अघोरी के बारे में कितना जानते हैं आप? शव उनकी जिंदगी के लिए क्यों होता है अहम
Aghori Hindu Dharma: अघोरी नाम सुनते ही कई लोगों के आंखों में डर आ जाता है. राख से लिपटे इंसानी शव का मांस खाने वाले इन अघोरियों के बारे में आप कितना जानते हैं?
Aghori Hindu Dharma: अघोरियों को लेकर समाज में अलग-अलग जानकारियां मौजूद है. उनमें से जो बात सबके सामने है, वह है कि अघोरी इंसान के शव का मांस खाते हैं. साथ ही उन्हें तंत्र-मंत्र का ज्ञान भी होता है. अघोरी के बारे में आपको पूरी जानकारी दें, उससे पहले इसका मतलब जान लीजिए. अघोरी एक संस्कृत का शब्द है, जिसका मतलब होता है उजाले की ओर. बता दें कि जो अघोरी कच्चा मांस खाते हैं, वह श्मशान घाट में रहते हैं. उनका काम अधजली लाश से मांस निकालकर खाना होता है. उनकी तंत्र शक्ति आम इंसान की तुलना में काफी मजबूत होती है.
अघोरी शिव और शव के उपासक होते हैं. बताया जाता है कि शिव के पांच स्वरूपों में एक रूप 'अघोर' भी होता है, और इसलिए वे अघोरी रूप के शिव की उपासना करते हैं. उनका मानना है कि 'शव से शिव की प्राप्ति' का यह रास्ता अघोर पंथ का महत्वपूर्ण हिस्सा है. अघोरी उपासकों का मानना है कि शव के साथ शारीरिक संबंध बनाने का उनका उद्देश्य शिव-शक्ति की उपासना है, जिसका वे समर्पण करते हैं. उनका कहना है कि वीभत्स तरीके से भी ईश्वर के प्रति समर्पण उपासना का एक साधना का तरीका है. उनका मानना है कि शव के साथ शरीरिक क्रिया के दौरान भी वे अपने मन को ईश्वर भक्ति में लगाते हैं, जिससे उनकी साधना का स्तर बढ़ता है. अघोरी उपासकों का कहना है कि इन साधनाओं के माध्यम से वे अपनी साधना को महत्वपूर्ण और ऊंचा बनाते हैं, और इसके फलस्वरूप उनकी शक्ति बढ़ जाती है.
अघोरी शव साधना के तीन प्रमुख तरीके हैं
शव साधना: इसमें शव को मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है.
शिव साधना: इसमें अघोरी शव पर एक पैर के सहारे खड़े होकर शिव की साधना की जाती है.
श्मशान साधना: इसमें श्मशान में हवन किया जाता है.
अघोरी अपने पास नरमुंड (इंसानी खोपड़ी) रखते हैं क्योंकि वे इसे एक प्रतीक के रूप में पूजते हैं और इसका विशेष महत्व मानते हैं. इन्हें कपालिक के नाम से भी जाना जाता है. अघोरियों के अनुसार, उन्होंने इस आदत को भगवान शिव से प्राप्त किया है. कई कथाओं में यह कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने ब्रह्मा के सिर को काट दिया था, और इसके बाद उन्होंने उस सिर को अपने हाथों में ले लिया था और उसके साथ चक्कर लगाए थे. इसके परिणामस्वरूप, अघोरी इस इंसानी खोपड़ी को ब्रह्मांड की जीवन की चक्कर में होने वाली सांसारिक चीजों के विरुद्ध एक प्रतीक के रूप में मानते हैं और इसके माध्यम से भगवान शिव का स्मरण करते हैं. इसके अलावा, अघोरियों को कुत्तों से एक विशेष संबंध भी होता है, और वे अक्सर कुत्तों को अपने साथ रखते हैं. यह कुत्ता उनकी जीवन में महत्वपूर्ण होता है और उनकी साधनाओं का हिस्सा बनता है.
ये भी पढ़ें: साहस से भरी है शिवाजी के 'वाघ नख' की कहानी? भारत वापस आ रहे इस इतिहास को कितना जानते हैं आप