Air Pollution: आंख, नाक, कान, त्वचा और जीभ हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां होती हैं. हम इनसे जो महसूस करते हैं उन्हें सेंस कहते हैं, जैसे देखना, सुनना, स्पर्श या स्वाद आदि. सूंघना भी एक सेंस ही है. देखने या सुनने की तरह ही सूंघना भी एक जरूरी सेंस होता है. गंध को महसूस न कर पाना हमारे जीवन पर अलग ही प्रभाव डाल सकता है. कोविड-19 बीमारी लक्षणों में से एक लक्षण स्वाद या गंध महसूस न कर पाना भी था. अचानक होने वाले श्वसन संक्रमण का इस महत्वपूर्ण सेंस पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. जिसमें बढ़ता वायु प्रदूषण भी शामिल है. वैज्ञानिकों के अनुसार इससे हमारे सूंघने की शक्ति कमजोर होती जा रही है.


पीएम2.5 जैसे प्रदूषक तत्व करते हैं प्रभावित


वाहनों, बिजली स्टेशनों और हमारे घरों में ईंधन के दहन से वातावरण में लागतार PM2.5 जैसे खतरनाक प्रदूषक तत्व फैल रहे हैं. हमारे मस्तिष्क के निचले भाग में नाक के छिद्रों के ठीक ऊपर घ्राण बल्ब नामक टिश्यू का एक संवेदनशील हिस्सा रहता है. यही हमें सूंघने का संदेश देने में मदद करता है. यह मस्तिष्क में प्रवेश करने वाले वायरस और प्रदूषकों से हमारी रक्षा करने की पहली कड़ी भी है. लेकिन, बढ़ते प्रदूषण से बार-बार जोखिम के चलते इसका सुरक्षा कवच धीरे-धीरे खराब होने लगता है.


शहरी क्षेत्र में ज्यादा है ये समस्या


जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन, बाल्टिमोर के राइनोलॉजिस्ट मुरुगप्पन रामनाथन जूनियर ने BBC की एक रिपोर्ट में बताया कि आंकड़े दिखाते हैं कि निरंतर कणीय प्रदूषण के संपर्क में रहने से एनोस्मिया विकसित होने का खतरा 1.6 से 1.7 गुना तक बढ़ जाता है. एनोस्मिया का मतलब होता है सूंघने की शक्ति का खत्म होना. डॉ रामनाथन लंबे समय से एनोस्मिया रोगियों पर रिसर्च कर रहे हैं. जिसमें उन्होंने यह अध्ययन भी किया है कि क्या एनोस्मिया से पीड़ित लोग उच्च पीएम 2.5 प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रह रहे थे. निष्कर्ष में उन्होंने बताया कि मेक्सिको सिटी के लोगों में ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की तुलना में गंध की क्षमता कम थी. यानी शहरों में रहने वालो की तुलना में ग्रामीण इलाकों में रहने वालो की सूंघने की क्षमता अच्छी होती है.


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