इमरजेंसी के दौरान संविधान में क्या-क्या बदला गया? जानकर हैरान रह जाएंगे आप
इमरजेंसी के दौरान लोगों से उनके अधिकार छीन लिए गए. तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया. अदालतों के अधिकारों को कम कर दिया गया, यहां तक कि प्रेस की स्वतंत्रता पर भी ताले जड़ दिए गए
Constitution Amendments during Emergency: 1947 को आजाद हुआ भारत अपनी मंद और सधी चाल से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था, लेकिन 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसने देश के इतिहास को पूरी तरह बदल कर रख दिया. यह फैसला था देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाने का. कांग्रेस के माथे पर यह फैसला एक कलंक साबित हुआ. बीजेपी से लेकर तमाम दल आज तक कांग्रेस को इस फैसले के लिए कोसते हैं. उस पर संविधान के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हैं.
इमरजेंसी के दौरान लोगों से उनके अधिकार छीन लिए गए. तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया. अदालतों तक के अधिकारों को कम कर दिया गया, यहां तक कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ प्रेस की स्वतंत्रता पर भी ताले जड़ दिए गए. लोकसभा में संविधान पर हाल ही में हुई बहस पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी को देश में इमरजेंसी के लिए कटघरे में खड़ा किया और इस दौरान संविधान में किए गए संशोधनों का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर कई तरह के आरोप लगाए. आइए जानते हैं वे कौन-कौन से संशोधन थे, जिन्हें इमरजेंसी के दौरान लागू किया गया, और इनका क्या असर हुआ.
38वां संशोधन
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के ठीक बाद संविधान में अहम संशोधन किया, इसे 38वां संविधान संशोधन कहा गया. इसके जरिए न्यायपालिका से इमरजेंसी की समीक्षा करने का अधिकार छीन लिया गया था.
39वां संशोधन
संविधान में 38वें संशोधन के ठीक दो महीने बाद 39वां संशोधन किया गया. यह संविधान संशोधन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए था. दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया था, लेकिन इस संशोधन के जरिए अदालत से प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त व्यक्ति के चुनाव की जांच करने का अधिकार ही छीन लिया गया था. इस संशोधन के अनुसार, प्रधानमंत्री के चुनाव की जांच सिर्फ संसद द्वारा गठित की गई समिति ही कर सकती थी.
42वां संशोधन
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने 42वां संशोधन किया, यह सबसे विवादित संशोधनों में से एक था. इसके जरिए नागरिकों के मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता दी गई. यानी संशोधन के जरिए आम आदमी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने की व्यवस्था की गई थी. अब केंद्र सरकार को यह शक्ति थी कि वह किसी भी राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर सैन्य या पुलिस बल भेज सकती थी. इस संशोधन ने न्यायपालिका को पूरी तरह कमजोर कर दिया था.
इमरजेंसी के बाद किया गया महत्वपूर्ण बदलाव
इमरजेंसी के बाद जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तब भी संविधान में कई संशोधन किए गए. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है 44वां संशोधन. इसके तहत सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में संविधान की शक्तियों का दुरुपयोग न हो सके. इस संशोधन के जरिए व्यवस्था की गई कि आर्टिकल 352 के तहत राष्ट्रपति तब तक आपातकाल की घोषणा नहीं कर सकते, जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप में ऐसा प्रस्ताव उनके पास नहीं भेजता है. आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों से एक महीने के अंदर अनुमोदन मिलना अनिवार्य है, इसके बाद ही आपातकाल सिर्फ छह महीने के लिए लागू रह सकता है.
यह भी पढ़ें: संसद में मारपीट करने पर भी सांसदों को नहीं होती जेल? जानें राहुल गांधी के मामले में क्या है नियम