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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Presidential Election 2022: नालंदा के छोटे से गांव से राष्ट्रपति की उम्मीदवारी का सफर, जानिए यहां तक कैसे पहुंचे यशवंत सिन्हा

Presidential Election 2022: विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) भले ही हार गए हों, लेकिन उनके बगावती तेवरों का जलवा इस हार से भी फीका नहीं पड़ने वाला है.

Yashwant Sinha President Candidates: आज राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) के लिए वोटों की गिनती में भले ही बीजेपी (BJP) की अगुवाई वाले एनडीए (NDA) की उम्मदीवार द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) बाजी मार ले गईं  हों, लेकिन विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) का जलवा इस हार से भी कम नहीं होना वाला है. अटल सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर रहे सिन्हा की शख्सियत हमेशा से ही खुला बोलने और कहने की रही है. आज यहां हम प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आने वाले दंबग यशवंत सिन्हा के राष्ट्रपति उम्मीदवारी तक पहुंचने की कहानी बयां करेंगे.

पटना के कायस्थ परिवार में हुआ जन्म

देश की आजादी से पहले यशवंत सिन्हा बिहार की राजधानी पटना के एक कायस्थ परिवार में 6 नवंबर 1937 को जन्में थे. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स (इतिहास) में स्नातक किया. इसके बाद 1958 में राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री ली और फिर इसी पटना विश्वविद्यालय में इसी विषय को पढ़ाया. नीलिमा सिन्हा को यशवंत सिन्हा ने जीवनसाथी चुना. उनके परिवार में पत्नी नीलिमा सहित उनके दो बेटे जयंत और सुमंत हैं.

प्रशासनिक सेवा में भी रचा इतिहास

यशवंत सिन्हा ने साल 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में कदम रखा और यहां भी उन्होंने देश भर में 12 वीं रैंक लाकर अपना लोहा मनवाया. इस सेवा में अहम पदों पर रहते हुए 24 साल से अधिक का वक्त बिताया. चार साल तक तक उप-मंडल मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के तौर पर काम किया.  वह 2 साल तक बिहार सरकार के वित्त विभाग में अवर सचिव और उप सचिव थे. इसके बाद वह वाणिज्य मंत्रालय में भारत सरकार के उप सचिव रहे. साल 1971 से 1973 तक वह भारतीय दूतावास, बॉन पश्चिम जर्मनी में प्रथम सचिव वाणिज्यिक के पद पर भी रहे. उनका ये प्रशासनिक सफर यही नहीं खत्म हुआ साल 1973 से 1974 तक फ्रैंकफर्ट में भारत के महावाणिज्य दूत (Consul General) के तौर पर सेवाएं दीं.

शायद ये यशवंत सिन्हा की ज्ञान पिपासा ही थी कि उन्होंने विदेशी व्यापार और यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ भारत के संबंधों के मामलों में भी ज्ञान प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने बिहार राज्य सरकार के औद्योगिक अवसंरचना विभाग और भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय  में विदेशी औद्योगिक सहयोग, प्रौद्योगिकी आयात, बौद्धिक संपदा अधिकार और औद्योगिक अनुमोदन से संबंधित काम किया. उनका प्रशासनिक सेवाओं का ये दौर यहीं खत्म नहीं हुआ. उन्होंने साल 1980 से 1984 तक भूतल परिवहन मंत्रालय में भारत सरकार के संयुक्त सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दी. इस दौरान उनके पास सड़क परिवहन, बंदरगाह और शिपिंग जैसी जिम्मेदारियां थी. हालांकि इस पद से उन्होंने साल 1984 में इस्तीफा दे दिया था.

जनता दल से  शुरू किया राजनीति का सफर

प्रशासनिक सेवा को अलविदा कहने के बाद यशवंत सिन्हा ने राजनीति के सफर का आगाज किया. वह जनता दल के सदस्य के तौर पर सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. साल 1986 में उन्हें पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव बनाया गया और 1988 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए. साल 1989 में जब जनता दल का गठन हुआ तो उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया. यशवंत सिन्हा नवंबर 1990 से जून 1991 तक चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री के रूप में काम किया. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी में उनकी पारी साल 1996 से शुरू हुई जब वह जून 1996 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने.

