फैक्ट चैक

निर्णय [असत्य]

वक़्फ़ बोर्ड केवल उन्हीं संपत्तियों पर दावा कर सकता है जो इस्लामी क़ानून द्वारा परिभाषित धार्मिक या परोपकार के मक़सद के लिए स्थायी रूप से समर्पित हैं.

दावा क्या है?

सोशल मीडिया पर एक दावा किया गया है कि वक़्फ़ बोर्ड के पास किसी भी निजी या सार्वजनिक संपत्ति, यहां तक ​​कि हिंदू मंदिरों पर भी अपना दावा करने का अधिकार है. यह नैरेटिव महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हाल ही में सामने आये एक कथित मामले की पृष्ठभूमि में प्रसारित किया जा रहा है.  मई 24, 2024 को प्रकाशित लोकसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक़, वक़्फ़ बोर्ड ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर में महादेव मंदिर के बगल की ज़मीन और दुकानों पर अधिकार का दावा किया किया था, जिसका स्थानीय हिन्दुओं ने विरोध किया था. 

न्यूज़18 के कंसल्टिंग एडिटर राहुल शिवशंकर ने मई 27, 2024 को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर इसी घटना के बारे में पोस्ट किया था और लिखा कि वक़्फ़ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर सकता है. इसके बाद कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने उनकी पोस्ट पर अपनी राय ज़ाहिर करते हुए दावा किया कि वक़्फ़ बोर्ड अपनी मर्ज़ी से किसी भी ज़मीन पर दावा कर सकता है और उसे हड़प सकता है. इन पोस्ट्स के आर्काइव वर्ज़न यहां और यहां देखे जा सकते हैं.

वायरल पोस्ट्स के स्क्रीनशॉट. (सोर्स: एक्स/स्क्रीनशॉट)

पिछले साल 2023 में भी यही नैरेटिव सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि वक़्फ़ बोर्ड को मंदिरों पर भी अपना दावा ठोंकने का अधिकार है.

हालांकि, यह दावा ग़लत है. वक़्फ़ बोर्ड बिना क़ानूनी सबूत के किसी भी सार्वजनिक या निजी संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता और न ही उस पर कब्ज़ा कर सकता है..

सच्चाई क्या है?

वक़्फ़ अधिनियम 1995 एक विधायी अधिनियम है जो वक़्फ़ संपत्तियों के रखरखाव और प्रशासन को नियंत्रित करता है. मूल वक़्फ़ अधिनियम 1954 में पेश किया गया था, जो अपनी तरह का पहला अधिनियम था. बाद में इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 का नया वक़्फ़ अधिनियम 22 नवंबर, 1995 को बनाया गया और लागू किया गया. हमने वक़्फ़ अधिनियम 1995 और उसके बाद के संशोधनों की जांच की और पाया कि वायरल पोस्ट में किए गए दावे ग़लत हैं.

वक़्फ़ क्या है?

वक़्फ़ अधिनियम 1995 के मुताबिक़, "वक़्फ़" का मतलब किसी भी व्यक्ति द्वारा इस्लामी क़ानून के तहत किसी भी मक़सद के लिए किसी भी चल या अचल संपत्ति को स्थायी रूप से समर्पित करने से है. वक़्फ़ के रूप में नामित संपत्ति धार्मिक या परोपकार के मक़सद से समुदाय के लिए हो जाती हैं.

वक़्फ़ अधिनियम, 1995 के मुताबिक़ "वक़्फ़" की परिभाषा. (सोर्स: केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय)

वक़्फ़ बोर्ड की शक्तियाँ और कार्य क्या हैं?

वक़्फ़ बोर्ड अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत एक सरकारी या वैधानिक निकाय है जो वक़्फ़ संपत्तियों के रखरखाव और देखभाल के लिए ज़िम्मेदार है. वक़्फ़ अधिनियम 1995 की धारा 32 के मुताबिक़, वक़्फ़ बोर्ड का प्राथमिक कार्य वक़्फ़ संपत्तियों की देखरेख और सुरक्षा करना है, यह सुनिश्चित करना कि उनका इस्तेमाल केवल ख़ास मक़सद के लिए किया जाए और उनका ग़लत इस्तेमाल न किया जाए. इसके पास इन संपत्तियों के प्रबंधन, रखरखाव और उनके बारे में निर्णय लेने का अधिकार है, जैसे कि उन्हें पट्टे पर देना, बेचना या विकसित करना, जब तक कि ऐसी कार्रवाइयाँ मूल वक़्फ़ के उद्देश्यों के अनुरूप हों. बोर्ड खोई हुई संपत्तियों की वसूली और अन्य ज़िम्मेदारियों के अलावा वक़्फ़ से जुड़े मुक़दमों और कार्यवाही को शुरू करने और उनका बचाव करने के लिए भी ज़िम्मेदार है.

