सामान्य लोगों की तुलना में कोरोना का वायरस मोटे लोगों के लिए ज्यादा जानलेवा है. एक रिसर्च बताती है कि आम लोगों की तुलना में मोटे लोगों में ये खतरा 3.6 गुना ज्यादा है. अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में हुई रिसर्च में भी दावा किया गया है कि मोटापा इस वायरस के संक्रमण को और ज्यादा खतरनाक बना देता है. कोराना से संक्रमित हुए मोटे आदमी की मौत का खतरा ज्यादा होता है.


इसको लेकर फ्रांस में एक लंबी रिसर्च की गई है. इस रिसर्च में बॉडी मास इंडेक्स यानि कि लंबाई के मुताबिक शरीर का वजह और कोरोना मरीजों के आईसीयू में दाखिल होने के आंकड़े की तुलना की गई है. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि जो लोग ओवरवेट हैं, उनमें अगर संक्रमण होता है तो उन्हें आईसीयू में दाखिल करना ही होता है. वहीं जिनका वजन सामान्य है, उन्हें संक्रमण का खतरा तो है, लेकिन उन्हें आईसीयू में दाखिल करवाने की दर मोटे लोगों की तुलना में काफी कम है.


अमेरिका के न्यू यॉर्क में 3615 कोरोना मरीजों पर एक रिसर्च हुई है. रिसर्च में 60 साल से कम उम्र के लोगों को रखा गया है. इस रिसर्च में डॉक्टरों ने पाया है कि समान उम्र यानि कि 60 साल से कम उम्र होने के बाद भी अगर किसी का बॉडी मास इंडेक्स 34 किग्रा प्रति वर्ग मीटर से ज्यादा है तो उसे 30 किग्रा प्रति वर्ग मीटर बीएमआई वाले की तुलना में 3.6 गुना जान का खतरा ज्यादा हो जाता है. वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन ने भी अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि जिसका भी बॉडी मास इंडेक्स 25 से ज्यादा है, उनको कोरोना का ज्यादा खतरा है.


ये तो रही बात कि मोटे लोगों के लिए कोराना ज्यादा जानलेवा है, लेकिन क्यों इसके पीछे दो वजहें समझ में आती हैं. पहली तो ये है कि मोटापे के साथ ही कई और बीमारियां शरीर में आ जाती हैं. जैसे कि मोटे लोगों में ब्लड प्रेशर होना और डायबिटीज होना आम बात है. इसके अलावा मोटापे का असर फेफड़ों पर भी पड़ता है. मोटे लोगों के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचने में सामान्य तौर पर भी दिक्कत होती है और कोरोना का संक्रमण भी फेफड़ों की ऑक्सीजन को ही रोकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो की एक रिसर्च कहती है कि अधिक वजन वाले लोगों को ऑक्सीजन की ज़रूरत ज्यादा होती है और इसकी वजह से उन्हें कोरोना का इन्फेक्शन होने के बाद खतरा ज्यादा हो जाता है.


इसके अलावा जिस ACE 2 प्रोटीन के जरिए कोरोना का वायरस किसी इंसान के शरीर में दाखिल होता है, वो ACE 2 प्रोटीन फैटी कोशिकाओं में ज्यादा पाया जाता है. अब चूंकि मोटे लोगों में ये फैटी कोशिकाएं भी ज्यादा होती हैं, तो उनमें संक्रमण का खतरा भी ज्यादा ही होता है. मोटे लोगों का इम्युन सिस्टम भी सामान्य वजन वाले लोगों की तुलना में कमजोर होता है. लिहाजा इलाज के दौरान मोटे लोगों का शरीर दवाइयों पर वो रेस्पॉन्स नहीं देता है, जैसा रेस्पॉन्स एक आम इंसान का शरीर देता है.


ये तो रही बीमारी की बात. मोटे लोगों के लिए कोरोना के जानलेवा होने की जो दूसरी महत्वपूर्ण वजह है, वो है अस्पतालों की बनावट. वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की एक रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर अस्पतालों में जो बेड हैं या फिर आईसीयू में जो मशीनें हैं, वो सामान्य वजन वाले लोगों के लिए ही हैं. अस्पताल का स्टाफ भी मोटे लोगों की तुलना में सामान्य लोगों को इधर से उधर ले जाने में, किसी तरह की जांच करवाने में और दूसरे कई कामों में खुद को सहज महसूस करता है.


कुछ बड़े अस्पतालों को छोड़ दें तो किसी भी अस्पताल में स्ट्रेचर से लेकर वील चेयर तक ज्यादा मोटे लोगों के लिए नहीं मिलेंगी. अस्पतालों के सर्जरी यूनिट्स में ऐसी व्यवस्था हो सकती है, लेकिन और अस्पताल में मोटे लोगों के लिए खास व्यवस्था नहीं है, इसलिए उन्हें ज्यादा परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. और यही वजह है कि सामान्य लोगों की तुलना में मोटे लोगों को कोरोना हो जाने पर जान का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.