आपने अब तक जितने भी ग्रहों या तारों के बारे में सुना या पढ़ा होगा उनमें से ज्यादातर आपको गोलाकार या उससे मिलती जुलती आकृति के ही दिखाई दिए होंगे. अब चलिए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है. इस थ्योरी के पीछे कौन सी साइंस काम करती है कि ब्रह्मांड में बनने वाले ज्यादातर ग्रह गोलाकार आकृति से मिलते जुलते होते हैं.
क्या है इसके पीछे की साइंस
एक्सपर्ट मानते हैं कि ग्रहों की आकृति या आकार के पीछे दो चीजें काम करती हैं. पहली है घूर्णन और दूसरा है गुरुत्व. दरअसल, इस यूनिवर्स में मौजूद हर चीज में एक भार होता है...और जिस भी चीज में भार होता है उसे गुरुत्व का अनुभव जरूर होता है. इसे ऐसे समझिए कि अगर किसी भार वाली चीज में गुरुत्व है तो वह अपने आसपास मौजूद सभी चीज को अपने भीतर खींचना चाहती है. हालांकि, ये खिंचाव सिर्फ आंखों से दिख रही चीजों का ही नहीं होता...बल्कि ये खिंचाव परमाणु स्तर तक का होता है.
जब इस गुरुत्व के कारण जब सभी एक केंद्र की ओर खिंचाव महसूस करते हैं तब पिंड का द्रव्यमान बढ़ने लगता है. इसके साथ-साथ यहां एक और शक्ति काम कर रही होती है, जिसे आप घूर्णन कहते हैं. घूर्णन की वजह से एक केंद्र में इकट्ठा हुई चींजें अपनी जगह पर धीरे-धीरे घूंमने लगती हैं. बाद में ये पूरी प्रक्रिया एक आकार लेने लगती है जो गोलाकार होता है. यही वजह है कि ज्यादातर ग्रहों का आकार गोलाकार या उससे मिलते जुलते आकार का होता है.
पृथ्वी ना गोल है ना अंडाकार
अब तक पृथ्वी के आकार को लेकर हम समझते थे कि ये गोल या अंडाकार है. लेकिन, नए हुए शोधों से जो नतीजे सामने निकले हैं उनके आधार पर एक्सपर्ट्स का मानना कुछ और है. दरअसल, नए रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी का आकार जीओड (Geoid) है. आसान भाषा में आप इसे अनियमित आकार का एक दीर्घवृत कह सकते हैं. यानी पृथ्वी गोल तो है, लेकिन पूरी तरह से नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वी का कुछ भाग कहीं से उठा हुआ है तो कहीं कुछ भाग धंसा हुआ है.
ये भी पढ़ें: फैशन शो समेत तमाम इवेंट्स में कार्पेट अक्सर रेड ही क्यों होता है… काला-पीला या नीला क्यों नहीं?