इन दिनों उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है. कई जगह तापमान 55 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है. देश में हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गर्मी से बुरी तरह झुलस रहे हैं. कई राज्य लू की चपेट में आ चुके हैं. सोशल मीडिया पर कहीं जवानों द्वारा तपती धूप में पापड़ सेंकने तो कहीं रोटियां सेंकने के वीडियो सामने आ रहे हैं. राजस्थान में तो गर्मी से ये हाल ही कि धूप में तेल इतना गर्म हो गया है कि उसमें कोई खाने का सामान तला भी जा सकता है. इस गर्मी को सहन करना कई लोगों के लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा है. ऐसे में क्या आप जानते हैं कि ये स्थिति वेट बल्ब टेंपरेचर की है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये क्या बला है? तो चलिए जानते हैं.


क्या होता है वेट बल्ब टेंपरेचर?


यदि तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा है तो इस स्थिति को वेट बल्ब टेंपरेचर माना जाता है. यदि तापमान इससे ज्यादा होता है तो शरीर का पसीना भाप बनने में या वाष्पीकृत होने में परेशानी होती है. ऐसे में यदि शरीर का तापमान भाप नहीं बनता है तो शरीर का तापमान तेजी से बढ़ने लगता है.


इससे किसी भी व्यक्ति को हाइपरथर्मिया तक का सामना करना पड़ सकता है. ये वो स्थिति है, जिसमें शरीर जितनी गर्मी छोड़ सकता है उससे ज्यादा अवशोषित या पैदा करता है. इसे एक मेडिकल इमरजेंसी भी कहा जा सकता है. जिसमें बॉडी का टेंपरेचर खतरनाक रूप से कम हो जाता है और वेट-बल्ब टेपंरेचर गर्मी एवं ह्यूडिटी की वो सीमा है, जिसके आगे मनुष्य हाई टेंपरेचर को सहन नहीं कर सकता. क्लाइमेट साइंटिस्ट का ये मानना है कि ये बहुत ही खतरनाक स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति बैठे-बैठे ही मर भी सकता है.


कैसे पड़ा ये नाम?


अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये नाम आया कहां से? तो बता दें कि जब गर्मी अति से ज्यादा पड़ती है तो सामान्य थर्मामीटर भी काम करना बंद र देते हैं. ऐसी स्थिति में वेट बल्ब थर्मामीटर से काम लिया जाता है. इस थर्मामीटर में पारा होता है और इसे गीले कपड़े से ढंका जाता है. अमूमन इसे ढंकने के लिए मलमल का कपड़ा लिया जाता है और उसे ठंडे पानी से भरे बर्तन में रख दिया जाता है. इस थर्मामीटर से जो तापमान मापा जाता है वो गर्मी का संकेत देता है. इससे मापे गए तापमान के हिसाब से ही ये तय किया जाता है कि तापमान कितना है और किन्हें उससे खतरा है.


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