भारत में शरारती बच्चों के लिए 'चंगू-मंगू' शब्द का उपयोग आम बात है. हर घर में आपको ये सुनने को मिलेगा. वहीं पाकिस्तान में 'चंगा-मंगा' शब्द ज्यादा सुनने को मिलता है. अगर आपको लग रहा है कि ये दोनों एक ही पात्र हैं तो आप पूरी तरह से गलत हैं. इन दोनों पात्रों में जमीन-आसमान का फर्क है. चलिए आज आपको इन दोनों की असली कहानी बताते हैं. इसके साथ ही बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान के 'चंगा-मंगा' के नाम पर एक बड़ा जंगल बन गया.


पहले चंगू-मंगू के बारे में जानिए


दरअसल, चंगू और मंगू नाम भारत के लोक कथाओं, हास्य कहानियों या बाल साहित्य से आया है. यानी ये एक काल्पनिक पात्र हैं. इनका असली जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है. कहानियों में ये पात्र आपको अक्सर हास्यप्रद परिस्थितियों में फंसे पाए जाते हैं. हालांकि, चंगा-मंगा के साथ ऐसा नहीं है. ये किसी काल्पनिक कहानी के पात्र नहीं हैं, बल्कि असली जिंदगी में ये मौजूद थे.


चंगा और मंगा की कहानी


दरअसल, चंगा और मंगा पाकिस्तान के दो कुख्यात डाकू थे. 20वीं में पंजाब के आसपास के इलाकों में इनकी तूती बोलती थी. कहा जाता है कि जिस इलाके में इनका आतंक था, वहां सूर्य अस्त होने के बाद लोग जंगल की ओर जाने से घबराते थे. अपहरण, हत्या और लूट इनके लिए आम बात थी. इनका भय इतना ज्यादा था कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आज भी बच्चों को इनके नाम से डराया जाता है.


चंगा-मंगा के नाम पर जंगल


लाहौर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर एक मैंन मेड जंगल है. यानी इंसानों द्वारा लगाया गया जंगल. इस जंगल को आज पूरी दुनिया 'चंगा-मंगा' जंगल के नाम से जानती है. इस जंगल को ब्रिटिश काल में लकड़ी के उत्पादन के लिए लगाया गया था. बी रिबेनट्रॉप ने 1871-72 में इस इलाके में प्लान्टेशन का काम शुरू किया जो बाद में एक बडे़ जंगल में बदल गया. 1990 तक ये बहुत बड़ा जंगल हुआ करता था, लेकिन आज यहां के ज्यादातर पेड़ काट दिए गए हैं और जंगली जानवर भी इस मानव निर्मित जंगल को छोड़ कर जाने लगे हैं.


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