देश में लोकसभा चुनाव के मतदान जारी है. देश में पहले और दूसरे चरण के लिए मतदान हो चुके हैं. आगामी 7 मई 2024 को तीसरे फेज के लिए वोटिंग होनी है. इस चरण में 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 94 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होगा. लेकिन सूत्रों के मुताबिक गांधी परिवार का कोई भी सदस्य इस बार अमेठी और रायबरेली की सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा. लेकिन आज हम आपको राजनीति से अलग अमेठी और रायबरेली क्यों फेमस है, इसके बारे में बताएंगे.
अमेठी और रायबरेली
गांधी परिवार के लिए अमेठी और रायबरेली की सीट सबसे जरूरी मानी जाती है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक अगर इस बार कोई भी सदस्य अमेठी और रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ेगा तो ऐसे में अब यूपी में गांधी परिवार के सियासी सफर पर ब्रेक माना जाएगा.
अमेठी का हनुमान मंदिर
अमेठी सिर्फ राजनीति के कारण ही नहीं जाना जाता है. बल्कि अमेठी के गौरीगंज के उल्टा गढ़ा हनुमान मंदिर भी बहुत फेमस है. इस हनुमान मंदिर का इतिहास 200 साल पुराना है. यहां पर 56 फुट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. जानकारी के मुताबिक करीब 200 साल पहले यहां पर राजा रक्तंभ सिंह का राज्य था. उन्हें भगवान राम का वंशज माना जाता था. जानकारी के मुताबिक भूकंप के कारण उनका किला उलट-पुलट गया था.इस वजह से इसका नाम उल्टा गढ़ा पड़ था.
रायबरेली की सीट
बता दें कि रायबरेली सीट पर भी सोनिया गांधी 2004 से लगातार चुनाव लड़ी हैं और उन्होंने जीत दर्ज की है. हालांकि राजस्थान से उनके राज्यसभा जाने के बाद यह सीट खाली हो गई है. इस सीट पर सोनिया गांधी ने साल 2004, साल 2009, साल 2014 और साल 2019 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. हालांकि सूत्रों के मुताबिक इस बार के चुनाव में यहां से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा.
रायबरेली का डलमऊ
रायबरेली गांधी परिवार के अलावा अपने डलमऊ क्षेत्र के लिए भी जाना जाता है. आज भी रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र के कुछ गांवों में होली के त्योहार वाले दिन शोक मनाया जाता है. इसका कारण इतिहास की घटना के 700 साल पुरानी है. जानकारी के मुताबिक डलमऊ के राजा डल देव एक बार गंगा नदी में नौका विहार कर रहे थे. तो उसी समय जौनपुर के मुगल शासक शाहशर्की की बेटी सलमा भी नदी में नौका विहार करने आई हुई थी. उसी दौरान महाराज डलदेव को सलमा से मोहब्बत हो गई थी. इसके बाद उन्होंने सलमा को अपनी पत्नी के रूप में अपने महल लेकर आए थे.
लेकिन यह बात मुगल शासक को पसंद नहीं आई थी. इस बात का बदला लेने के लिए उसने कई बार डलमऊ किले पर आक्रमण किया, लेकिन वह असफल होता था. जिसके बाद उसने मानिकपुर के राजा माणिक चंद्र से भेद नीति के तहत राजा डल देव को युद्ध में पराजित करने के लिए गुप्त जानकारी ली थी.
उन्होंने बताया कि होली वाले दिन राजा डल देव अपनी प्रजा और सेना के साथ जश्न मानते हैं. मुगल शासक ने होली वाले दिन डलमऊ पर आक्रमण कर दिया था. मुगल सेना का सामना करने के लिए राजा डल देव भी अपने 200 सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े थे. इस दौरान मुगल शासक की 2000 सेना का डटकर मुकाबला किया था और अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था.
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