अमृता प्रीतम की कहानी ‘मलिका’ की मुख्य किरदार जब बीमार होती है तो सरकारी अस्पताल में जाती है. वहां कागज़ी कार्रवाई पूरी करने के लिए डाक्टर पूछता है- तुम्हारी उम्र क्या होगी ?


मलिका कहती है, ‘‘वही, जब इंसान हर चीज के बारे में सोचना शुरू करता है, और फिर सोचता ही चला जाता है.....’’
डाक्टर पूछता है, ‘‘तुम्हारे मालिक का नाम ?’’
मलिका कहती है, ‘‘ मैं घड़ी या साइकिल नहीं, जो मेरा मालिक हो, मैं औरत हूं....’’


डाक्टर घबराकर कहता है, ‘‘मेरा मतलब है—तुम्हारे पति का नाम ?’’
मलिका जवाब देती है, ‘‘मैं बेरोज़गार हूं..’’
डाक्टर हैरान–सा कहता है, ‘‘भई, मैं नौकरी के बारे में नहीं पूछ रहा...’’
तो मलिका जवाब देती है, ‘‘वही तो कह रही हूं.. मेरा मतलब है किसी की बीवी नहीं लगी हुई’’


अमृता की मलिका बेवाक है.अपनी बात रखने से घबराती नहीं है. वो अपने पति या प्रेमी के सहारे जिंदगी नहीं जीना चाहती. वो इस बात में विश्वास रखती है कि ये उसकी जिंदगी है और इस पर किसी का मालिकाना हक है तो सिर्फ उसके खुद का.


हालांकि हस्तीमल हस्ती का मशहूर शेर है


कुछ और सबक हम को ज़माने ने सिखाए 
कुछ और सबक हमने किताबों में पढ़े थे 


निश्चित तौर पर अमृता की किरदार मलिका से हमारे समाज में जी रही महिलाओं की स्थिति काफी अलग हैं. उनको हर रोज पुरुष सत्ता के सामने कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. जहां पुरुषों का उनके अपने शरीर पर पूरा अधिकार होता है वहीं जब बात महिलाओं की आती है तो पुरुषसत्तामक समाज उनको उनके शरीर पर भी अधिकार से वंचित कर देता है.


हम 21वीं शताब्दी में पहुंच गए हैं लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में महिलाओं का शादी से पहले वर्जिन होना 'अनिवार्य शर्त' है, जबकि यही शर्त पुरुषों के लिए नहीं है. अगर एक लड़का ये जानना चाहता है कि उसकी पार्टनर वर्जिन है या नहीं? तो एक लड़की को भी ये जानने का अधिकार है कि उसका पार्टनर वर्जिन है या नहीं. पहली बात तो इस तरह का अनैतिक परिक्षण होना ही नहीं चाहिए और अगर जबरन किया भी जा रहा है तो फिर वर्जनिटी टेस्ट महिलाओं की ही क्यों? पुरुषों का क्यों नही.?


भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 भी कहता है कि भारत में कानून द्वारा स्थापित किसी भी प्रक्रिया के आलावा कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है..ऐसे में जबरन लड़की का वर्जिनिटी टेस्ट करवाना कितनी अनैतिक और असंवैधानिक है ये हम समझ सकते हैं.


वर्जिनिटी टेस्ट क्यों है एकबार फिर चर्चा में ?


वर्जिनिटी टेस्ट एक बार फिर चर्चा में है. ताजा घटना राजस्थान की है जिसने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या कौमार्य जांच करवाना एक बड़ा लैंगिक भेदभाव नहीं है. क्या वर्जिन टेस्ट मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है.  क्या यह टेस्ट अवैज्ञानिक नहीं है. 


राजस्थान के भीलवाड़ा में एक 24 वर्षीय महिला को उसके ससुराल वालों ने कथित तौर पर "कौमार्य परीक्षण" कराने के लिए मजबूर किया. इस परिक्षण में वो 'फेल' हो गई, जिसके बाद उसकी पीटाई की गई. मामले को लेकर पंचायत बुलाई गई. पंचायत ने महिला के परिवार को 10 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा है.


पुलिस के मुताबिक, महिला ने अपने ससुराल वालों को बताया कि शादी से कुछ समय पहले एक पड़ोसी ने उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था और उसने सुभाष नगर पुलिस स्टेशन में बलात्कार का मामला भी दर्ज कराया था. 


