अतुल सुभाष सुसाइड केस ने पूरे देश को झकझोर को रख दिया है. वह 9 दिसंबर, 2024 को अपने घर में मृत पाए गए थे. आत्महत्या करने से पहले अतुल सुभाष ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी व ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसके बाद उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया व ससुराल वालों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
अब केस में आरोपी निकिता सिंघानिया, उनकी मां निशा और भाई अनुराग को जमानत मिल चुकी है. जमानत मिलने से पहले निकिता सिंघानिया ने भी अतुल सुभाष के कई डार्क सीक्रेट खोले थे और उनपर कई सनसनीखेज आरोप लगाए थे. निकिता ने यहां तक कहा था कि अतुल ने उन्हें मेरी मां के सामने पीटा भी था. अब सवाल यह है कि क्या निकिता सिंघानिया की ओर से किए गए दावों से उनके केस को मजबूती मिलेगी? इस मामले में कानून क्या कहता है? क्या मरे हुए व्यक्ति पर आरोपी लगाकर बचा जा सकता है? चलिए जानते हैं...
निकिता सिंघानिया ने लगाए थे कई आरोप
निकिता सिंघानिया ने अपने पति अतुल सुभाष पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. पुलिस पूछताछ में निकिता ने अतुल सुभाष पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था. उन्होंने पुलिस पूछताछ में दावा किया था कि पत्नी होने के बावजूद उसने तीन गर्लफ्रेंड बना रखी थी और वो उन्हीं के पैसे उड़ाता था. यहां तक कि इस मामले में एक दस्तावेज भी सामने आया था, जिसमें निकिता ने आरोप लगाया था कि अतुल सुभाष ने उनके साथ मारपीट की थी और जरूरी सामान तक छीन लिया था.
क्या मरे हुए व्यक्ति पर लगा सकते हैं आरोप
मरे हुए व्यक्ति पर आरोप लगाने से मुकदमा कमजोर नहीं होता, प्रतिवादी की मृत्यु के बाद भी मामला शुरू या जारी रखा जा सकता है. हालांंकि, भारतीय कानून की खासियत यह है कि सबूतों के आधार पर अपने फैसले सुनाता है. किसी भी मामले में अगर व्यक्ति किसी मरे हुए व्यक्ति पर कोई आरोप लगा रहा है तो कोर्ट उसे गंभीरता से सुनता है और संबंधित व्यक्ति को अपने आरोप साबित करने का मौका देता है. जहां तक निकिता सिंघानिया और अतुल सुभाष का मामला है, तो निकिता सिंघानिया की तरफ से आरोप लगाकर केस को कमजोर करने का प्रयास जरूर किया जा रहा है. कानून के मुताबिक, निकिता सिंघानिया को अपनी बात कहने का हक है. हालांकि, कोर्ट में उन्हें अपने आरोपों को साबित करना होगा, जिसके बाद ही न्यायालय डॉक्यूमेंट और सबूतों के आधार पर ही अपना फैसला सुनाएगा.
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