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क्या है असम की लोक संस्कृति मोह-जुज, आखिर क्यों इसको रोकने के लिए अदालत तक पहुंचा मामला

पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स संगठन ने असम की पारंपरिक मोह-जुज उत्सव पर रोक लगाने के लिए गुवाहाटी हाई कोर्ट का रूख किया है. जानिए असम में होने वाला मोह-जुज उत्सव क्या है.

 

असम में हर साल मोह-जुज उत्सव का आयोजन किया जाता है. हालांकि कुछ साल पहले कोर्ट ने इस उत्सव पर रोक लगा दी थी. लेकिन इस साल से ये उत्सव फिर से शुरू हो गया है. लेकिन पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स संगठन ने असम की गुवाहाटी हाई कोर्ट का रूख करके इस पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की है. आज हम आपको बताएँगे कि असम में होने वाला ये मोह-जुज उत्सव आखिर क्या है और इसको लेकर कोर्ट तक मामला कैसे पहुंचा. 

PETA का कहना है कि भैंसों की लड़ाई में जानवरों पर क्रूरता होती है और यह असंवैधानिक है. असम में भैंसों की लड़ाई को मोह-जुज नाम से जाना जाता है. यह सालों पुरानी परंपरा है. बीते कुछ सालों से, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, इसका आयोजन नहीं हो रहा था. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मोह-जुज को असम की संस्कृति का हिस्सा बताया है. आइए जानते हैं क्या है असम का जल्लीकट्टू कहे जाने वाला मोह-जुज.

मोह-जुज क्यों शुरू हुआ ?

सबसे पहले ये जानते हैं कि मोह-जुज उत्सव आखिर क्या है. बता दें कि जनवरी महीने के मध्य में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है. असम के विभिन्न इलाकों में भैंसों की लड़ाई के अलावा बुलबुल (चिड़िया) की लड़ाई कराई जाती है. बता दें कि ये परंपरा अहोम वंश से चली आ रही हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 200 साल पहले 30वें अहोम राजा स्वर्गदेव रुद्र सिंह ने इनकी शुरूआत की थी. अहोम शासकों के दौर में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता था. कहा जाता है कि उस वक्त हाथियों को भी आपस में लड़ाया जाता था.

धर्म से भी जुड़ा है ये उत्सव

असम में होने वाला मोह-जुज उत्सव लोक संस्कृति से जुड़े होने के साथ ही धर्म से भी जुड़ा हुआ है. कुछ रिपोर्ट के मुताबिक जब इस उत्सव की शुरूआत होती है, उस वक्त दीपक (साकी) जलाकर और भगवान विष्णु को प्रसाद (ज़ोराय) चढ़ाकर शुरू की जाती है. लोगों का कहना है कि इस परंपरा का मकसद समाज में एकजुटता को बढ़ाना होता है.

क्यों बंद हुआ था ये उत्सव?

असम में 2015 तक मोह-जुज और बुलबुली कराया जाता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में बैलों से जुड़े खेलों जैसे जल्लीकट्टू पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु में प्रतिबंध लगा दिया था. उसके एक साल बाद असम की राज्य सरकार ने भैंसों की लड़ाई (मोह-जुज) और बुलबुल पक्षी (बुलबुली) की लड़ाई को बैन लगा दिया था. लेकिन साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के जल्लीकट्टू, महाराष्ट्र की बैलगाड़ी दौड़ और कर्नाटक के कंबाला को अनुमति दे दी थी. इसके बाद असम सरकार ने भी राज्य में मोह-जुज और बुलबुली कराने की इजाजत दे दी थी. हालांकि इन उत्सवों के लिए अलग से कुछ नियम बनाए गए थे, जिनका पालन करना अनिवार्य है. जिसमें मुख्य रूप से ये कहा गया था कि ये उत्सव वहीं पर होंगे ,जहां बीते 25 सालों से हो रहे हैं. 

पेटा क्यों पहुंचा कोर्ट 

अब ये समझते हैं कि आखिर पेटा क्यों इस मामले को लेकर कोर्ट पहुंचा है. दरअसल पेटा का कहना है कि मोह-जुज संविधान के प्रिवेंशन ऑफ कुयली टू एनिमल्स, 1960 का उल्लंघन है. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की लड़ाई स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को दर्द और पीड़ा होती है. वहीं संगठन ने अपनी याचिका में कहा कि इस तरह की परंपरा को जारी रहने देने से इंसानों और जानवरों के अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति का नष्ट होने का खतरा है. हालांकि मोह-जुज और बुलबुली परंपरा को अभी अदालत का फैसला आना बाकी है.

 

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