केरल में हुई हथिनी की मौत पर पूरा देश गुस्से में है. सोशल मीडिया पर केरल के पढ़े लिखे लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. केरल सरकार को भी घेरने की कोशिश की जा रही है. लेकिन भारत में जानवरों के साथ हो रही क्रूरता का ये कोई पहला मामला नहीं है. दांत से लेकर खाल तक के लिए यहां जानवरों के साथ क्रूरता की जाती रही है.


जानवरों के साथ हो रही क्रूरता को रोकने के लिए ही आजाद भारत में 1960 में संसद ने एक कानून बनाया. इसे नाम दिया गया  Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960. इस कानून के तहत जानवरों के साथ क्रूरता करना अपराध की श्रेणी में रखा गया. किस जानवर के साथ कैसे पेश आना है, क्या करना है और क्या नहीं करना है इसकी जिम्मेदारी दे दी गई एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया को जिसका मुख्यालय पहले चेन्नई में था और अब हरियाणा के वल्लभगढ़ में है. इस कानून के बनने के बाद समय-समय पर इसमें बदलाव भी हुए हैं और उन्हें सख्त किया जाता रहा है. फिर भी जंगली जानवरों के शिकार रुक नहीं रहे हैं और पशुओं पर क्रूरता लगातार जारी है.


दुनिया के और देशों के मुकाबले भारत में पशुओं के साथ हो रही क्रूरता की स्थिति का अंदाजा एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जिसका नाम है वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन. ये लंदन स्थित एक एनजीओ है, जिसका काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशुओं के साथ हो रही क्रूरता को देखना है. क्रूरता के लिहाज से इस संगठन ने देशों को ए, बी, सी, डी और ई जैसी कटेगरी में बांट रखा है. भारत को इस संगठन की ओर से सी कटेगरी में रखा गया है.


भारत के लिए तैयार की गई अपनी रिपोर्ट में ये संस्था लिखती है कि भारत सरकार ने सर्कसों में जंगली जानवरों पर प्रतिबंध लगाकर, डॉल्फिन को किसी का मनोरंजन न बनाकर, जानवरों पर हो रही रिसर्च को और बेहतर करके, जानवरों पर कॉस्मेटिक प्रोडक्ट का इस्तेमाल बैन करके और दुनिया में जानवरों पर इस्तेमाल किए गए कॉस्मेटिक प्रोडक्ट के आयात को रोककर बेहतर काम किया है. हालांकि संस्था का मानना है कि भारत को अब भी बहुत सुधार करने की ज़रूरत है. शहरों में बिना किसी सुविधा के चल रही डेयरियों से लेकर खेतों में काम पर लगाए गए जानवरों के साथ बेहद क्रूरता होती है. यहां की सरकारें ज़रूरत पड़ने पर कुत्तों को मारने का आदेश जारी कर देती हैं. संस्था ने देश में चल रहे स्लॉटर हाउस पर भी सवाल उठाए हैं.


इस संस्था ने भारत को औसत तौर पर सी कटेगरी में रखा है. अपनी 39 पेज की रिपोर्ट में इस संस्था ने अलग-अलग मसलों पर अलग-अलग कटेगरी दी हुई है. जैसे खेती के लिए इस्तेमाल हो रहे जानवरों के मामले में भारत की रैंकिंग E है. मनोरंज के लिए जानवरों की पीठ पर बैठकर यात्रा करने के मामले में भारत की रैंकिंग D है. जंगली जानवरों की रक्षा के मामले में भारत की रैंकिंग E है. हालांकि कानून बनाने के मामले में और सरकार की ओर से इन कानूनों को लागू करने के मामले में संस्था की ओर से भारत को B रैंकिंग दी गई है. सब मिलाकर औसत तौर पर भारत इस मामले में C रैंकिंग वाली कटेगरी में है. इस मामले में वो न्यूजीलैंड, मैक्सिको, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों के साथ है, जो C कैटेगरी में हैं.


रही बात दुनिया के दूसरे देशों से तुलना की, तो ऑस्ट्रिया को जानवरों के हितों की रक्षा के मामले में सबसे अच्छे देशों में से एक माना जाता है. ऑस्ट्रिया का कानून इंसान और जानवर दोनों की ज़िंदगी को बिल्कुल एक बराबर समझता है. कानून तय करता है कि कोई अपने पालतू कुत्ते की पूंछ और कान तक न काट सके, मुर्गियों को बाड़े में बंद न रख सके और कुत्ते-बिल्लियों के बच्चे लंबे समय तक किसी दुकान के शोकेस में बंद न रह सकें. इसके अलावा स्विटजरलैंड ने भी अपने यहां जानवरों की सुरक्षा को लेकर सख्त कानून बनाए हैं और उनका पालन भी उतनी ही सख्ती से होता है. यहां तो कुत्तों को भौंकने से रोकना भी अपराध की श्रेणी में आता है.


ब्रिटेन में तो पालतू जानवरों के साथ क्रूरता करने पर करीब एक साल की जेल और 20 हजार यूरो का जुर्माना भरना पड़ता है. जर्मनी ने तो अपने संविधान में जानवरों की सुरक्षा का जिक्र किया है. डेनमार्क में तो जानवरों की कटाई पर ही प्रतिबंध है. नए कानून के तहत वहां ज़िंदा जानवरों को काटा नहीं जा सकता. हॉन्ग कॉन्ग में भी जानवरों के साथ क्रूरता करने पर 20 हजार डॉलर का जुर्माना भरना पड़ सकता है. इसके अलावा स्वीडन और नीदरलैंड्स में भी जानवरों की सुरक्षा से जुड़े कानून बेहद सख्त हैं.