भारतीय पैरा कमांडो विशेष बलों की एक प्रमुख शाखा, की ट्रेनिंग न केवल शारीरिक क्षमता पर आधारित होती है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक मजबूती पर भी जोर देती है. इनमें एक अनोखी और विवादास्पद ट्रेनिंग शामिल होती है, ड्रिंक के बाद कांच का गिलास तोड़कर उसे चबाना. ऐसे में चलिए जानते हैं कि पैरा कमांडो को इतना खतरनाक काम करने के लिए क्यों कहा जाता है.


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क्या होती हैं पैरा कमांडो की खासियत?


पैरा कमांडो का गठन भारतीय सेना के विशेष बलों के रूप में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य दुश्मनों के खिलाफ अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में लड़ाई करना है. ये सैनिक उच्च स्तर की शारीरिक और मानसिक दक्षता रखते हैं. उनकी ट्रेनिंग में आत्म-नियंत्रण, धैर्य, और सहनशीलता को विकसित किया जाता है.


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ड्रिंक के बाद कांच का ग्लास चबाकर क्यों खा जाते हैं पैरा कमांडो?


पैरा कमांडो की ट्रेनिंग दुनिया में सबसे मुश्किल होती है. जिसमें वो हर दर्दनाक चीज से गुजरते हैं. शायद ये सोचकर भी आम इंसान की चीख निकल जाए. इस ट्रेनिंग के दौरान जवानों को भूखा रखा जाता है. उन्हें मानसकि और शारीरिक रूप से टॉर्चर किया जाता है. न ही उन्हें सोने दिया जाता है और न ही थकान दूर करने का मौका दिया जाता है. इतनी खतरनाक ट्रेनिंग के बाद उन्हें गुलाबी टोपी दी जाती है. इसके बाद उन्हें बेहद खास चीज मिलती है और वो होता है बलिदान बैज. बता दें पैरा कमांडो का ग्लास ईटर्स भी कहा जाता है. यानी उन्हें कांच तक खाना पड़ता है.


आपको जानकर हैरानी होगी कि पैरा कमांडो को गुलाबी टोपी देने के बाद रम से भरा ग्लास दिया जाता है, जिसका कोना काटकर उन्हें मुंह में चबाना और फिर निगलना पड़ता है, इसके बाद ही उन्हें बलिदान बैज मिलता है. यह न केवल उनके साहस और आत्मविश्वास को दर्शाता है, बल्कि यह उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने में भी मदद करता है. जब वो गिलास को तोड़ते हैं, तो यह दर्शाता है कि वो किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं, चाहे वो कितनी भी कठिन क्यों न हो. ग्लास को तोड़ने के बाद, कमांडो उसे चबाते हैं. यह प्रक्रिया उन्हें यह सिखाती है कि मुश्किल के समय में कैसे शांत रहना है. यह मानसिकता उन्हें युद्ध के मैदान में धैर्य बनाए रखने में मदद करती है, जहां उन्हें गंभीर और खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.


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