Moon Lighting: क्या होती है मून लाइटिंग, विप्रो के चेयरमैन ने क्यों कहा यह तो धोखा है?
Moon Lighting: किसी एक कंपनी में काम के बाद बचे हुए समय में दूसरी कंपनी में काम करना मूनलाइटिंग कहलाता है.
Moon Lighting: कोरोना महामारी के बाद से लोगों की जिंदगी जीने से लेकर नौकरी करने के तरीके में बदलाव आया है. महामारी के बाद से कई नए ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं, इन्हीं नए ट्रेंड में से एक है मूनलाइटिंग. मूनलाइटिंग को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है. बता दें कि किसी एक कंपनी में काम के बाद बचे हुए समय में दूसरी कंपनी में काम करना मूनलाइटिंग कहलाता है. जहां एक ओर कुछ कंपनियां इस नए वर्क सिस्टम को सपोर्ट कर रही हैं, वहीं विप्रो जैसी बड़ी और टेक कंपनियां इसका विरोध कर रही हैं.
इस मामले में विप्रो के चेयरमैन ऋषद प्रेमजी अपने रुख को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं. उन्होंने ट्वीट करके कहा, "आईटी सेक्टर में मूनलाइटिंग करने वाले लोगों के बारे में बहुत सारी बकवास है. साफ शब्दों में कहा जाए तो यह धोखाधड़ी है."
There is a lot of chatter about people moonlighting in the tech industry. This is cheating - plain and simple.
— Rishad Premji (@RishadPremji) August 20, 2022
कोरोना महामारी के बाद अब ज्यादातर नौकरीपेशा लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. ऐसे में एक साथ दो नौकरियां (मून लाइटिंग) करने का कल्चर बढ़ता जा रहा है. हाल ही में फूड डिलीवरी कंपनी स्विगी (Swiggy) ने मूनलाइटिंग पॉलिसी की घोषणा की है. स्विगी के इस कदम के बाद से ही इस बात पर बहस छिड़ गई है कि मूनलाइटिंग सही है या गलत.
टेक कंपनियों की राय?
इंफोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास पई विप्रो के चेयरमैन ऋषद प्रेमजी के रुख से अहसमत हैं. पई ने कहा कि कंपनी और कर्मचारी के बीच होने का करारनामा यह बाध्यता देता है. उन्होंने कि कर्मचारी तय समय तक कंपनी को अपना वक्त देगा, जिसके बदले में उसे वेतन मिलेगा. काम के घंटे खत्म होने पर कर्मचारी अपने दूसरे काम करने के लिए स्वतंत्र हैं. वहीं टीसीएस के सीईओ एन गणपति सुब्रमण्यम ने कहा कि अल्पकालिक फायदा कमाने के निर्णय से इंडस्ट्री में लंबा नहीं चला जा सकता.
टेक महिंद्रा ने क्या कहा?
वहीं मूनलाइटिंग के बारे में टेक महिंद्रा के एमडी सीपी गुरनानी ने इसको लेकर पॉलिसी बनाने की बात कही है. सीपी गुरनानी ने कहा, मूनलाइटिंग के लिए भारत में कोई कानून नहीं है. अमेरिका और ब्रिटेन में टैक्स नीति की वजह से ये सुविधा दी गई है.
कोरोना में मूनलाइटिंग अस्तित्व में आया
बता दें कि 2020 में कोरोना महामारी के कारण ज्यादातर कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी थी, जिसकी वजह से इस मूनलाइटिंग कल्चर अस्तित्व में आया है. लोग एक कंपनी में काम के साथ-साथ खाली समय में एक्स्ट्रा कमाई के लिए दूसरी कंपनियों में भी पार्ट टाइम जॉब कर रहे हैं. लेकिन भारत में अभी मूनलाइटिंग को लेकर कोई कानून नहीं है. लेकिन स्विगी के द्वारा बयान के बाद भारत में भी ये चर्चा छिड़ गई है कि मूनलाइटिंग लीगल है या नहीं.
सर्वे में आई चौकाने वाली बात
भारत में ज्यादातर परंपरागत कंपनियों में यह नियम है कि कर्मचारी किसी दूसरी जगह काम नहीं कर सकता. लेकिन इसके उलट ऐसे कर्मचारियों की बहुतायत है जो मूनलाइटिंग का काम कर रहे हैं. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज सर्वे में आईटी और आईटीईएस क्षेत्र के 400 लोगों से बात की, जिसमें चौकाने वाले आंकड़े सामने आए. सर्वे में सामने आया कि इसमें 65 फीसदी लोगों ने बताया कि वे ऐसे लोगों को जानते हैं जो वर्क फ्रॉम होम के साथ मूनलाइटिंग कर रहे हैं. वहीं यब भी कहा जा रहा है कि मूनलाइटिंग की एक दूसरी वजह स्किल्ड वर्कर्स की कमी है.