नई दिल्ली: देश की राजधानी की सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन नौ दिनों से जारी है. किसान नेताओं ने विज्ञान भवन में गुरुवार को चली सात घंटे की बैठक में केंद्र सरकार के तीनों मंत्रियों से दोटूक कह दिया कि कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन जारी रहेगा. सरकार के कई मांगों पर नरम रुख के बावजूद किसान नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें संशोधन मंजूर नहीं है, बल्कि वे कानूनों का खात्मा चाहते हैं.


किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने जोर देकर कहा कि संसद के एक विशेष सत्र में एमएसपी पर एक नया कानून बनाया जाए. एमएसपी की गारंटी दी जानी चाहिए, न केवल अब बल्कि भविष्य में भी यह गारंटी होनी चाहिए. किसानों ने सवाल उठाया कि सरकार आखिर क्यों एमएसपी पर उन्हें लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार नहीं है, जबकि उसने पहले कहा था कि एमएसपी हमेशा जारी रहेगा.


किसानों को किस बात की है नाराजगी
किसानों के आंदोलन का सबसे बड़ा कारण नए किसान कानून की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के खत्म होने का डर है. अब तक किसान अपनी फसल को अपने आस-पास की मंडियों में सरकार की ओर से तय की गई MSP पर बेचते थे. वहीं इस नए किसान कानून के कारण सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति से बाहर कृषि के कारोबार को मंजूरी दे दी है. इसके कारण किसानों को डर है कि उन्हें अब फसलों की उचित कीमत भी नहीं मिल पाएगी.


पंजाब और हरियाणा में किसान कानून का विरोध सबसे ज्यादा देखा जा रहा है. इन राज्यों में सरकार को मंडियों से काफी ज्यादा मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है. वहीं नए किसानों कानून के कारण अब कारोबारी सीधे किसानों से अनाज खरीद पाएंगे, जिसके कारण वह मंडियों में दिए जाने वाले मंडि टैक्स से बच जाएंगे. इसका सीधा असर राज्य के राजस्व पर पड़ सकता है.


सरकार और कानून के बीच असमंजस
केंद्र सरकार अपने बयानों में कह रही है कि वह एमएसपी जारी रखेगी, इसके साथ ही देश में कहीं भी मंडियों को बंद नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन सरकार ने इस बात को नए कानून में नहीं जोड़ा है. जिससे किसानों में भारी मात्रा में असंतोष और असमंजस की स्थिति बनी हुई है.


नए किसान कानून में सरकार ने जिस व्यवस्था को जोड़ा है. उसमें कारोबारी किसान से मंडी के बाहर अनाज खरीद सकता है. अभी तक मंडी में किसान से अनाज की खरीद पर व्यापारी को 6 से 7 फीसदी का टैक्स देना होता था. वहीं मंडी के बाहर अनाज की खरीद पर किसी भी तरह का कोई टैक्स नहीं देना होगा. इससे आने वाले समय में मंडियां पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी और किसान सीधे तौर पर व्यापारियों के हवाले होगा. उसे उनकी फसल पर तय दाम से ज्यादा या कम भी मिल सकता है.


ये भी पढ़ें-
सरकार और किसानों की बातचीत फिर रही बेनतीजा, पढ़ें बैठक की बड़ी बातें


कर्नाटक के कृषि मंत्री बीसी पाटिल का विवादित बयान- कायर होते हैं खुदकुशी करने वाले किसान