साल 1998, 1999 और 2009 में हजारीबाग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा पहुंचे. वह साल 1998 में वह वित्त मंत्री बने तो एक जुलाई 2002 को विदेश मंत्री के पद पर पहुंचे. साल 2004 के लोकसभा चुनावों में हजारीबाग में वह प्रशांत सहाय से हार गए. साल 2005 में दोबारा से उन्होंने संसद में प्रवेश किया. बीजेपी उपाध्यक्ष पद से उन्होंने 13 जून 2009 को इस्तीफा दे दिया. बीजेपी के साथ उनके राजनीतिक सफर का अंत साल 2018 में हो गया था. उस वक्त उन्होंने पार्टी की स्थिति का हवाला देते हुए बीजेपी छोड़ दी थी. उस वक्त यशवंत सिन्हा ने कहा,"भारत में लोकतंत्र बहुत खतरे में है."

टीएमसी और साल 2022 का राष्ट्रपति अभियान

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले13 मार्च 2021 को वह बीजेपी के खिलाफ टीएमसी (TMC )में शामिल हो गए. 15 मार्च 2021 को उन्हें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया. साल 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में उन्हें सर्वसम्मति से विपक्ष की तरफ से एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया. उनके नाम का प्रस्ताव टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने किया. इसके साथ ही वह राष्ट्रपति के लिए नामित होने वाले पहले तृणमूल कांग्रेस के नेता बन गए. 

यशवंत सिन्हा के बगावती तेवर

यशवंत सिन्हा के मशहूर होने और बगावती तेवरों को सिलसिला 1964 में ही शुरू हो गया था. आईएस की ट्रेनिंग के बाद उन्हें बिहार के संथाल परगना का डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर बनाया गया था. इस दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा इस पर परगना के दौरे थे. यहां के लोगों ने सीएम के सामने अधिकारियों की शिकायत की, फिर क्या था सीएम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर यशवंत सिन्हा से सवाल-जवाब करने लगे, लेकिन सिन्हा ने सीएम को करारा जवाब दे डाला. सीएम के सामने जब तत्तकालीन सिंचाई मंत्री उन पर बिगड़े तो सिन्हा ने सपाट शब्दों में मंत्री को कहा, "सर मैं इस तरह के व्यवहार का आदी नहीं हूं."

इसके बाद एक कमरे में ले जाकर जब सीएम प्रसाद ने उनसे कहा कि आपको सिंचाई मंत्री के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था तो यशवंत ने तपाक से जवाब दिया कि आपके मंत्री को भी मुझसे इस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए था. ये सुनकर सीएम महामाया प्रसाद तिलमिला उठे थे. उन्होंने जब सिन्हा को कहा कि सीएम से ऐसे बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,आप दूसरी नौकरी ढूंढ लिजिए. इतना सुनते ही यशवंत सिन्हा ने सीएम को तपाक से जवाब दिया कि सर आप एक आईएएस कभी नहीं बन सकते, लेकिन मैं सीएम बन सकता हूं. भले ही वह सीएम न बन पाएं हो, लेकिन शायद यही टीस थी कि वह देश की कैबिनेट में पहुंचे. 

जब 10 सेकेंड में छोड़ दिया था मंत्री पद

यशवंत सिन्हा पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण का ऐसा असर था कि उन्होंने प्रशासनिक सेवा से अपना नाता तोड़ लिया. जनता दल में शामिल हुए और दिवंगत प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के खास हो गए. जब बोफोर्स घोटाले पर बबाल मचा हुआ था और इसी बीच 1989 में वीपी सिंह ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला. उस वक्त उन्होंने यशवंत को राज्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया.

तत्कालीन कैबिनेट सचिव टीएन सेशन ने यशवंत को मंत्री बनने का पत्र भी दे दिया, लेकिन ये यशवंत के ही तेवर थे कि उन्होंने केवल 10 सेकेंड के अंदर इस पद को लात मार दी. दरअसल सिन्हा कैबिनेट मंत्री के पद पर काबिज होना चाहते थे. उन्हें लगा कि वीपी सिंह ने उनके साथ न्याय नहीं किया. इसके बाद साल 1990 में दिवंगत प्रधानमंत्री द्रशेखर की कैबिनेट में वित्त मंत्री बने, ये सरकार 223 दिन में गिर गई थी, लेकिन यशवंत सिन्हा की राजनीति का सफर आगे बढ़ता रहा. वो बीजेपी के साथ हुए और अटल सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री का पदभार संभाला.

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