीएए अधर में लटक गया और आज तक लागू नहीं हो पाया है.


अब आप सोच रहे होंगे कि इसको लेकर आज क्यों बात कर रहे हैं तो बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में आज 200 से ज्यादा जनहित याचिकाओं पर सुनवाई होने वाली है. इनमें से एक याचिका नागरिकता संसोधन अधिनियम को लेकर भी है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के तहत इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. तो आइए जानते हैं नागरिकता संसोधन अधिनियम क्या है और क्यों हुए इस पर विवाद-


क्या है नागरिकता संसोधन अधिनियम 2019


नागरिकता संसोधन अधिनियम यानी सीएए को आसान भाषा में समझा जाए तो इसके तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासी इनमें भी 6 समुदाय हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है. इससे पहले भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था. नागरिकता संसोधन अधिनियम 2019 के तहत इस नियम को आसान बनाया गया है और नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 से 6 साल किया गया है.


क्या करता है ये कानून


ये कानून उन्हें खुद ब खुद नागरिकता नहीं देता है बल्कि उन्हें आवेदन करने के लिए योग्य बनाता है. ये कानून उन लोगों पर लागू होगा जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए थे. इस कानून के तहत भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए प्रवासियों को आवेदन करना होगा. इसमें कुछ अहम बातों की पुष्टि करनी होगी-  



  • प्रवासियों को दिखाना होगा कि वो भारत में पांच साल रह चुके हैं.

  • उन्हें ये साबित करना होगा कि वे अपने देशों से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हैं.

  • वो उन भाषाओं को बोलते हैं जो संविधान की आठवीं अनुसूची में हैं. इसके साथ ही नागरिक कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को पूरा करते हों.

  • इसके बाद ही प्रवासी आवेदन के पात्र होंगे. उसके बाद भी भारत सरकार निर्णय करेगी कि इन लोगों को नागरिकता देनी या नहीं.


नागरिकता संसोधन कानून का विरोध


नागरिकता संसोधन अधिनियम को लेकर देश में जमकर विरोध हुआ. विरोध करने की मुख्य वजह ये रही कि इस संसोधन अधिनियम में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया. कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसी को आधार मानकर विरोध किया. इन पार्टियों का कहना है कि इसमें संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हो जो समानता के अधिकार की बात करता है. कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2019 के संबंधित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को जारी किया था.


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा था. हालांकि, कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों के कारण ये मामला सुनवाई के लिए नहीं आ सका, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में वकील और वादी शामिल थे.


क्या हैं आरोप


सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका में कहा है कि ये कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का इरादा रखता है. इसको लेकर विरोध प्रदर्शन हुए और आलोचकों का कहना है कि ये मुसलमानों के साथ पक्षपात करता है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से इंडियन मुस्लिम लीग की याचिका में सीएए और विदेशी संसोधन आदेश. 2015 और पासपोर्ट (नियमों में प्रवेश) संसोधन नियम, 2015 के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है.


इन लोगों ने दायर की है याचिकाएं


नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें आरजेडी नेता मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं. कई अन्य याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU), पीस पार्टी, सीपीआई, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और सिटीजन अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.


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