देश के लिए कैप्टन अंशुमान सिंह ने सर्वोच्च बलिदान दिया है. कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाजा गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी और मां मंजू को कीर्ति चक्र सम्मान दिया था. लेकिन अब शहीद अंशुमान के परिवार की तरफ से 'नेक्स्ट ऑफ किन' यानी 'आश्रित' से जुड़ी पॉलिसी को लेकर सवाल उठाया जा रहा है. आज हम आपको बताएंगे कि 'नेक्स्ट ऑफ किन' पॉलिसी क्या है और ये कैसे काम करता है. 


क्या है NOK पॉलिसी?


सबसे पहले ये जानते हैं कि 'नेक्स्ट ऑफ किन' पॉलिसी क्या है. बता दें कि NOK का फुलफॉर्म 'नेक्स्ट ऑफ किन' है. ये पॉलिसी आश्रित से जुड़ी है, जिससे सरकार की तरफ से शहीद जवान के आश्रितों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं. आसान भाषा में समझिए कि ये एक तरह से नॉमिनी का मामला है. जवान के शहीद होने के बाद आश्रित को सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि, पेंशन और अन्य सभी सुविधाएं दी जाती हैं. 


क्या है मामला


कैप्टन अंशुमान सिंह के शहीद होने के बाद उनके माता-पिता ने 'नेक्स्ट ऑफ किन' पॉलिसी पर सवाल उठाया है. अब समझते हैं कि आखिर शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता क्यों नेक्सट ऑफ किन पॉलिसी में बदलाव की मांग कर रहे हैं.  बता दें कि आर्मी में भर्ती होने वाला जवान या अफसर जब सेवा में जाता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावक का नाम एनओके में दर्ज होता है. लेकिन जब उस जवान या सेना के अधिकारी की शादी होती है, तो उसके बाद विवाह और यूनिट भाग II के आदेशों के तहत उस व्यक्ति के नजदीकी परिजनों में माता-पिता की बजाय उसके जीवनसाथी का नाम दर्ज किया जाता है. कैप्टन अंशुमान सिंह के मामले में उनकी शादी के बाद उनकी पत्नी का नाम बतौर आश्रित दर्ज हुआ है. जिस कारण कैप्टन अंशुमान सिंह के शहीद होने के बाद उनकी आश्रित पत्नी को सभी सुविधाएं मिलेगी. 


सेना की मेडिकल कोर में थे कैप्टन अंशुमान


बता दें कि कैप्टन अंशुमान सिंह ने मिलिट्री की मेडिकल कोर में शामिल थे. शहीद कैप्टन अंशुमान की पत्नी ने बताया कि उनकी मुलाकात इंजीनियरिंग कॉलेज में हुई थी. जिसके बाद उनका चयन पुणे के आर्मर्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज में हो गया था. वहीं एमबीबीएस करने के बाद वह सेना की मेडिकल कोर का हिस्सा बने थे. वहीं आगरा के मिलिट्री अस्पताल में ट्रेनिंग हुई थी. जिसके बाद जम्मू में तैनात रहे और उसके बाद सियाचिन में तैनात किया गया था. 


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