भारत में आए दिन खबर आती है कि जंगली जानवर इंसानों को अपना शिकार बनाते हैं. असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश , कर्नाटक, केरल से लेकर उत्तर प्रदेश और पहाड़ी राज्यों में हाथी, बाघ और लेपर्ड इंसानों को मौत के घाट उतार देते हैं. इन दिनों उत्तर प्रदेश के बहराइच में आदमखोर भेड़ियों का आतंक है, जिसने अबतक 9 बच्चों सहित एक महिला को अपना शिकार बनाया है.     


आदमखोर जानवरों के आतंक के बीच क्या आपको मालूम है कि कैसे कोई भेड़िया या बाघ समेत अन्य जंगली जानवर आदमखोर बनता है. यहाँ हम जानेंगे कि कैसे जानवर आदमखोर बन जाता है. 


फारसी का शब्द है आदमखोर 


दरअसल, आदमखोर अरबी के 'आदम' और फारसी के 'खोर' शब्द से मिलकर बना है. इसका मतलब 'आदमी को खाने वाला' होता है. आसान भाषा में आदमखोर शब्द का इस्तेमाल उस जानवर के लिए किया जाता है, जो इंसानों को खाता है या मानव को अपना निवाला बना लेता है. 


जंगली जानवर आदमखोर कब बनता है?


सबसे पहले आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि कोई भी जंगली जानवर आदमखोर कब बनता है. बता दें कि जब भेड़िया, बाघ, लेपर्ड समेत अन्य जानवरों के मुंह में इंसानी खून लग जाता है, तो वह उस इंसानी खून का आदी हो जाते हैं. जब आदमखोरों को फिर से भूख लगती है तो वह अन्य चीजों का शिकार करने के बजाय इंसानों को शिकार करने के लिए ढूंढने लगते हैं.


शिकार नहीं मिलने पर होते हैं आदमखोर 


माना जाता है कि जब इन खूंखार जानवरों को अपना शिकार नहीं मिलता है, तब वे आदमखोर हो जाते हैं. वन विभाग की टीम के मुताबिक शेर, बाघ, और भेड़िया जैसे जंगली जानवर आदमखोर तभी होते हैं, जब उन्हें जंगल में पर्याप्त खाना नहीं मिल पाता है. 


बच्चों का शिकार करना आसन होता है 
 
इसके अलावा एक बार जब ये जानवर इंसानी मांस खाने लगते हैं, तो उन्हें इसी तरह का मांस पसंद आने लगता है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े लोगों के मुकाबले छोटे बच्चों पर हमला करना आदमखोर जानवरों के लिए आसान होता है. इसलिए ये ज्यादातर बच्चों को अपना निशाना बनाते हैं.


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