कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है. करीब 33 लाख से भी ज्यादा केस सामने आ चुके हैं और 2 लाख 40 हजार लोग इस महामारी से जान गंवा चुके हैं. इससे बचने के लिए दुनिया के तमाम देशों ने अपने-अपने यहां लॉकडाउन कर रखा है ताकि लोग अपने-अपने घर में रहें और इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके. दुनिया में इसका असर भी हो रहा है और कोरोना के संक्रमण की रफ्तार पहले की तुलना में कम भी हो रही है. फिर भी दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां के लोग अपनी सरकारों से नाराज हैं और इस लॉकडाउन में भी वो सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.


भारत में भी सीएए और एनआरसी को लेकर लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन जारी रहा था. दिल्ली के शाहीन बाग में तो प्रदर्शनकारियों ने यहां तक कह दिया था कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे. लेकिन बाद में वो प्रदर्शन खत्म हो गया. वहीं दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां के लोगों का मानना है कि उनकी सरकारों ने लॉकडाउन लगाकर और लोगों को एक साथ इकट्ठा होने पर रोक लगाकर उनके अधिकारों का उल्लंघन किया है.


ऐसे देशों में पहला नाम है लेबनान का, जहां अक्टूबर 2019 से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. ये प्रदर्शन 2020 के बजट में लगने वाले नए टैक्स के प्रावधान को लेकर था, जिसमें तंबाकू से लेकर सोशल मीडिया जैसे वॉट्सऐप के इस्तेमाल पर टैक्स लगाना शामिल था. इसके अलावा लोग लेबनान की सरकार से नाराज थे और देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे थे. क्रिसमस और नए साल के दौरान लोगों ने प्रदर्शन बंद कर दिए थे, लेकिन उसके बाद फिर से प्रदर्शन शुरू हो गए. 21 फरवरी को लेबनान में कोरोना का पहला केस पाया गया था और इसके बाद लेबनान में लॉकडाउन की तैयारी शुरू हो गई थी.


15 मार्च को देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था, ताकि कोरोना जैसी महामारी से लड़ा जा सके. इसके बाद विरोध प्रदर्शनों को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था, जितने भी विरोध प्रदर्शन के कैंप थे, उन्हें हटाने का आदेश जारी कर दिया गया और उन इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन जैसे ही लोगों को पता चला कि लेबनान की सरकार 10 मई तक देश में इमरजेंसी लगाने जा रही है, लोगों ने विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए. 21 अप्रैल से ये प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें आम आदमी के साथ ही सुरक्षा बलों के जवान भी मारे जा रहे हैं. बेरूत, त्रिपोली, सिडोन, अकार, बेक्का घाटी जैसे इलाकों में हालात ज्यादा खराब हैं और आने वाले दिनों में इन इलाकों में भुखमरी जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं.


इस कड़ी में दूसरा नाम फ्रांस का है. वहां पर अक्टूबर, 2018 में आर्थिक मुद्दों को लेकर येलो वेस्ट आंदोलन शुरू हुआ था, जो अब भी चल रहा है. वहां पर सरकार ने नया टैक्स सिस्टम लगाया था, जो मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए ज्यादा परेशानी वाला था और जिसकी वजह से देश में आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ जाती. इसी के विरोध में पीली जैकेट पहने लोग सड़कों पर उतर आए और अब भी देश के कुछ हिस्सों में ये प्रदर्शन चल रहे हैं. इस कोरोना से लड़ने के लिए फ्रांस ने 17 मार्च को अपने यहां लॉकडाउन की घोषणा की थी.


अगले ही दिन यानि कि 18 मार्च को राजधानी पेरिस से दंगे की खबर सामने आ गई थी. हालांकि उस दिन पेरिस में एक बाइक सवार पुलिस की गाड़ी से टकरा गया था, जिसकी वजह से उसे गंभीर चोट आई थी और उसकी टांग कई जगहों से टूट गई थी. लेकिन स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जानबूझकर ऐसा किया है. इसका येलो वेस्ट मूवमेंट से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन लोगों को लगा कि पुलिस ने इस मूवमेंट को दबाने के लिए ऐसा किया है और नतीजा ये हुआ कि दंगे भड़क गए. अभी पिछले ही हफ्ते पेरिस के उसी इलाके से तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें साफ दिख रहा है कि स्थानीय लोग पुलिस पर पथराव और आगजनी कर रहे हैं और पुलिस जवाब में आंसू गैस के गोले दाग रही है.


लिस्ट में तीसरा नाम कोलंबिया का है. आर्थिक और राजनैतिक सुधारों को लेकर कोलंबिया के लोग नवंबर, 2019 से ही प्रदर्शन कर रहे हैं. जनवरी, 2020 में उन्होंने अपना प्रदर्शन खत्म कर दिया था, लेकिन जैसे ही देश में कोरोना का असर शुरू हुआ और बात लॉकडाउन की होने लगी, लोग फिर से सड़कों पर उतर आए. 24 मार्च से कोलंबिया में पहले शहरों में लॉकडाउन किया गया और फिर पूरे देश में लॉकडाउन किया गया. इसकी खबर सुनते ही राजधानी बोगोटा में हजारों दिहाड़ी मज़दूर इकट्ठा हो गए और सरकार के फैसले का विरोध करने लगे. एक हफ्ते के बाद ही स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी भी सड़कों पर उतर आए और तनख्वाह मिलने में हो रही देर की वजह से प्रदर्शन करने लगे. इसके बाद कोलंबिया की सरकार ने 1.47 बिलियन डॉलर का फंड स्वास्थ्यकर्मियों के लिए जारी कर दिया ताकि वो कोरोना से लड़ने में मदद कर सकें, फिर भी नर्स विरोध प्रदर्शन करती रहीं, क्योंकि उनका कहना था कि उन्हें पैसे नहीं मिले हैं.


वहीं इस लिस्ट में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम अमेरिका का है. उस अमेरिका का, जहां पर कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. फिर भी अमेरिका के लोग स़ड़कों पर उतरकर लॉकडाउन खत्म करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि लॉकडाउन की वजह से उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी पर असर पड़ रहा है और सरकार उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी में दखल नहीं दे सकती है. हालांकि इन विरोध प्रदर्शनों को अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से भी जो़ड़कर देखा जा रहा है, फिर भी प्रदर्शन हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों के हाथ में आगजनी करने वाले हथियार तक हैं.