इसी साल मई के महीने में जब उत्तर भारत गर्मी से झुलस रहा था तो कांग्रेस उदयपुर के   चिंतन शिविर के जरिए पार्टी में अंदरुनी उबाल को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन चिंतन शिविर के ठीक बाद दो घटनाएं हुई हैं.


पहली पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को सपा ने राज्यसभा का सांसद बना दिया तो दूसरी ओर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले की एक चिट्ठी सामने आई जिसमें वह गठबंधन के अपने सहयोगी एनसीपी पर कई तरह के आरोप लगा देते हैं.


कांग्रेस के अंदर जारी इन घटनाक्रमों का अंत यही नहीं होता है. उदयपुर के चिंतन शिविर में जी-23 के नाराज नेताओं को संतुष्ट करने की भी कवायद परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है. पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं ने गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने प्रचार अभियान समितियों से इस्तीफा दे दिया है.  आजाद को जम्मू-कश्मीर और आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई थी.


आनंद शर्मा ने यह कहते हुए जिम्मेदारी स्वीकार करने से मना कर दिया कि उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची है क्योंकि उन्हें पार्टी की किसी भी बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया है. शर्मा ने यह बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में यह बात कही है.
 
एक समय कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार में से एक रहे हैं. अदालतों से लेकर संसद तक तीनों ही नेता पार्टी के संकटमोचक के तौर पर नजर आते रहे हैं. लेकिन साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से पार्टी के अंदरुनी हालात बदलते चले गए हैं.


इसके बाद पार्टी के अंदर ही जी-23 नेताओं का एक समूह बन गया जो सीधे तौर कांग्रेस आलाकमान से बदलाव की मांग करने लगा. इनमें पार्टी के कई ऐसे नेता हैं जो यूपीए सरकार के प्रमुख चेहरे रह चुके हैं.


हालांकि कांग्रेस में आमूल-चूल परिवर्तन की कोशिश में दिखाई दे रही है. कुछ दिन पहले ही कम्युनिकेशन विंग में बदलाव किया गया है और वहां रणदीप सुरजेवाला को हटाकर इसका प्रमुख जयराम रमेश को बनाया गया है. दूसरी खबर यूपी से जहां प्रियंका गांधी से यूपी का प्रभार वापस लेने की तैयारी है. हालांकि अभी इस खबर की पुष्टि पूरी तरह से नहीं हो पाई है.  यूपी में कांग्रेस का अध्यक्ष पद काफी दिनों से खाली पड़ा है.


लेकिन सवाल इस बात का है देश की सबसे पुरानी और लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद कहां खड़ी है. इस सवाल पर यूपी के वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश बाजपेई का कहना है कि कांग्रेस की हालत अगर उत्तर प्रदेश के नजरिए से देखें तो विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा पूरी तरह से गायब हैं. पार्टी 6 महीने में नया प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं चुन पाई है. बाजपेई ने कहा, 'प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह से नेतृत्वविहीन या एक तरह से कह लें कि ड्राइवर ही गायब है'.


लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर भी बात करें तो कांग्रेस की हालत न सिर्फ यूपी कई दूसरे राज्यों में भी हालात कुछ ठीक नहीं है. पंजाब जैसा मजबूत गढ़ खोने के बाद राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 36 के आंकड़े की बातें किसी से छिपी नहीं है. गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से ज्यादा नई नवेली आम आदमी पार्टी ज्यादा सक्रिय है.


वरिष्ठ पत्रकार प्रद्युम्न तिवारी का मानना है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर एकदम गंभीर नहीं दिख रही है. वो तब जब उसका सामना हर बार की तरह 24 घंटे इलेक्शन मोड में रहने वाली बीजेपी से है.  प्रद्युम्न तिवारी का कहना है कि चुनाव की तैयारी तीन साल पहले से शुरू हो जाती है. लेकिन कांग्रेस न तो यूपी में और न ही राष्ट्रीय स्तर पर अपना अध्यक्ष तय कर पाई है.


हालांकि राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार प्रदीप सौरभ थोड़ा सा अलग राय रखते हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में निश्चित तौर पर अच्छा प्रदर्शन करेगी. इसके पीछे वह महंगाई, बेरोजगारी और सत्ता विरोधी लहर मानते हैं. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आ जाएगी तो उन्होंने दावा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का इस समय एकमात्र लक्ष्य मोदी हटाओ है और वो इसके लिए कोई भी समझौता करने को राजी है.


प्रदीप सौरभ ने कहा 'इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि 200 सीटों पर बीजेपी को टक्कर देने वाली एकमात्र पार्टी कांग्रेस ही है. बाकी दल फिर चाहे वो ममता बनर्जी हों या नीतीश कुमार 20-20 सीटें लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का सामना नहीं कर पाएंगे.' प्रदीप सौरभ ने दावा किया कि कांग्रेस बीजेपी को हराने के लिए दो स्टेप पीछे जाने को भी तैयार है. भले ही इसमें राहुल गांधी को फिलहाल प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट न करना भी शामिल हो.