फैक्ट चेक

निर्णय [फ़ेक]

वायरल क्लिपिंग के दोनों वर्ज़न फ़ेक हैं; इस दावे का कोई सबूत नहीं है कि उद्धव ठाकरे ने मुस्लिम नेताओं से माफ़ी मांगी है या ऐसी कोई बैठक आयोजित की.

दावा क्या है? 

सोशल मीडिया पर एक न्यूज़पेपर क्लिपिंग शेयर की जा रही है, जिसमें दावा किया गया है कि शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने 1992 के मुंबई दंगों में अपनी संलिप्तता के लिए माफ़ी मांगी है.

दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के बीच हुए 1992-93 के मुंबई दंगे अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण भड़के थे. इन दंगों में कम से कम 900 लोगों की मौत हुई थी.

हालांकि, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सीधे तौर पर हिंसा में शामिल नहीं थे, उनके पिता, शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे पर सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का आरोप लगा था.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बीच, हिंदी अख़बार राष्ट्रीय उजाला की एक कथित न्यूज़ क्लिपिंग में दावा किया गया है कि ठाकरे ने 1992 के दंगों में शामिल होने के लिए माफ़ी मांगी है, जिसके शीर्षक में लिखा है, "1992 के दंगों में शामिल होना गलती थी, माफ़ करो।"

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह माफ़ी मुफ़्ती मोहम्मद इस्माइल, आरिफ़ शेख़ और फ़ारूक़ शाह सहित मुस्लिम नेताओं के साथ एक बैठक के दौरान मांगी गई थी, जिन्होंने कथित तौर पर इस बयान की पुष्टि की थी.

पोस्ट में दावा किया गया है कि ठाकरे की माफ़ी हाल ही में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए एक राजनीतिक कदम था, जो 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान हिंदू-बहुल क्षेत्रों में शिवसेना गुट के ख़राब प्रदर्शन के बाद हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक रणनीति में यह बदलाव, जिसे मुस्लिम तुष्टिकरण के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, शिवसेना कार्यकर्ताओं को परेशान कर रहा है, जो महसूस करते हैं कि यह बालासाहेब ठाकरे द्वारा समर्थित हिंदू विचारधारा के विपरीत है. 

एक्स पर, इस पोस्ट को इस कैप्शन के साथ शेयर किया गया: "कल तक जो शेखी बघार रहे थे कि 1992 के दंगों से मुंबई को शिवसेना ने बचाया, उसी दंगो के लिए आज उद्धव ठाकरे मुस्लिम समाज से माफ़ी मांगते हुए दिख रहे है." पोस्ट के कई आर्काइव वर्ज़न यहांयहांयहांयहां और यहां देखे जा सकते हैं.

वायरल पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

इस न्यूज़ क्लिपिंग का मराठी वर्ज़न भी सोशल मीडिया यूज़र्स ने शेयर किया है, जिसमें बीजेपी के नेता नितेश राणे भी शामिल हैं. मराठी वर्ज़न में राष्ट्रीय उजाला का ज़िक्र नहीं है, लेकिन इसमें वही हेडलाइन और कंटेंट है. इन पोस्ट के आर्काइव यहांयहांयहां और यहां देखे जा सकते हैं.

 

वायरल पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

 

हालांकि, हमारी जांच में न्यूज़पेपर क्लिपिंग के दोनों वर्ज़न फ़ेक पाए गए, और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ठाकरे ने ऐसी कोई बैठक की या मुस्लिम नेताओं से माफ़ी मांगी.

हमें सच्चाई कैसे पता चली?

गहन खोजबीन से पता चला कि उद्धव ठाकरे ने ऐसी कोई बैठक की या माफ़ी मांगी, इसकी पुष्टि करने वाली कोई विश्वसनीय रिपोर्ट नहीं मिली. अगर ऐसा कोई बयान दिया गया होता, तो स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया में इसकी ख़ूब चर्चा होती. 

वायरल हिंदी न्यूज़पेपर क्लिपिंग का क्रेडिट 'राष्ट्रीय उजाला' को दिया गया है और इसके लेखक के रूप में 'प्रणव डोगरा' नामक एक रिपोर्टर को क्रेडिट दिया गया है. हालांकि, हमारी जांच में भारत में इसी नाम से हिंदी भाषा के न्यूज़पेपर दैनिक राष्ट्रीय उजाला की वेबसाइट पर ऐसा कोई लेख नहीं मिला.

नवंबर 19 को, राष्ट्रीय उजाला ने फ़ेसबुक पेज पर एक स्पष्टीकरण जारी किया (आर्काइव यहां), जिसमें पुष्टि की गई कि उनके नाम से फ़ेक न्यूज़पेपर क्लिपिंग प्रसारित की जा रही है. प्रकाशन ने यह भी स्पष्ट किया कि 'प्रणव डोगरा' उनके न्यूज़पेपर से नहीं जुड़े हैं.