इस खबर के बाद एक बार फिर वर्जिनिटी टेस्ट चर्चा में है...


वर्जिन होने का मतलब क्या है?


वर्जिनिटी जिसको हिन्दी में कौमार्य कहते हैं उसे व्यक्ति के संभोग से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जिस व्यक्ति ने पहले कभी भी सेक्स नहीं किया है वह वर्जिन है. एक महिला में वर्जिनिटी पूरी तरह से हाइमन के सही होने या न होने पर निर्भर करती है. विशेषज्ञों का कहना है कि वर्जिनिटी को हाइमन से जोड़कर देखना बेहद ही गलत है, क्योंकि इसके खोने की कई अन्य वजह भी होती हैं. 


बता दें कि हाइमन योनि मुख के पास बनी एक पतली झिल्ली होती है. हाइमन के बारे में लोग मानते हैं कि योनि जब तक पूरी तरह से नहीं खुलती तब तक हाइमन (योनिद्वार) सुरक्षित रहती है. वहीं योनि के खुलते ही हाइमन झिल्ली टूट जाती है.


कैसे होता है वर्जिनिटी टेस्ट


इस टेस्ट में हाइमन की मौजूदा स्थिति जांची जाती है. इस टेस्ट के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि जब कोई सेक्स करता तभी केवल हाइमन टूट या फट सकती है. ऐसा माना जाता है कि वर्जिनिटी टेस्ट कैसे की जाएगी उसकी खोज सन 1898 में की गई थी. इस टेस्ट को 'दो उंगलियों का परीक्षण' भी कहते हैं. हालांकि इस टेस्ट के परिणामों की सटिकता हमेशा से शक के घेरे में रही है.


हाइमन झिल्ली का सही होना क्या वर्जिन होने की निशानी है ?
ये सवाल ऐसा है जिसपर कई सालों से बहस चल रही है. विज्ञान इसका जवाब बिल्कुल अलग तरीके से देता है. विज्ञान कहता है कि हाइमन झिल्ली कई कारणों से टूट सकती है जैसे  खेलों में हिस्सा लेना, व्यायाम करना आदि. ऐसे में विज्ञान इस बात को नहीं मानता कि  महिला की वर्जिनिटी से इसे जोड़ कर देखा जा सकता है.


क्या लड़कों का भी होना चाहिए वर्जिनिटी टेस्ट ?


वर्जिनिटी टेस्ट क्या लड़कों का भी होना चाहिए? इस सवाल को लेकर एबीपी न्यूज़ ने कुछ लोगों से बात की. आइए जानते हैं उनका क्या कहना है इसपर..


दिल्ली की जसोला में रहने वाली दीपिका इस बारे में कहती हैं,'' किसी को भी वर्जिनिटी टेस्ट करवाने की जरूरत क्या है. रिश्ता विश्वास पर चलता है. अगर कोई किसी से 27 साल की उम्र में शादी करता या करती है तो हो सकता है कि वो तब तक किसी अन्य के साथ रिश्ते में रहे हों और इस दौरान उनके संबंध भी बने हों. महत्वपूर्ण ये नहीं कि पास्ट क्या रहा है...जरूरी है अब रिश्ते में कितनी लॉयल्टी है.''


नोयडा की फिल्म सिटी में काम करने वाली आरती कहती हैं - '' बिल्कुल महिलाओं को अधिकार मिलना चाहिए. अगर आप सोचते हैं कि औरत सिर्फ प्लेजर पाने का जरिया है तो आप गलत हैं. जब बात बराबरी की होती है तो ये बराबरी किचन या वर्कप्लेस पर ही क्यों रिश्तों में भी हो. वैसे सवाल ये है कि ये वर्जिनिटी टेस्ट कराने की सोच आती कहां से है. अगर शादी से पहले कोई महिला किसी के साथ संबंध बना रही है तो वो किसी पुरुष के साथ ही तो बना रही होगी. ऐसे में उस पुरुष के वर्जिन होने का सबूत कौन देगा?''


बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले राहुल कहते हैं, 'अगर पैमाना यही तय कर दिया गया है तो सबूत दोनों पक्षों को पेश करने चाहिए.बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि जहां समाज में विवाह के बाद होने वाले 'वैवाहिक बलात्कार' यानी 'मैरिटल रेप' पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए वहां समाज शादी से पहले लड़की वर्जिन है कि नहीं इस पर दिमाग खपा रहा है.''