रामसेतु के बारे में धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब रावण माता सीता का हरण करके उन्हें श्रीलंका ले गया था उस समय भगवान राम सीता को वापस लाने के लिए निकले थे. हालांकि इस दौरान विशाल समुद्र को कैसे पार किया जाए उनके सामने ये समस्या आ खड़ी हुई. जिसके बाद नर और नील ने वानर सेना की सहायता से लंका तक जाने के लिए समुद्र पर एक पुल का निर्माण किया. राम नाम लिखकर समुद्र के ऊपर बनाए गए इस पुल को रामसेतु के नाम से जाना गया. इस पुल का निर्माण करने में पांच दिन का समय लगा था. इसी पुल से निकलकर भगवान राम वानर सेना के साथ लंका पहुंचे थे. ये तो रहा धार्मिक आधार, लेकिन क्या आप जानते हैं रामसेतु का कोई वैज्ञानिक आधार भी है.


कितनी है पुल की लंबाई?
दक्षिण भारत में आज भी रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच पूर्वोत्तर में मन्नार के बीच में ऊंची उठी चट्टानों की एक कतार दिखती है. इन्हीं चट्टानों को भारत में रामसेतु के नाम से जाना जाता है. बाकि कई जगहों पर इसे आदम का पुल या एडम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है. इस पुल की लंबाई 48 किलोमीटर है. जो मन्नार की खाड़ी और पाक स्ट्रेट मध्य को मध्य से अलग करती हैै. 


वहीं जिस स्थान पर इस पुल का अस्तित्व बताया जाता है वहां समुद्र की गहराई कम है. बता दें कि दावा तो ये भी किया जाता है कि 15वीं सेदी में रामेश्वरम से इस पुल पर चलकर मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन समय के साथ तूफानों के चलते समुद्र की गहराई बढ़ती गई और ये पुल समुद्र की सतह से नीचे हो गया. कहा येे भी जाता है कि 1480 ईस्वी तक येे पुल समुद्र की सतह से ऊपर था.
 
कार्बेन डेटिंग से सामने आया इतिहास
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये बताया जाता है कि समुद्र तटों का इतिहास पता करनेे के लिए कार्बन डेटिंग भी गई थी. जिसमें सामने आया कि इस पुुल के निर्माण की तारीख रामायण के त्रेतायुग की तारीख से मेल खाती है. इसके अलावा रामसेतु को तैरते हुए पत्थरों से बनाया गया था जो रामेश्वर में आज भी देखनेे को मिलते हैं.


नासा ने भी रामसेतु की स्पेस से ली गई तस्वीरों को जारी करते हुए इसके प्रमाण के आधार दिए थे हालांकि एक दशक बाद नासा अपनी बात से मुकर गया था और उसने कहा था कि रामसेतु के अस्तित्व के स्पेस यात्रियों की ओर से कोई प्रमाण नहीं है.


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