बासमती चावल, दार्जिलिंग की चाय, चंदेरी फैब्रिक, मैसूर सिल्क, कुल्लू की शॉल, कांगड़ा की चाय, तंजावुर पेंटिंग, इलाहाबाद सुरखा, फर्रुखाबाद का प्रिंट, लखनऊ का जरदोजी, महोबा का पान, बीकानेरी भुजिया, बनारस की साड़ी, नागपुर का संतरा, बंगाल का रसगुल्ला और कश्मीर अखरोट की लकड़ी की नक्काशी को देश में कौन नहीं जानता. लेकिन इन उत्पादों के बारे में जो लोग नहीं जानते उनको जानकारी देने के लिए अब केंद्र सरकार योजना बना रही है.
दरअसल, भारत सरकार का वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय चंदेरी फैब्रिक, मैसूर सिल्क जैसे 400 से ज्यादा जीआई प्रोडक्ट यानी भौगोलिक संकेत उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक मल्टी-मीडिया कैंपेन की योजना बना रहा है. उद्योग और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ऐसे उत्पादों को सूचीबद्ध करने के लिए ऑडियो-विजुअल एजेंसियों को को काम सौंपने जा रहा है जिससे कि उत्पादों का नियमित रूप से विभिन्न मल्टी-मीडिया कैंपेन, विज्ञापन और प्रमोशनल सामग्री के जरिए बढ़ावा दिया जा सके. इसके लिए विभाग ने इसके लिए प्रस्ताव मांगा है.
इस पैनल में शामिल एजेंसी उत्पादों को लेकर फिल्में बनाने से लेकर, डॉक्यूमेंट्री फिल्म, प्रायोजित ऑडियो-विजुअल कार्यक्रम, ऑडियो-विजुअल स्पॉट और लघु वीडियो का निर्माण करेंगी. विभाग द्वारा जारी किए गए नोटिस में कहा गया है कि भारतीय जीआई उत्पादों के प्रचार और प्रसार की कमी के कारण युवा पीढ़ी में इनके बारे में कम जानकारी है. इससे इन सामानों का बहुत सीमित इस्तेमाल हो पाया है. इस समय भारत में 400 से अधिक जीआई उत्पाद पंजीकृत हैं.
आखिर जीआई प्रोडक्टस क्या होते हैं? इसकी क्यों आवश्यकता है और इसको लेकर केंद्र सरकार क्या प्लान बना रही है? बता दें कि किसी भी उत्पाद को जब जीआई टैग का प्रमाणपत्र मिलता है तो उस वस्तु का महत्व अपने आप बढ़ जाता है. इसको आसानी से ऐसे समझा जा सकता है कि, किसी भी उत्पाद विशेष की कहां पैदावार होती है या यह कहां बनाया जाता है इसकी जानकारी जीआई टैग के जरिए पता चल पाती है.
मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि जीआई उत्पादों में व्यावसायिक क्षमता को ध्यान में रखते हुए, जीआई उत्पादों की मार्केटिंग, ब्रांडिंग, प्रचार अभियान और कैटलॉगिंग पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. इन उत्पादों की व्यावसायिक क्षमता को ई-बिजनेस टूल, संचार प्रौद्योगिकी और वेब पोर्टल बनाकर और इनके इस्तेमाल से प्राप्त किया जा सकता है. नोटिस में कहा गया है कि इससे उत्पादकों के लिए रोजगार के रास्ते और बढ़ेंगे और देश में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.
संसद से मिली थी मान्यता
गौरतलब है कि भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स कानून लागू किया था. इसके जरिए देश के किसी भी हिस्से में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. वहीं इस कानून के जरिए जीआई टैग किसी खास जियोग्राफिकल क्षेत्र में मिलने वाले उत्पाद का किसी दूसरे स्थान पर गौरकानूनी उपयोग को कानूनी तौर पर रोकता है.
