आदित्य एल-1 हो या चंद्रयान-3...जानिए इन सभी सैटेलाइट्स में क्यों मढ़ा होता है सोना
आपको बता दें, ये परत दिखती जरूर सोने की होती है लेकिन ये असली सोने की नहीं होती. दरअसल, ये एक तरह की प्लास्टिक होती है, जिसे पॉलिमाइड कहते हैं.
चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद अब भारत का आदित्य एल-1 सूर्य को नमस्कार करने पहुंच रहा है. हालांकि, इसके लॉन्च से पहले चलिए आपको हम बताते हैं कि आखिर किसी भी सैटेलाइट पर सोने की परत क्यों मढ़ी जाती है. क्या है इसके पीछे की साइंस. इसके साथ ही हम आपको बताएंगे कि क्या सोना अंतरिक्ष में किसी अन्य धातु के मुकाबले ज्यादा टिकता है.
क्यों लपेटा जाता है सोना?
अब सवाल उठता है कि आखिर स्पेस में भेजे गए सभी सैटेलाइट्स पर सोना क्यों लपेटा जाता है. क्या हमारी सैटेलाइट्स को रेडिएशन से बचाता है. चलिए आपको सवालों का जवाब देते हैं. दरअसल, स्पेस का में धरती की तरह अलग अलग तापमान नहीं होता. ये ना तो गर्म होता है और ना ही ठंडा. स्पेस में जो तापमान बनता है वो स्टेरॉइड, सैटेलाइट और ग्रहों के मूवमेंट से मिलकर बनता है. यही वजह है कि स्पेस में हमेशा खतरनाक रेडिएशन मौजूद रहता है. अगर इंसान इस रेडिएशन के संपर्क में आ जाएं तो कुछ ही देर में ये ढेर हो जाएंगे. सैटेलाइट्स पर भी इस रेडिएशन का बुरा प्रभाव पड़ता है. उसी से बचाने के लिए इन पर सोने की परत चढाई जाती है. यही सोने की परत सैटेलाइट के तापमान को नियंत्रित करती है और उसे खतरनाक रेडिएशन से भी बचाती है.
क्या ये असली सोना होता है?
आपको बता दें, ये परत दिखती जरूर सोने की होती है लेकिन ये असली सोने की नहीं होती. दरअसल, ये एक तरह की प्लास्टिक होती है, जिसे पॉलिमाइड कहते हैं. इसी की कई परतों को सैटेलाइट पर मढ़ा जाता है ताकि ये स्पेस में सैटेलाइट्स को रेडिएशन से बचा सकें. वहीं इस पॉलिमाइड परत को मल्टी लेयर इंसुलेशन कहते हैं. इस मल्टी लेयर इंसुलेशन को आम भाषा में गोल्ड प्लेटिंग भी कहते हैं.
रेडिएशन से कैसे बचाती है ये सोने की परत?
अब सवाल उठता है कि आखिर रेडिएशन से किसी भी सैटेलाइट्स को ये गोल्ड प्लेटिंग बचाती कैसे है. दरअसल, होता ये है कि जब कोई सोलर रेडिएशन सैटेलाइट की ओर बढ़ती है तो वो इस गोल्ड प्लेटिंग से टकराकर वापस हो जाती है. यानी उस रेडिएशन को सैटेलाइट अवशोषित नहीं करता. इसकी वजह से सैटेलाइट के तापमान में वृद्धि नहीं होता और वो बिना किसी दिक्कत के काम करता रहता है.
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