2024 में लोकसभा का चुनाव होने वाला है. चुनाव से दो महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक ठहराते हुए इस पर रोक लगा दी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पार्टी किसी भी संस्था या कंपनी से चंदा कैसे लेती है. आखिर कोई पार्टी कैश में कितना चंदा ले सकती है? आज हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देंगे. 


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?


बता दें कि भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इसके बाद इसे 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू किया गया था. आसान भाषा में बताए तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है. इस बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है.


कैश में कितना चंदा


सभी राजनीतिक पार्टियां चंदा लेती हैं. पार्टियां अलग-अलग तरीके से संस्थान और कंपनियों से चंदा वसूलती हैं. जानकारी के मुताबिक कोई भी राजनीतिक पार्टी 20 करोड़ से ज्यादा कैश में चंदा नहीं ले सकती है. इतना ही नहीं 2000 रुपये से ज्यादा नगद चंदे का ब्योरा भी आयोग के साथ साझा करना होगा. भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29c के मुताबिक पार्टियों को किसी भी व्यक्ति या संस्था से नगद चंदा मिलने पर सारी जानकारी आयोग देनी जरूरी होती है. 


इलेक्टोरल बॉन्ड से किसको कितना चंदा मिला ? 


एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक फाइनेंसियल ईयर 2017 से लेकर 2021 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कुल करीब 9 हजार 188 करोड़ रूपये का चंदा राजनीतिक दलों को मिला है. ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रीय दलों के हिस्से में आया है. इन पांच सालों में चुनावी बॉन्ड से बीजेपी को मिले 5 हजार 272 करोड़, वहीं कांग्रेस पार्टी को 952 करोड़ रूपये मिले हैं. इसके अलावा 3 हजार करोड़ रूपये में 29 राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा शामिल था. जिसमें टीएमसी को इन्हीं पांच बरसों में करीब 768 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले हैं. इन तीनों के अलावा बीजेडी, डीएमके, एनसीपी, आप, जदयू जैसी पार्टियों के चंदे की हिस्सेदारी टॉप 10 में रही है.


 


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