जीआई टैग के जरिए प्रोडक्ट्स को कानूनी संरक्षण मिलता है, इसके साथ ही जीआई टैग किसी भी प्रोडक्ट की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है. सरकार से अच्छी गुणवत्ता का टैग मिलने के बाद प्रोडक्ट्स को अपने देश के साथ में विदेशों में भी आसानी से मार्केट मिल जाती है. यही नहीं इससे प्रोडक्ट और उस क्षेत्र के विकास के साथ में वहां नए रोजगार के अवसर और राजस्व प्राप्त होते हैं.
जीआई उत्पाद में मुख्य रूप से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) उत्पाद शामिल होते हैं, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में बनते और पैदा होते हैं. जीआई उत्पादों को पंजीकरण करवाने की एक प्रक्रिया होती है जिसमें उसका आवेदन दाखिल करना, प्रारंभिक जांच और परीक्षा, कारण बताओ नोटिस, भौगोलिक संकेत पत्रिका में प्रकाशन, पंजीकरण का विरोध और पंजीकरण शामिल है.
जीआई टैग कैसे मिलता है?
क्षेत्र विशेष के किसी भी प्रोडक्ट को जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता और संगठन भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले पेटेंट, कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स एंड ट्रेड मार्क्स (CGPDTM) में जाकर आवेदन कर सकता है. भारत सरकार की ये संस्था प्रोडक्ट की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखती है. पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिल पाता है. शुरुआत में जीआई टैग 10 वर्ष के लिए मिलता था, लेकिन बाद में इसे रिन्यू भी करवाया जा सकता है.
मंत्रालय के नोटिस में क्या है?
इस अभियान के उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहा गया है कि, एक प्रभावी संचार सरकारी परियोजनाओं और सेवाओं के सफलता की कुंजी है. क्योंकि यह सभी हितधारकों को परियोजना में उनकी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
वहीं कई सरकारी योजनाओं में यह पाया गया है कि अच्छे कार्यक्रमों को लोगों द्वारा बहुत कम स्वीकृति मिली, क्योंकि योजना के सही संदेश को ठीक से नहीं फैलाया गया, उसमें निरंतरता की कमी और मीडिया चैनलों के अनियोजित उपयोग के कारण मनमुताबिक प्रभाव नहीं डाला.
वहीं जागरूकता और संचार कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि प्रासंगिक जानकारी सही समय पर सही व्यक्ति तक पहुंचे, उपयोगकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करे, मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करे और अंत में मनमुताबिक दिशा में सभी संबंधितों के व्यवहार को प्रभावित करे.
विभाग द्वारा जारी किए गए नोटिस में कहा गया है कि उत्पाद को पैदा करने वाले ज्यादातर स्थानीय कारीगर और शिल्पकारों होते हैं. उनके फायदे के लिए जरूरी है कि प्लान बनाकर सुनियोजित तरीके से भारतीय स्तर पर मल्टी-मीडिया माध्यम का इस्तेमाल किया जाए और रणनीति बनाने की जरूरत है. इन अभियानों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जीआई उत्पादों को एक प्रीमियम ब्रांड विकसित करना और उन्हें विशिष्ट उत्पादों के रूप में बढ़ावा देना है.
मंत्रालय में जीआई उत्पादों के लिए प्रस्ताव देने की अंतिम तारीख 7 अक्टूबर 2022 है.
बता दें कि औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिए पेरिस कन्वेंशन के तहत, जीआई उत्पादों को बौद्धिक संपदा अधिकारों के रूप में शामिल किया गया है. यह डब्ल्यूटीओ के बौद्धिक संपदा अधिकार (TRIPS) समझौते के व्यापार संबंधी पहलुओं के तहत भी शामिल है. ज्ञात हो कि भारत का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999, देश में 15 सितंबर, 2003 से प्रभावी है. एक बार किसी उत्पाद को यह टैग मिल जाने के बाद, कोई भी व्यक्ति या . कंपनी उस नाम से मिलता-जुलता सामान नहीं बेच सकती.