राजनीतिक पार्टियां चुनाव के लिए एक बार में ही घोषित क्यों नहीं करती सारे उम्मीदवार, कोई खास वजह या दांव-पेच का खेल
बीजेपी ने बुधवार को उम्मीदवारों की सातवीं लिस्ट जारी की है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर राजनीतिक पार्टियां चुनाव के वक्त क्यों एक साथ सभी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा क्यों नहीं करती हैं.
चुनाव आयोग आगामी लोकसभा चुनाव के लिए लगभग सभी तैयारियां पूरी कर चुकी है. वहीं राजनीतिक पार्टियों ने भी अधिकांश उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. बीजेपी पार्टी आज यानी बुधवार को सातवीं लिस्ट भी जारी कर दी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव लड़ने के लिए एक बार में ही सभी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा क्यों नहीं करती है. क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति होती है?
उम्मीदवारों के नाम
सभी राजनीतिक पार्टियां लोकसभा या विधानसभा चुनाव के वक्त उम्मीदवारों के नाम की सूची अलग-अलग लिस्ट के जरिए घोषणा करती है. लेकिन इसके पीछे कोई नियम नहीं काम करता है. दरअसल राजनीति में अक्सर उलट-पलट देखने को मिलता है. ये ही कारण है कि चुनाव के वक्त सबसे पहले पार्टियां उन उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करती है, जिनको लेकर पार्टी आश्वस्त रहती है. उसके बाद पार्टी अन्य नामों की घोषणा करती है. लेकिन अगर इस बीच विरोधी पार्टी किसी खास सीट से किसी खास उम्मीदवार को उतारती है, तो दूसरी पार्टियां पार्टी स्तर पर तय अपने उम्मीदवार का नाम बदल सकती है. वहीं पार्टी में नेताओं के उलट-पलट होने की स्थिति में भी पार्टी उम्मीदवारों के नामों को बदल सकती है. इसके बाद अगले लिस्ट में उस उम्मीदवार के नाम की घोषणा करती है. ये सारा मामला राजनीतिक दांव-पेच का है.
उम्मीदवारों को किन दस्तावेजों की आवश्यकता
जब कोई उम्मीदवार किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ता है, तो उस उम्मीदवार को भारतीय संविधान के तहत बने नियमों का पालन करना होता है. इसलिए उस उम्मीदवार को चुनाव आयोग की तय प्रक्रिया के अनुसार कई तरह के फॉर्म भरने होते हैं. इन फॉर्म में उम्मीदवार को संपत्ति से लेकर एजुकेशन, एड्रेस, कोर्ट केस आदि की जानकारी देनी होती है. इसके अलावा दो गवाह के साथ एक शपथ पत्र भी जमा करना होता है, जिसमें अपने बारे में और संपत्ति की जानकारी देनी होती है.
जमानत राशि
लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार को ₹25000 की जमानत राशि भी जमा करनी पड़ती है. जो कि अगर उम्मीदवार को क्षेत्र कुल डाले गए वोटों का छटवां हिस्सा नहीं मिलने पर जमा हो जाती है. राजनीति में इसे ही जमानत जब्त होना कहते हैं.
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