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जम्मू-कश्मीर : 25 लाख नए वोटर, आखिर क्यों हैं फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती परेशान?

Jammu Kashmir में दूसरे राज्यों से आए लोगों को भी वोट का अधिकार मिल गया है. इसके लिए उन्हें वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराना होगा और पहले वाली जगह से नाम हटवाना होगा.

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 A हटने के तीन साल बाद अब राज्य में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी हो रही है. विशेष राज्य का दर्ज खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव होगा. अधिसूचना जारी होने के पहले ही चुनाव को लेकर विवाद शुरू हो गया है. 

दरअसल अनुच्छेद 370 और 35A जब लागू था तो जम्मू-कश्मीर में बाहर से आए लोग यहां स्थायी रूप से बस नहीं सकते थे. उनको न तो प्रॉपर्टी खरीदने का अधिकार था और न ही पंचायत या विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे. हालांकि लोकसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार था. 

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35A के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया. अब इस राज्य में भी वही नियम लागू हो गया है जो बाकी प्रदेशों में हैं.  दूसरे राज्य के जो लोग जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं वो भी अपना नाम यहां की वोटर लिस्ट में डलवा सकते हैं.  

इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के रहने वाले ऐसे जवान जो यहां से बाहर तैनात हैं, वो पोस्टल बैलेट के जरिए वोट कर सकते हैं. वहीं, दूसरे राज्यों के रहने वाले ऐसे जवान जो जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं वो भी यहां वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाकर मतदान कर सकते हैं. माना जा रहा है कि नए नियम के तहत 20 से 25 लाख वोटर राज्य में बढ़ जाएंगे.

क्यों हो रहा है विरोध
जम्मू-कश्मीर राज्य के सभी प्रमुख नेता इस मतदान को लेकर इस नए नियम का विरोध कर रहे हैं. सोमवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के घर जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों की इस मुद्दे पर बैठक हुई. इसके बाद राज्य के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'वे कह रहे हैं कि नए मतदाता 25 लाख होंगे. यह 50 लाख, 60 लाख या एक करोड़ भी हो सकता है. इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. 

उन्होंने कहा, 'अगर जम्मू-कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों को मतदान का अधिकार दे दिया गया, तो राज्य की पहचान खो जाएगी. इसलिए, हमने फैसला किया है कि गैर-स्थानीय लोगों को मतदान का अधिकार देने के फैसले का हम सभी संयुक्त रूप से विरोध करेंगे'. 

अब्दुल्ला ने कहा, दूसरी बात, जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह यह है कि कई राजनीतिक दलों को यहां सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है। सरकार गैर-स्थानीय मजदूरों की रक्षा करने की योजना कैसे बनाती है? इस संबंध में किसी भी निर्णय पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के घर हुई इस सर्वदलीय बैठक में उमर अब्दुल्ला के अलावा पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, विकार रसूल वानी, जम्मू-कश्मीर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, पार्टी की जम्मू-कश्मीर इकाई के उपाध्यक्ष रमन भल्ला, माकपा के यूसुफ तारिगामी, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुजफ्फर अहमद शाह, अकाली दल के नरिंदर सिंह खालसा और शिवसेना की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष मनीष साहनी शामिल रहे. साहनी शिवसेना के उद्धव ठाकरे के ग्रुप से हैं. 

जम्मू-कश्मीर के एक और प्रमुख नेता पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने  कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर में चुनावी जनसांख्यिकी बदली गई तो वह संसद के सामने भूख हड़ताल पर बैठेंगे. मीडिया से बात करते हुए लोन ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1950 और 1951) हमारे खिलाफ नहीं है, हम सरकार की मंशा के खिलाफ हैं.

उन्होंने कहा कि वह सरकार द्वारा गैर-स्थानीय लोगों को मतदान के अधिकार पर दिए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा, हम इंतजार करेंगे और स्थिति को देखेंगे. हालांकि सज्जाद लोन सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं हुए थे. बैठक में शामिल न होने के फैसले पर उन्होंने कहा, उन्होंने कहा, 'मैं व्यक्तिगत रूप से डॉ फारूक अब्दुल्ला के लिए बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन मैं बैठक में शामिल नहीं हो पाऊंगा, क्योंकि अगर हमें गैर-स्थानीय लोगों को मतदाता के रूप में शामिल करने से लड़ने के लिए कोई ठोस कदम उठाना होता तो मीडिया के सामने बैठक नहीं बुलाई जाती.'

सरकार की सफाई
विवाद बढ़ता देख जम्मू-कश्मीर जन संपर्क विभाग की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी कर सफाई दी गई. जिसमें कहा गया कि कश्मीर प्रवासियों के उनके मूल निर्वाचन क्षेत्रों के रजिस्ट्रेशन के नियम में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसके साथ ही वोटरों की बढ़ रही संख्या के मामले पर भी प्रेस रिलीज में कहा गया कि साल 2011 मतदाताओं की संख्या 6600921 थी और बढ़कर 7602397 हो गई है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 18 साल की उम्र वाले नए मतदाताओं की संख्या बढ़ी है. 
 
बीजेपी ने साधा निशाना
बीजेपी ने इस मुद्दे का विरोध कर रहीं जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों की आलोचना की है. बीजेपी की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रवींद्र रैना ने मीडिया से बातचीत में कहा ‘स्थानीय या गैर-स्थानीय’ का कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि संविधान प्रत्येक नागरिक को 18 वर्ष की उम्र प्राप्त करने के बाद मतदान करने का अधिकार देता है. 

रैना ने कहा, ‘‘जन प्रतिनिधि अधिनियम वर्ष 1950 में पूरे देश में लागू किया गया था और अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद इसे जम्मू-कश्मीर तक बढ़ा दिया गया, मतदाता सूची का संशोधन अधिनियम के अनुसार हो रहा है.’’

रैना ने कहा, ‘‘उनके भ्रामक प्रचार का कोई औचित्य नहीं है. जब पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद महाराष्ट्र से चुने जाते हैं, तो उस समय कोई हंगामा नहीं हुआ था.’’

उन्होंने अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद स्थानीय चुनावों में मतदान का अधिकार पाने वाले पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों, गोरखा और वाल्मीकि समुदाय का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें 70 वर्षों में पहली बार मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत करने का मौका मिल रहा है. 

आखिर किस बात की है आशंका? 
परिसीमन के बाद जो सीटों का समीकरण बनता दिख रहा है उसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 कर दी जाएगी. जम्मू क्षेत्र में सीटों की संख्या 37 से 43 हो जाएगी और कश्मीर क्षेत्र में सीटों की संख्या 46 से 47 से कर दी जाएगी. जम्मू क्षेत्र में बीजेपी मजबूत स्थिति में है. वोटिंग पैटर्न से देखें तो साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने  11 सीटें जीती थीं.

लेकिन साल 2014 के चुनाव में बीजेपी की सीटों की संख्या 25 पहुंच गई. खास बात ये थी की बीजेपी ने ये सभी सीटें जम्मू क्षेत्र में जीती थीं. और इसी इलाके में 6 और सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है. एक तो परिसीमन का गणित और अब कथित तौर बढ़ रहे 25 लाख वोटरों की बात विपक्षी दलों के लिए सिरदर्द वाली बात हो सकती है.

 

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