लॉजिकली फ़ैक्ट्स ने राष्ट्रीय उजाला के मालिक, मुद्रक और प्रकाशक ज्योति नारायण से संपर्क किया, जिन्होंने कहा, "हमारे प्रकाशन का इस मनगढ़ंत ख़बर से कोई संबंध नहीं है. विवादित कंटेंट पूरी तरह से निराधार है और इसका उद्देश्य राष्ट्रीय उजाला की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता को धूमिल करते हुए जनता को गुमराह करना है."

विसंगतियां क्या हैं?

दैनिक राष्ट्रीय उजाला के आर्काइव ई-पेपर की जांच करने पर, प्रकाशन के नाम से वायरल क्लिपिंग में कई विसंगतियां पाई गईं.

फ़ेक रिपोर्ट का शीर्षक फ़ॉन्ट असली राष्ट्रीय उजाला रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई शैली से काफ़ी अलग है.

 

वायरल न्यूज़ क्लिप और दैनिक राष्ट्रीय उजाला द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट की तुलना. (सोर्स: एक्स/दैनिक राष्ट्रीय उजाला/स्क्रीनशॉट)

 

प्रामाणिक रिपोर्ट आमतौर पर शहर के नाम से शुरू होती है, जिसके बाद हिंदी में "एजेंसी" लिखा होता है, जैसे "नई दिल्ली (एजेंसी)" या केवल शहर का नाम, जैसे "पंचकूला." इसके उलट, वायरल क्लिपिंग में लेख का क्रेडिट "प्रणव डोगरा राष्ट्रीय उजाला" को दिया गया है, जो प्रकाशन के मानक प्रारूप से अलग है.

 

वायरल न्यूज़ क्लिप और दैनिक राष्ट्रीय उजाला द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट की तुलना. (सोर्स: एक्स/दैनिक राष्ट्रीय उजाला/स्क्रीनशॉट)

 

इसके अलावा, असल राष्ट्रीय उजाला रिपोर्ट में शीर्षक के नीचे एक रंगीन बॉक्स में उपशीर्षक होता है. वायरल क्लिपिंग में यह नज़र नहीं आता और इसके बजाय एक अनफ़ॉर्मेटेड स्ट्रैप का उपयोग किया गया है, जो इसकी अप्रमाणिकता को और उजागर करता है.

 

वायरल न्यूज़ क्लिप और दैनिक राष्ट्रीय उजाला द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट की तुलना. (सोर्स: एक्स/दैनिक राष्ट्रीय उजाला/स्क्रीनशॉट)

 

ये विसंगतियां स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि वायरल क्लिपिंग पाठकों को गुमराह करने के उद्देश्य से बनाई गई थी और यह राष्ट्रीय उजाला के संपादकीय मानकों का पालन नहीं करती है.

मराठी न्यूज़पेपर क्लिपिंग

'राहुल पांद्रे, मुंबई संवाददाता' के नाम के क्रेडिट लाइन वाली मराठी न्यूज़पेपर क्लिप में ठाकरे द्वारा मुसलमानों से कथित माफ़ी मांगने के दावों को दोहराया गया है. हालांकि, राहुल पांद्रे नाम का कोई पत्रकार मौजूद नहीं है, और किसी विश्वसनीय मीडिया आउटलेट ने इस स्टोरी को प्रकाशित नहीं किया है.

राष्ट्रीय उजाला ने पुष्टि की है कि उसके पास इस नाम का कोई रिपोर्टर नहीं है, न्यूज़पेपर मराठी में प्रकाशित नहीं होता है और इसका हिंदी प्रिंट संस्करण उत्तर प्रदेश और दिल्ली एनसीआर के चुनिंदा पाठकों तक ही सीमित है.

नवंबर 18 को, शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने क्लिप को शेयर करने के लिए एक पत्रकार की आलोचना की, इसे फ़ेक करार दिया (आर्काइव यहां). शिवसेना ने इंस्टाग्राम पोस्ट में भी इस दावे को ख़ारिज किया (आर्काइव यहां).

 

शिवसेना के इंस्टाग्राम पोस्ट का स्क्रीनशॉट. (सोर्स: इंस्टाग्राम/स्क्रीनशॉट)

 

निर्णय

उद्धव ठाकरे द्वारा 1992 के मुंबई दंगों के लिए माफ़ी मांगने का दावा करने वाली वायरल न्यूज़पेपर क्लिपिंग फ़ेक है. राष्ट्रीय उजाला ने इस स्टोरी के श्रेय प्राप्त लेखक प्रणव डोगरा से किसी भी संबंध से इनकार किया है, जबकि दूसरे वर्ज़न में स्टोरी के लिए क्रेडिट पाए राहुल पांद्रे नाम का कोई पत्रकार मौजूद नहीं है. इसके अलावा, किसी भी विश्वसनीय मीडिया ने इस स्टोरी की रिपोर्टिंग नहीं की है.