क्या वक़्फ़ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है? 

वक़्फ़ बोर्ड के पास ऐसी निजी संपत्तियों या परिसंपत्तियों पर दावा करने का अधिकार नहीं है, जिन्हें मूल रूप से वक़्फ़ संपत्तियों के रूप में नामित नहीं किया गया है. यदि किसी संपत्ति का वक़्फ़ से कोई ऐतिहासिक या कानूनी संबंध नहीं है, तो बोर्ड उस पर दावा नहीं कर सकता.

वक़्फ़ अधिनियम 1995 की धारा 40, उपधारा 3 के मुताबिक़, यदि बोर्ड को भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882, या सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21), या किसी अन्य अधिनियम के तहत पंजीकृत किसी संपत्ति पर वक़्फ़ संपत्ति होने का संदेह है, तो वह जांच कर सकता है. यदि जांच में यह पुष्टि हो जाती है कि यह वक़्फ़ संपत्ति है, तो बोर्ड ट्रस्ट या सोसायटी से इसे वक़्फ़ अधिनियम के तहत पंजीकृत करने का अनुरोध कर सकता है या कारण बता सकता है कि ऐसी संपत्ति को वक़्फ़ के रूप में पंजीकृत क्यों नहीं किया जाना चाहिए.

वक़्फ़ अधिनियम 1995 की धारा 40, उपधारा 3. (सोर्स: केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय/स्क्रीनशॉट)

क़ानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वक़्फ़ स्थापित करने के लिए, संपत्ति के मालिक को इस्लामी क़ानून द्वारा मान्यता प्राप्त उद्देश्यों के लिए संपत्ति को स्थायी रूप से पवित्र, धार्मिक या भलाई के लिए इस्तेमाल करने के रूप में घोषित करना होगा. वक़्फ़ बोर्ड के पास केवल उन संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा करने का अधिकार है जिन्हें संपत्ति के मालिक द्वारा वक़्फ़ के रूप में दान की गई हैं. वक़्फ़ बोर्ड अधिनियम, 1995 की धारा 4 के तहत एक सर्वे शुरू करेगा, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कोई संपत्ति उनके नियम के तहत है या नहीं. यदि बोर्ड के पास कोई दस्तावेज़ या कानूनी सबूत है कि किसी संपत्ति को अतीत में वक़्फ़ घोषित किया गया है, तो वे मौजूदा मालिक को नोटिस जारी करेंगे. इसके बाद मालिक को वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के सामने हाजिर होना होगा, जो वक़्फ़ से जुड़े विवादों के लिए एक सिविल कोर्ट के रूप में काम करता है. ट्रिब्यूनल का गठन अधिनियम के मुताबिक़ किया जाता है और इसमें सरकारी अधिकारी शामिल होते हैं. ट्रिब्यूनल कार्यवाही का संचालन करेगा, और नतीजों के आधार पर बोर्ड या तो संपत्ति पर कब्ज़ा ले सकता है, दावे में बदलाव कर सकता है, या उसे रद्द कर सकता है.

वक़्फ़ अधिनियम 1995 की धारा 40, उपधारा 2 और 4. (सोर्स: केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय/स्क्रीनशॉट)

बोर्ड पर सिविल कोर्ट में मुक़दमा भी चलाया जा सकता है. वक़्फ़ अधिनियम 1995 की धारा 13, उपधारा 3 के मुताबिक़, "बोर्ड एक कॉर्पोरेट बॉडी होगा, जिसके पास हमेशा के लिए विरासत और एक सामान्य मुहर होगी, जिसके पास संपत्ति हासिल करने, रखने और ऐसी किसी संपत्ति को ऐसी शर्तों और प्रतिबंधों के अधीन रहते हुए ट्रांसफर कर सकेगा, जो निर्धारित की जा सकती हैं और उक्त नाम से और उस पर मुक़दमा चलाया जा सकेगा."

