15 जून 2001 को गदर फिल्म रिलीज हुई. इस फिल्म ने लोगों की खूब वाहवाही बटोरी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म के रिलीज होने से 88 साल पहले एक पार्टी बन चुकी थी. जिसने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तो चलिए आज हम इस पार्टी और इसका आगे क्या हुआ इस बारे में जानते हैं.


कब बनी थी गदर पार्टी?


भारत की आजादी में गदर आंदोलन की खास भूमिका रही है, जिसकी शुरुआत एक राजनीतिक पार्टी के रूप में हुई थी. दरअसल जब भारत की आजादी की मांग लगातार जोर पकड़ रही थी उस समय भारतीय छात्रों और प्रवासियों के मन में भी राष्ट्रवाद की भावना तेज हो रही थी. पूर्व के क्रांतिकारियों ने वैंकुवर मेंस्वदेश सेवक होमऔर सियाटल मेंयुनाइटेड इंडिया हाउसबनाए.


हालांकि गदर पार्टी की विधिवत शुरुआत 15 जुलाई साल 1913 को की गई. इस पार्टी का शुरुआत में नाम पैसिफिक कोस्ट हिंदुस्तान ऑर्गेनाइजेशन (Pacific Coast Hindustan Organization – PCHO) रखा गया. जो अमेरिका, कनाडा, पूर्वी अफ्रीका और एशियाई देशों में खासी लोकप्रिय भी हुई.


ये था मुख्य उद्देश्य


इस पार्टी को मुख्य तौर पर प्रवासिय भारतीयों का अच्छा समर्थन मिल रहा था. वहीं इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकना था. मुख्य रूप से ये पार्टी भारतीय प्रवासियों द्वारा फंडेड थी. ये पार्टी साम्राज्यवादी सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी साहित्य छापना, आधिकारिक हत्याएं, विदेशों में तैनात भारतीय सैनिकों के साथ समझौता करना, हथियार हासिल करना और सभी ब्रिटिश उपनिवेशों में एक साथ विद्रोह भड़काने का काम करती थी.


अंग्रेजों को खिलाफ इस पार्टी के कुछ सदस्यों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब की यात्रा भी की और वहां आजादी के लिए विद्रोह को भड़काने की कोशिशें कीं. वो हथियारों की तस्करी में सफल भी हो गए. हालांकि अंग्रेजों को इस बात की भनक लग चुकी थी. ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ इस विद्रोह को गदर विद्रोह के नाम से जाना गया. फिर ब्रिटिश साम्राज्य ने लगभग 42 विद्रोहियों के खिलाफ मुकदमा चलाया और बड़े ही क्रूर तरीके से उन्हें मौत के घाट उतारा.


पंजाब के लोगों का भी नहीं मिला साथ


साल 1914 से 1917 तक गदर पार्टी ने जर्मनी और ऑटोमन साम्राज्य के समर्थन से ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ काफी लड़ाई लड़ी. फिर जब गदर पार्टी से जुड़े लोगों ने भारत आना चाहा तो उन्हें अंग्रेजों ने हिरासत में लेकर पहले ही जेल में डाल दिया. हालांकि गदर पार्टी के कुछ लोग करतार सिंह सराबा, पंडित कांशी राम और जी. पिंगाले अंग्रेजों की पकड़ में आने से बच गए और इन लोगों ने किसी तरह पंजाब पहुंचकर विद्रोह की चिंगारी को भड़काया.


हालांकि उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट माइकल ओडायर और पंजाब के लोगों का इस पार्टी को कुछ खास समर्थन नहीं मिला. वहां के लोग और अंग्रेजों गदर पार्टी के लोगों को डाकू कहते थे. ऐसे में किसी ने उनका समर्थन नहीं किया. हालांकि फिर भी इस आंदोलन का सफल माना गया. वहीं संगठन और सुसंगत नेतृत्व के अभाव के चलते ये पार्टी बहुत आगे तक साथ नहीं बढ़ पाई.


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