इस ग्रह पर होती है एसिड की बारिश, जानिए वहां इंसान अभी तक क्यों नहीं पहुंच पाया?
Acid Vanus: दुनिया के शक्तिशाली देश स्पेस में इंसान को भेजने के लिए तैयारी कर रहे हैं. कुछ ने सफलता भी हासिल कर ली है, लेकिन शुक्र ग्रह पर सिर्फ एक कारण से कोई नहीं पहुंच पाया है.
Acid Vanus: सौर मंडल में सबसे अधिक अम्लीय वर्षा शुक्र ग्रह पर पाई जाती है, जहां वाष्पीकरण, संघनन और वर्षा के चक्र में काम करने वाला लिक्विड पदार्थ सल्फ्यूरिक एसिड है. यह बिलकुल पृथ्वी पर मौजूद पानी की क्वांटिटी में होता है. वीनसियन क्लाउड परत के अध्ययन से पता चला है कि इस घोल में सल्फ्यूरिक एसिड की सांद्रता 70-99% के बीच है. सल्फ्यूरिक एसिड अपने शुद्ध रूप में मौजूद होने के लिए बहुत अस्थिर है, इसलिए यह पानी के साथ बंध जाता है. जैसे-जैसे बादलों की ऊंचाई कम होती जाती है, सांद्रता की ताकत बढ़ती जाती है, जिसका अर्थ है कि शुक्र पर बारिश का पीएच माइनस में लगभग 1.2 है.
कैसे तय होता है अम्ल?
बता दें कि पीएच स्केल का इस्तेमाल अम्ल और क्षार को मापने के लिए किया जाता है. पानी के पीएच का मान 7 होता है. अगर 7 से कम पीएच वैल्यू किसी लिक्विड की होती है तो वह अम्ल हो जााता है और 7 से अधिक होती है तो वह क्षार बन जाता है. पृथ्वी पर बारिश आम तौर पर थोड़ी अम्लीय होती है, जिसका पीएच 5 और 5.5 के बीच होता है, हालांकि वायुमंडलीय प्रदूषण और ज्वालामुखी गतिविधि दोनों ही पानी में थोड़ी मात्रा में एसिड डालकर पीएच को कम कर सकते हैं. मानव के कारण होने वाली अम्लीय वर्षा का पीएच आमतौर पर लगभग 4 होता है, जो टमाटर के रस या बीयर जितना अम्लीय है. जबकि ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण होने वाली अम्लीय वर्षा का पीएच 2 (नींबू का रस या सिरका) तक कम हो सकता है. शनि के चंद्रमा टाइटन पर जहां वाष्पीकरण, संघनन और वर्षा के चक्र में काम करने वाला तरल पदार्थ मीथेन है.
इस वजह से नहीं पहुंचा वहां इंसान
शुक्र पर अम्लीय वर्षा ग्रह के वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और पानी की प्रतिक्रिया के कारण होती है. पृथ्वी पर सबसे अधिक अम्लीय वर्षा की तुलना में कई गुना अधिक संक्षारक होने के बावजूद, शुक्र के तूफान सतह के क्षरण में महत्वपूर्ण योगदान नहीं दे पाते हैं. शुक्र पर सतह का तापमान औसतन 473°C (884°F) के आसपास होता है और सल्फ्यूरिक एसिड 300°C (572°F) पर वाष्पित हो जाता है; इसका मतलब यह है कि अम्लीय वर्षा लगभग 30,000 मीटर (98,425 फीट) की ऊंचाई पर उबलने की संभावना है. ऐसे में अगर वहां मानव जाता है तो वह तुरंत वाष्प बन सकता है.
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