इस अधिनियम में यह ज़िक्र नहीं है कि वक़्फ़ बोर्ड किसी भी निजी या सार्वजनिक संपत्ति पर दावा कर सकता है, केवल यह ज़िक्र है कि वह 'वक़्फ़ संपत्तियों' पर दावा कर सकता है और उनका रखरखाव कर सकता है. बोर्ड ऐसी किसी भी संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं कर सकता, जो वक़्फ़ से जुड़ी न हो या जिसके वक़्फ़ संपत्ति होने का क़ानूनी सबूत न हो.

वक़्फ़ अधिनियम 1995 में 2013 में संशोधन किया गया था. सभी संशोधनों वाले राजपत्र को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था. नए संशोधनों में कई बदलाव किए गए, लेकिन उनमें वक़्फ़ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर दावा करने का अधिकार देने वाला कोई प्रावधान शामिल नहीं था. इसके अलावा, धारा 40 में कोई संशोधन नहीं किया गया.

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

केरल हाई कोर्ट के अधिवक्ता कबीर ई एस एम ने लॉजिकली फ़ैक्ट्स को बताया, "एक बार जब कोई संपत्ति वक़्फ़ कर दी जाती है, तो वह हमेशा वक़्फ़ ही रहती है और उसे वापस नहीं लिया जा सकता. बोर्ड के पास केवल इन वक़्फ़ संपत्तियों की देखरेख और रखरखाव करने का अधिकार है." उन्होंने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड के पास ऐसी किसी निजी भूमि या संपत्ति पर दावा करने का कोई अधिकार नहीं है जिसका वक़्फ़ से कोई संबंध नहीं है और यदि ऐसा दावा किया जाता है, तो बोर्ड पर मुक़दमा चलाया जा सकता है.

वक़्फ़ से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ केरल हाई कोर्ट के अधिवक्ता अब्दुल अजीज टी.एच. ने संपत्ति पर दावा करने की प्रक्रिया को समझाया और कहा कि यदि बोर्ड जांच के दौरान इस बात का सबूत जुटाता है कि संपत्ति उनकी है, तो मालिक को नोटिस भेजा जाएगा. यदि संपत्ति सच में वक़्फ़ की गई थी और बोर्ड के पास कानूनी दस्तावेज़ हैं, तो ट्रिब्यूनल बोर्ड को संपत्ति पर अधिकार प्रदान करेगा, क्योंकि वक़्फ़ संपत्ति के 'स्थायी समर्पण' का प्रतिनिधित्व करता है. "हालांकि, यदि संपत्ति वक़्फ़ नहीं है, तो ट्रिब्यूनल दावे को रद्द कर देगा. यदि मालिक के पास क़ानूनी सबूत हैं और वह साबित कर सकता है कि संपत्ति वक़्फ़ से जुड़ी नहीं है, और बोर्ड अभी भी संपत्ति का दावा करता है, तो उनके ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में मुक़दमा दायर किया जा सकता है," उन्होंने कहा.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता उपमन्यु हजारिका ने भी यही बात कही. "वक़्फ़ बोर्ड एक सरकारी निकाय है, जो कई अन्य सरकारी संस्थाओं की तरह है. यह अपने अधिकार क्षेत्र में काम करता है और उस सीमा से आगे नहीं जा सकता. वक़्फ़ ट्रिब्यूनल वक़्फ़ संपत्तियों से जुड़े विवादों को देखता है, लेकिन बोर्ड बाकी जगहों पर भी क़ानूनी कार्रवाई के अधीन हो सकता है," उन्होंने कहा.

मई 24, 2023 को प्रकाशित लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कहा कि किसी संपत्ति को "वक़्फ़ संपत्ति" घोषित करने से पहले वक़्फ़ अधिनियम, 1954 की धारा 4 के तहत सर्वे करना ज़रूरी है. 

निर्णय  

सोशल मीडिया पर यह दावा कि वक़्फ़ बोर्ड के पास हिंदू मंदिरों सहित किसी भी निजी या सार्वजनिक संपत्ति पर दावा करने और उसे अपने कब्ज़े में लेने का अधिकार है, ग़लत है. वक़्फ़ अधिनियम 1995 में ऐसी किसी भी शक्तियों का ज़िक्र नहीं है. इसलिए, हम इस दावे को ग़लत मानते हैं.

डिस्क्लेमर: यह रिपोर्ट पहले logicallyfacts.com पर छपी थी. स्पेशल अरेंजमेंट के साथ इस स्टोरी को एबीपी लाइव हिंदी में रिपब्लिश किया गया है. एबीपी लाइव हिंदी ने हेडलाइन के अलावा रिपोर्ट में कोई बदलाव नहीं किया है.